कृषि विधेयकों के मुद्दों पर हरसिमरत बादल का मंत्रिमंडल से इस्तीफा

punjabkesari.in Saturday, Sep 19, 2020 - 02:05 AM (IST)

केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में पारित 3 कृषि विधेयकों को लेकर इन दिनों पंजाब और हरियाणा में बवाल मचा हुआ है। किसान संगठनों तथा कांग्रेस, बसपा, आप और नैशनल कांफ्रैंस आदि विरोधी दलों द्वारा इनके भारी विरोध के बीच केंद्र में सत्तारूढ़ राजग के सबसे पुराने गठबंधन सहयोगियों में से एक शिरोमणि अकाली दल (शिअद) भी इनके विरोध में उतर आया है। केंद्रीय कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ‘कृषि उपज एवं मूल्य आश्वासन’ संबंधी इन विधेयकों को क्रांतिकारी बताते हुए कहा है कि ‘‘इनसे किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य दिलवाना सुनिश्चित होगा तथा उन्हें निजी निवेश एवं प्रौद्योगिकी भी सुलभ हो सकेगी।’’ 

उन्होंने यह दावा भी किया है कि ‘‘यह किसानों को बांधने वाला नहीं बल्कि स्वतंत्रता देने वाला विधेयक है तथा स्वतंत्रता के बाद यह पहली सरकार है जिसने किसानों की समृद्धि के लिए यह काम किया है।’’ इन विधेयकों के आलोचकों ने इन्हें घोर किसान विरोधी बताया है और इनके विरुद्ध रोष स्वरूप खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल (शिअद) ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया है जो स्वीकार कर लिया गया है। 

शिअद सुप्रीमो सुखबीर बादल के अनुसार,‘‘हमने हर मंच पर इन विधेयकों का विरोध किया क्योंकि इनसे 30 लाख खेत मजदूर, 20 लाख किसान, मंडियों के 3 लाख कारिंदे व 30,000 आढ़ती तबाह हो जाएंगे। हमने हरसंभव प्रयास किया कि हमारी आशंकाएं दूर की जाएं परंतु ऐसा नहीं हुआ।’’ दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन विधेयकों को महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए ट्वीट किया है कि ‘‘यह विधेयक सही मायनों में किसानों को बिचौलियों और तमाम बाधाओं से मुक्त कर उनकी आमदनी बढ़ाने व सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होगा तथा लोग किसानों को भड़काने में जुटे हैं।’’ उल्लेखनीय है कि 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के गठबंधन सहयोगी तेजी से बढ़े और उन्होंने ‘राजग’ के तीन दलों के गठबंधन को बढ़ा कर 26 दलों तक पहुंचा दिया था। 

श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को कभी शिकायत का मौका ही नहीं दिया परंतु उनके राजनीति से हटने के बाद भाजपा के कई सहयोगी दल विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए। यहां तक कि 25 से अधिक वर्षों से इसके सबसे पुराने और महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिवसेना ने भी इससे नाता तोड़ कर अलग होने के बाद महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ताच्युत कर दिया तथा राकांपा व कांग्रेस के साथ गठबंधन करके अपनी सरकार बना ली और अब हरसिमरत कौर बादल के केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र ने एक बार फिर भाजपा नेतृत्व की गठबंधन सहयोगियों के साथ बढ़ती दूरी का संकेत दे दिया है। 

इस स्थिति के लिए भाजपा के आलोचक इसके नेताओं के ‘अहंकार’ को जिम्मेदार बताते हैं जिस पर भाजपा नेतृत्व को नसीहत देते हुए शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने 24 जून, 2013 को कहा था कि ‘‘मित्र वृक्षों की तरह नहीं बढ़ते। उनका पोषण करना होता है। यदि कोई व्यक्ति उस वृक्ष की शाखाओं को ही काट देगा तो उसे सही मित्र कैसे मिल पाएगा!’’इसी तरह राजग के पुराने सहयोगी ‘शिअद’ के वरिष्ठ नेता नरेश गुजराल ने 24 दिसम्बर, 2019 को भाजपा नेतृत्व द्वारा सहयोगी दलों को विश्वास में लिए बिना महत्वपूर्ण निर्णय लेने पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि :

‘‘राजग की बैठक में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा का न होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और शायद इसीलिए राजग के अनेक घटक दल दुखी हैं। हम आज भी श्री वाजपेयी जी को याद करते हैं जिन्होंने 26 पाॢटयों को एक धागे में पिरो कर रखा था।’’ ‘‘उनके दौर में हर पार्टी खुश थी तथा हर पार्टी को सम्मान भी दिया जाता था। दुर्भाग्य की बात है कि उनके जाने के बाद ‘राजग’ का वह चैनल वास्तव में काम नहीं कर रहा।’’ 

इतना ही नहीं स्वयं भाजपा के अभिभावक संगठन आर.एस.एस. से जुड़े चंद संगठनों की भी पार्टी में नहीं सुनी जा रही। इसका नवीनतम प्रमाण उक्त किसान विधेयकों के संबंध में आर.एस.एस. से जुड़े  ‘भारतीय किसान संघ’ (बी.के.एस.) पंजाब शाखा की महासचिव सुशीला बिश्रोई का 23 जुलाई का वह बयान है जिसमें उन्होंने कहा था कि : ‘‘वर्तमान स्वरूप में यह अध्यादेश अस्वीकार्य हैं और इनमें किसानों के शोषण की गुंजाइश है। इनसे यह संदेह पैदा होता है कि ये अध्यादेश मंडियों के निजीकरण के उद्देश्य से लाए गए हैं।’’ 

जो भी हो, हरसिमरत कौर बादल के त्यागपत्र ने भाजपा नेतृत्व को एक बार फिर याद दिलाने की कोशिश की है कि जिस प्रकार बिहार में वे ‘लोजपा’ नेता चिराग पासवान व नीतीश कुमार की ‘जद’ (यू) में तनातनी के बीच दोनों को साथ लेकर चल रहे हैं और वहां नीतीश के नेतृत्व में ही चुनाव लडऩे की घोषणा की है वैसे ही उन्हें अन्य राज्यों में भी सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना व उनकी सहमति से ही संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेना चाहिए।—विजय कुमार 


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