आधा दर्जन राजनीतिक दलों में ‘कलह-क्लेश और सिर फुटौव्वल’

Saturday, Sep 17, 2016 - 01:57 AM (IST)

इस समय भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा, आप, पी.डी.पी., जद (यू) और राजद सहित आधा दर्जन से भी अधिक प्रमुख राजनीतिक दलों में भारी उठा-पटक, अंतर्कलह  और सिर फुटौव्वल का सिलसिला जोरों पर है। 

 
भाजपा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने पार्टी नेतृत्व द्वारा उनकी उपेक्षा करने पर जुलाई में पार्टी से अलग होने की घोषणा कर दी और 3 सितम्बर को अपना अलग दल ‘आवाज-ए-पंजाब’ गठित करके धमाका कर दिया। 
 
दूसरी ओर आर.एस.एस. ने अपने गोवा के प्रमुख सुभाष वेलिंगकर को राज्य की भाजपा सरकार के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाते हुए सभी पदों से हटा दिया है। इस पर वेलिंगकर ने भाजपा को हराने के लिए अपनी पार्टी बनाकर अगला चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। वेलिंगकर और उनके साथियों ने कुछ समय पूर्व भाजपा पर गोवा वासियों से विश्वासघात करने का आरोप लगाया था तथा अमित शाह को काले झंडे भी दिखाए थे। 
 
अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में 2017 के चुनावों के लिए ‘आप’ का दायरा बढ़ाने की कोशिशें शुरू कीं तो पहले उन्हें सफलता मिलती दिखाई दे रही थी परंतु इसी बीच इसके पंजाब राज्य के संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को कथित स्टिंग आप्रेशन के बाद पार्टी से अलग कर देने पर अनेक जिला संयोजकों के त्यागपत्र तथा दिल्ली में इसके एक मंत्री संदीप कुमार का सैक्स स्कैंडल सामने आने के बाद अब यह बैकफुट पर आ गई है। 
 
उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा भी आंतरिक कलह की शिकार हैं। अखिलेश यादव द्वारा 12 सितम्बर को भ्रष्टाचार के आरोप में अपने चाचा शिवपाल यादव के करीबी 2 मंत्रियों गायत्री प्रसाद प्रजापति तथा राजकिशोर सिंह को बर्खास्त करने के बाद मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश से पार्टी के राज्य अध्यक्ष का पद लेकर शिवपाल यादव को दे दिया जिस पर अखिलेश ने शिवपाल यादव से सभी महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए। 
 
इस बीच 15 सितम्बर को शिवपाल ने न सिर्फ मंत्री पद व सपा के प्रदेश प्रधान सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दिया बल्कि अपनी पत्नी सरला से जिला सहकारी बैंक और बेटे आदित्य से प्रदेश सहकारी संघ के अध्यक्ष पदों से इस्तीफे दिलवा कर धमाका कर दिया जिससे सपा के दोफाड़ होने का खतरा पैदा हो गया था पर बाद में मुलायम सिंह ने स्वयं यह मामला हाथ में ले कर शिवपाल का इस्तीफा नामंजूर करके व मंत्री प्रजापति की बर्खास्तगी रद्द करने का भी ऐलान करके अखिलेश व शिवपाल में ‘युद्ध विराम’ करवा दिया है। अब यह तो समय ही बताएगा कि यह ‘समझौता’ कब तक टिकेगा!
 
बसपा भी भारी अंतर्कलह की शिकार है। मायावती से नाराज नेताओं में पार्टी छोडऩे की होड़ सी लगी हुई है। प्रदेश बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा आर.के. चौधरी, राष्ट्रीय सचिव परमदेव यादव, पार्टी का ब्राह्मïण चेहरा ब्रजेश पाठक आदि मायावती पर धन की उगाही तथा टिकट बंटवारे को लेकर जम कर रुपयों की लूट करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ गए हैं और अनेक विधायक पार्टी छोड़ कर दूसरे दलों में चले गए हैं। 
 
जम्मू-कश्मीर में सत्तारूढ़ पी.डी.पी. में भाजपा से गठबंधन के विरुद्ध विद्रोह भड़क उठा है। पी.डी.पी. के संस्थापक-सदस्य तारिक अहमद कर्रा ने इसके विरुद्ध रोष स्वरूप पार्टी व लोकसभा की सदस्यता से 15 सितम्बर को त्यागपत्र दे दिया है। उनका आरोप है कि ‘‘यह (पी.डी.पी.) फासीवादी संगठन आर.एस.एस. की सहयोगी के तौर पर काम कर रही है।’’  कर्रा के पार्टी छोडऩे को पी.डी.पी. के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। 
 
बिहार में नीतीश कुमार नीत जद (यू) और लालू यादव नीत राजद के बीच भी सब ठीक नहीं है। बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की भागलपुर जेल से रिहाई के साथ ही दोनों दलों में कटुता आने लगी है। जेल से बाहर आते ही शहाबुद्दीन ने लालू को अपना नेता और नीतीश कुमार को ‘हालात की मेहरबानी से बना मुख्यमंत्री’ कह कर विवाद खड़ा कर दिया है।
 
लालू के करीबी शहाबुद्दीन को ‘सीवान का सुल्तान’ कहा जाता है। उनके जेल से बाहर आते ही सीवान में भय का माहौल पैदा हो गया है और राज्य सरकार उनकी रिहाई के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट जाने की तैयारी में है। 
 
और अब 16 सितम्बर को अरुणाचल कांग्रेस में भी भारी फूट सामने आ गई है। मुख्यमंत्री पेमा खांडू सहित इसके 46 में से 44 विधायकों ने भाजपा समॢथत पी.पी.ए. का दामन थाम कर वहां कांग्रेस सरकार को वस्तुत: पी.पी.ए. की सरकार में बदल दिया है। 
 
यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक अशुभ संकेत है। आपसी फूट से राजनीतिक दलों का कमजोर तथा अपने सिद्धांतों से दूर होना अंतत: परोक्ष रूप से लोकतंत्र को ही कमजोर करेगा।  
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