स्वास्थ्य मंत्री पंजाब श्री ज्याणी का ऐलान शराब नशा ही नहीं है

Thursday, Dec 24, 2015 - 12:46 AM (IST)

यह बात सभी जानते हैं कि शराब जहर है तथा शरीर पर पडऩे वाले इसके दुष्प्रभावों में लिवर सिरोसिस, उच्च रक्तचाप, अवसाद, एनीमिया, गठिया, स्नायु रोग, मोटापा, दिल की बीमारी आदि के अलावा महिलाओं में गर्भपात, गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव तथा विभिन्न विकारों से पीड़ित बच्चों के जन्म जैसी समस्याओं का होना आम बात है।

शराब के सेवन से अपराधों में भी भारी वृद्धि हो रही है। होशोहवास में होने पर व्यक्ति जो अपराध करने से पहले दस बार सोचता है, नशे में वही अपराध बिना सोचे-समझे पलक झपकते ही कर डालता है। 
 
रोहतक में दिल्ली गैंगरेप जैसी ही बर्बरता की शिकार नेपाली युवती के केस में जिन 7 दोषियों को 21 दिसम्बर को फांसी की सजा का ऐलान किया गया है, उनमें से एक बलात्कारी ने सामूहिक बलात्कार के बाद युवती के गुप्तांग में नुकीले पत्थर डाले तथा दूसरे ने ब्लेड घुसा दिया था।  इस बारे में एक दोषी का कहना है कि‘‘उस समय हम में से किसी का भी दिमाग काम नहीं कर रहा था तथा शराब के नशे में सब कुछ होता चला गया।’’  
 
 वास्तव में शराब तथा अन्य नशों के इस्तेमाल के विनाशकारी दुष्प्रभावों के कारण ही महात्मा गांधी जी ने इसके विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई थी और देश की स्वतंत्रता से पूर्व ही डंके की चोट पर घोषणा की थी कि यदि भारत का शासन आधे घंटे के लिए भी उनके हाथ में आ जाए तो वह शराब की सभी डिस्टिलरियां व दुकानें बिना मुआवजा दिए बंद कर देंगे।
 
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने भी फरवरी, 1979 में देश में जल्दी ही नशाबंदी लागू होने की आशा व्यक्त की थी व उसी वर्ष पंजाब सरकार ने भी 4 वर्ष में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की घोषणा की थी जो कभी पूरी नहीं हुई।
 
शराब के ठेके बंद करने के लिए देश में धरने-प्रदर्शन भी होते रहते हैं। इसी वर्ष 28 जून को उत्तर प्रदेश के हापुड़ में और 30 जून को महाराष्ट के औरंगाबाद में दर्जनों महिलाओं ने लाठी-डंडे लेकर शराब के ठेकों पर धावा बोला और सेल्समैनों को बंधक बना लिया। इसी वर्ष बिहार के नालंदा जिले के कुबड़ा बीघा गांव की महिलाओं ने शराब पीकर घर आने वाले अपने पतियों के लिए दरवाजा न खोलने का निर्णय लिया। 
 
 यही नहीं इसी वर्ष पंजाब के 21 जिलों की 134 पंचायतों ने अपने गांवों को नशामुक्त करने के लिए सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव आबकारी विभाग को भेजे थे जिनमें से 107 प्रस्ताव स्वीकार कर लिए गए।
 
शराब से होने वाली मौतों के दृष्टिïगत राजस्थान में पूर्ण शराबबंदी की मांग पर बल देने के लिए 2 अक्तूबर, 2015 से आमरण अनशन पर बैठे पूर्व विधायक गुरशरण छाबड़ा ने 32 दिनों के अनशन के बाद 3 नवम्बर, 2015 को अपनी अधूरी इच्छा के साथ ही प्राण त्याग दिए। 
 
परन्तु शराब व अन्य नशों से होने वाली भारी हानियों के बावजूद पंजाब सरकार ने इस ओर से आंखें मूंद रखी हैं क्योंकि हमारे नेता तो शराब को नशा ही नहीं मानते और हमारी सरकारें इसकी बिक्री से होने वाली भारी आय को खोना नहीं चाहतीं।
 
इसी के अनुरूप अब पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री श्री सुरजीत ज्याणी ने भी कहा है कि शराब नशा नहीं है। मलोट के निकटवर्ती गांव थेड़ी में ‘नशा छुड़ाओ एवं पुनर्वास केंद्र’ का उद्घाटन करने आए श्री ज्याणी ने 21 दिसम्बर को कहा कि :
 
 ‘‘शराब नशा नहीं है। शराब बेचने के लिए सरकार परमिट और शराब बनाने के लिए फैक्टरियों को लाइसैंस देती है और शराब के ठेकों से ही सरकार को आमदनी होती है। जब सब कुछ कानूनी तौर पर किया जाता है तो फिर शराब नशा कैसे हो सकती है?’’ 
 
जबकि हाल ही में बिहार सरकार ने शराब को नशा मान कर और इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए राज्य में नशाबंदी लागू करने की घोषणा कर दी है। यही नहीं गुजरात तथा कुछ अन्य राज्यों में भी नशाबंदी लागू है। 
 
ऐसे में श्री ज्याणी द्वारा शराब को नशा मानने से ही इंकार करने पर कोई टिप्पणी न करना ही बेहतर है, परन्तु इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि यदि यह नशा नहीं है तो फिर इसके सेवन से विभिन्न रोग क्यों लगते हैं, धर्मस्थानों, शिक्षा संस्थानों आदि के निकट शराब के ठेके खोलने का विरोध क्यों होता है, शराबबंदी लागू करने के लिए धरने-प्रदर्शन क्यों होते हैं और बिहार के एक गांव की महिलाएं शराब पीकर आने वाले अपने पतियों के लिए घर के दरवाजे क्यों नहीं खोलतीं?  
 
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