पंजाब के सरकारी स्कूलों में दाखिले इस वर्ष 10 प्रतिशत कम

Saturday, Apr 27, 2019 - 03:27 AM (IST)

हम समय-समय पर लिखते रहते हैं कि लोगों को सस्ती एवं स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा, स्वच्छ जल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र एवं राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु इस मामले में अपना दायित्व निभाने में वे पूरी तरह विफल रही हैं तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों की उदासीनता के कारण स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद भी देश के आम लोग अच्छी और सस्ती स्तरीय शिक्षा तथा चिकित्सा के लिए तरस रहे हैं। 

चूंकि किसी भी देश की प्रगति का एकमात्र माध्यम शिक्षा ही हो सकती है अत: इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2009 में भारत में ‘राइट टू एजुकेशन’ का प्रावधान किया गया था। इसके अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य की गई है परंतु यह लक्ष्य अभी तक अधूरा है। जहां तक सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर का संबंध है, एक गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ की ओर से जारी एक रिपोर्ट में यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि अनेक राज्यों के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले आठवीं कक्षा उत्तीर्ण अधिकांश छात्र गणित का मामूली प्रश्र भी हल नहीं कर पाते और 25 प्रतिशत छात्र तो ठीक से पढ़ भी नहीं पाते। 

नियमित स्कूल जाने के बावजूद छात्रों के सामान्य ज्ञान के खराब स्तर बारे विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों में आधारभूत ढांचे और संबंधित विषयों के अध्यापकों की कमी के चलते यह स्थिति पैदा हुई है। इसके अलावा अधिकांश सरकारी स्कूलों में छात्रों को पढ़ाने की बजाय अध्यापक निजी कामकाज, ट्यूशन और राजनीति में अधिक दिलचस्पी लेते हैं। इससे पढ़ाई के प्रति छात्रों का रुझान भी घट रहा है और शिक्षा का स्तर गिरने के कारण बड़ी संख्या में अभिभावकों में बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटाकर प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करवाने का रुझान बढ़ रहा है। 

ऐसे ही कारणों से इस वर्ष पंजाब के सरकारी स्कूलों में दाखिलों में 9.1 प्रतिशत की कमी और आ गई है। शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में छात्रों के दाखिले को बढ़ावा देने के लिए चलाया गया अभियान भी निष्फल सिद्ध हुआ है तथा इस वर्ष 1 अप्रैल को शुरू हुए शिक्षा सत्र में दाखिल होने वाले छात्रों की संख्या में 2.11 लाख की गिरावट आई। वर्ष 2018-19 में जहां राज्य के स्कूलों में 23,29,632 छात्रों ने दाखिला लिया था वहीं 2019-20 के शिक्षा सत्र में सिर्फ 21,17, 741 छात्रों ने ही दाखिला लिया। सर्वाधिक 15.74 प्रतिशत कमी पठानकोट जिले में दर्ज की गई तथा 14.09 प्रतिशत गिरावट के साथ संगरूर दूसरे स्थान पर रहा। 

हालांकि इस वर्ष अध्यापकों, स्कूल के स्टाफ  और जिला शिक्षा अधिकारियों को अन्य कार्यों की बजाय छात्रों के दाखिले को अधिमान देने का निर्देश दिया गया था तथा फरवरी में अध्यापकों को यहां तक कहा गया कि वे अभिभावकों को अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिल करवाने को प्रेरित करने के लिए ग्राम पंचायतों को कहें परंतु उसके बावजूद दाखिलों में यह कमी आई है। अध्यापकों के अनुसार सरकारी स्कूलों में दाखिलों के लिए मुफ्त भोजन, पुस्तकें और वर्दी देने की प्रोत्साहन योजनाओं में से सिर्फ मुफ्त भोजन देने की योजना ही किसी हद तक सही ढंग से लागू की गई जबकि अन्य दोनों योजनाएं सही ढंग से लागू न की जा सकीं। स्कूलों में न तो वर्दियां  और न ही पुस्तकें समय पर पहुंंचीं। 

दूसरी ओर जानकारों का कहना है कि अध्यापकों के सामूहिक तबादलों, लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन और स्कूलों के बाहर लगातार किए जाने वाले प्रदर्शनों का लोगों में सरकारी स्कूलों के प्रति नकारात्मक प्रभाव पड़ा और भय उत्पन्न हुआ कि इस हालत में यहां पढ़ाई क्या होगी। अत: सरकारी स्कूलों में अध्यापन तथा अन्य स्टाफ की कमी को पूरा करने, पर्याप्त इमारतों की व्यवस्था करने, जर्जर इमारतों की मुरम्मत तथा बुनियादी सुविधाओं में सुधार करने, शौचालय बनवाने तथा स्कूलों के परिणाम के लिए अध्यापकों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है। 

इसके साथ ही सभी सरकारी जनप्रतिनिधियों, नेताओं तथा कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाएं। ऐसा करने से ही राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर ऊंचा उठ सकेगा तथा लोग सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिल करवाने के लिए प्रेरित होंगे।—विजय कुमार 

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