भारत में जितना पाप बढ़ रहा है उतना ही मंदिरों में दान बढ़ रहा है

Friday, May 27, 2016 - 01:43 AM (IST)

धर्म के विरुद्ध किसी भी प्रकार के आचरण को ‘पाप’ कहा जाता है और पाप की अनेक श्रेणियां हैं। इनमें गुरु से द्वेष, मित्र से कपट, चोरी, जीव हत्या, झूठ बोलना, किसी कार्य के बदले में अनुचित रूप से धन लेना (रिश्वत), बलात्कार, हत्या, उत्पीडऩ आदि शामिल हैं। 

 
इसी सिलसिले में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 25 मई को विजयवाड़ा में जिला कलैक्टरों के सम्मेलन में भाषण देते हुए यह ‘स्वीकारात्मक’ टिप्पणी की कि ‘‘पाप में हो रही बढ़ौतरी के कारण राज्य के मंदिरों की आमदनी में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।’’ 
 
‘‘पाप करने के कारण जब लोग अधिक कष्ट तथा समस्याओं में घिर जाते हैं तो उनसे छुटकारा पाने के लिए मंदिरों में जाकर वहां चढ़ावा चढ़ाते हैं। वे जितने ज्यादा पाप करते हैं और जितनी अधिक समस्याओं का सामना करते हैं उतना ही अधिक धन और आभूषण चढ़ाते हैं।’’
 
‘‘लोग शांति प्राप्त करने के लिए मंदिरों में ही नहीं गिरजाघरों और मस्जिदों तक में जाकर पूजा-पाठ कर रहे हैं। यदि ये धर्मस्थल न होते तब तो शायद बहुत से लोग अपनी समस्याओं के तनाव से ही पागल हो जाते।’’  
 
जहां श्री चंद्रबाबू नायडू के अनुसार लोगों में बढ़ रहे अपराध बोध से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे में वृद्धि हुई है, वहीं राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में ‘गौतमेश्वर महादेव पाप मोचन तीर्थ’  नामक भगवान शिव का एक ऐसा भी अनूठा मंदिर है जिसके ‘मंदाकिनी कुंड’ में स्नान करके 11 रुपए दक्षिणा देने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को उसके ‘पाप मुक्त’ हो जाने का ‘प्रमाण पत्र’ दिया जाता है।
 
शताब्दियों पुराना यह तीर्थ ‘आदिवासियों का हरिद्वार’ भी कहलाता है। जहां प्रतिवर्ष मई में लगने वाले 8 दिवसीय मेले में भाग लेने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। 
 
‘मंदाकिनी कुंड’ में स्नान करके ‘पाप मुक्त’ का प्रमाण पत्र पाने वालों का देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक का बाकायदा रिकार्ड रखा गया है। मंदिर के पुजारी नंद किशोर शर्मा के अनुसार, ‘‘पुरोहितों की ‘अमीनात कचहरी’ नामक संस्था प्रत्येक प्रमाण पत्र के लिए एक रुपया वसूल करती है जबकि 10 रुपए ‘दोष निवारणम’ शुल्क के रूप में लिए जाते हैं।’’
 
मंदिर के एक अन्य पुजारी कन्हैया लाल शर्मा का कहना है कि ‘‘खेती के दौरान हल चलाते समय किसानों से अनजाने में ही अनेक कीड़ों-मकौड़ों, तथा पक्षियों की हत्या हो जाती है जिससे वे अपराध बोध से भर कर भारी हृदय से यहां प्रायश्चित करने आते हैं और अपने सिर का बोझ उतार कर खुशी-खुशी वापस अपने घर जाते हैं।’’
 
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आमतौर पर हिन्दू तीर्थ यात्रियों और श्रद्धालुओं का यह विश्वास है कि पवित्र नदियों में स्नान और मंदिरों में दान-पुण्य करने से पाप धुल जाते हैं, इसी प्रकार ईसाई धर्म में लोग गिरजाघरों के पादरियों के समक्ष जाकर ‘कनफैशन’ करते हैं और अन्य धर्मों में भी ऐसे ही कुछ धार्मिक अनुष्ठान हैं। 
 
मनोवैज्ञानिक आधार पर सभी धर्मों में इस प्रकार के स्नान, ध्यान और कनफैशन का उद्देश्य इस लम्बे जीवन में अपनी पुरानी भूलों पर लकीर फेर कर नए सिरे से साफ-सुथरे जीवन की शुरूआत करने के लिए प्रेरित होना और अच्छे कर्मों की ओर बढऩा है परंतु आज स्थिति विपरीत हो रही है। 
 
लोग धर्म स्थलों और धर्म गुरुओं के समक्ष जाकर दान-दक्षिणा द्वाराअपनी भूलें बख्शवाते तो अवश्य हैं परंतु ‘पाप मुक्त’ होकर फिर नए सिरे से पुराने ढर्रे पर चल पड़ते हैं और दोबारा पाप कर्म करने के बाद बार-बार धर्मस्थलों में माथा टेक कर और दान-दक्षिणा देकर अपनी पाप मुक्ति करवाते रहते हैं। 
 
स्पष्टï है कि जब तक हम अपने कर्म और कथन में समानता और शुद्धि नहीं लाएंगे तब तक किसी भी प्रकार का धर्म-कर्म व्यर्थ ही होगा। भावना के बिना भक्ति का कोई मोल नहीं।
 
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