सांसदों के निलंबन पर विपक्षी दलों को सरकार का अधूरा निमंत्रण

Tuesday, Dec 21, 2021 - 04:12 AM (IST)

11 अगस्त को संसद के मानसून अधिवेशन के अंतिम दिन राज्यसभा में शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन, माकपा के एल. मारन करीम, कांग्रेस की फूलो देवी, छाया वर्मा आदि 12 सांसदों द्वारा हंगामा करने, कागज फाडऩे व धक्कामुक्की करने के चलते लोकसभा सहित दोनों सदनों को समय से दो दिन पहले ही स्थगित कर दिया गया था। 

फिर 29 नवम्बर को संसद का शीतकालीन अधिवेशन शुरू होने के पहले ही दिन राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा उक्त सभी सांसदों को माफी मांग लेने तक अधिवेशन की शेष अवधि के लिए निलंबित करने का आदेश देने के बाद से इस मुद्दे को लेकर संसद में गतिरोध चला आ रहा है। श्री नायडू का कहना था कि ‘‘11 अगस्त को जो कुछ हुआ उसने लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र किया है।’’ 

उक्त सांसदों ने निलंबन को नियम के विरुद्ध बताते हुए माफी मांगने से इंकार कर दिया और अधिवेशन के पहले दिन से ही संसद परिसर में गांधी जी की प्रतिमा के समक्ष इनका धरना जारी है। इनका कहना है कि निलंबन रद्द होने तक वे संसद की कार्रवाई के दौरान सुबह से शाम तक गांधी जी की प्रतिमा के सामने धरने पर बैठे रहेंगे। 3 दिसम्बर को धरने के पांचवें दिन उक्त सांसदों के धरने के विरोध में भाजपा सांसदों ने भी रोष स्वरूप महात्मा गांधी की प्रतिमा से लेकर बाबा साहेब डा. बी.आर. अम्बेडकर की प्रतिमा तक पैदल मार्च निकाल कर विपक्षी सांसदों द्वारा संसद में गतिरोध पैदा करने और धरना लगाने का विरोध किया था। 

इस संबंध में 14 दिसम्बर को राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘विपक्ष जब भी आवाज उठाने की कोशिश करता है, सरकार उनकी आवाज दबा देती है। विपक्षी सांसदों ने कुछ भी गलत नहीं किया है।’’ नियम के अनुसार सभापति किसी सदस्य को एक निश्चित अवधि तक निलंबित कर सकते हैं और यह अवधि कुछ दिनों या पूरे सत्र के लिए लागू हो सकती है और यदि सदस्य माफी मांग लेते हैं तो उनका निलंबन वापस लिया जा सकता है। 

इस लिहाज से जहां मानसून अधिवेशन की घटना के कारण शीतकालीन अधिवेशन के लिए उक्त सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित करने पर आपत्ति की जा रही है, वहीं विरोधी दलों के सांसदों का कहना है कि उन्हें मनमाने तरीके से निलंबित किया गया है और घटना के दिन बाहरी सिक्योरिटी स्टाफ को भी सदन के अंदर लाया गया जो सुरक्षा विभाग के कर्मचारी नहीं थे।विरोधी दलों के सांसदों का कहना है कि उनके निलंबन में नियमों की अनदेखी की गई और यह मामला मर्यादा समिति को भी भेजा जा सकता था। अब 20 दिसम्बर को भी सदस्यों के निलंबन तथा लखीमपुर खीरी कांड में राज्य मंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे को लेकर विरोधी दलों की मांग के चलते संसद में माहौल गर्म रहा। 

सपा सांसद जया बच्चन ने सरकार पर आरोप लगाया कि ‘‘आप हमें बोलने ही नहीं देते’’ दूसरी ओर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने निलंबन का मुद्दा हल करने के लिए निलंबित सदस्यों वाले 6 विरोधी दलों के नेताओं को 20 दिसम्बर को ही शाम 4 बजे वार्ता के लिए आमंत्रित किया जिसे विरोधी दलों ने अस्वीकार कर दिया। इसके उत्तर में राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने प्रह्लाद जोशी को लिखे पत्र में कहा कि‘‘सरकार द्वारा सभी विपक्षी नेताओं की बजाय केवल निलम्बित सदस्यों वाले दलों को ही आमंत्रित करना दुर्भाग्यपूर्ण है।’’ 

‘‘ऐसा करके सरकार विरोधी दलों की एकता को तोडऩा चाहती है। विपक्ष के 16 दल एकजुट हैं तो सरकार द्वारा सिर्फ 6 दलों को बातचीत के लिए आमंत्रित करना उसकी चाल है, जिसे सफल नहीं होने दिया जाएगा। सभी दलों को बुलाया जाना चाहिए था।’’ यहां उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा किसानों की मांगें स्वीकार करने में देर लगाने के कारण न सिर्फ 378 दिन चले इस आंदोलन में 700 किसानों की जान चली गई और देश का जो नुक्सान हुआ सो अलग बल्कि इसके लिए प्रधानमंत्री को यह कहते हुए माफी तक मांगनी पड़ी कि हम किसानों को अपनी बात समझा नहीं सके। 

अत: इससे सबक लेते हुए सांसदों के निलंबन के मामले में सरकार को कतई देर न करते हुए सभी विरोधी दलों के सदस्यों के साथ मिल बैठ कर इस समस्या को जल्द सुलझाना चाहिए ताकि संसद में गतिरोध समाप्त हो और वहां सुचारू रूप से कामकाज हो सके और यही विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की गरिमा के अनुरूप भी है।—विजय कुमार

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