सरकार एक कदम आगे, एक कदम पीछे

Monday, Dec 23, 2019 - 02:00 AM (IST)

नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के पास होने के 10 दिनों के भीतर देश के पूर्वोत्तर राज्यों से शुरू अशांति के वातावरण ने सारे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इसे लेकर अनिश्चितता का अहसास अल्पसंख्यकों में सबसे अधिक है। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों से शुरू होने वाला विरोध विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों के सड़कों पर उतरने के साथ देश भर में फैल गया। बगैर किसी नेता के शुरू होने वाले विरोध प्रदर्शन कई स्थलों पर हिंसक भी हुआ जिसमें अब तक 18 छात्रों की जान जा चुकी है और लगभग 1000 जेल में बंद हैं और 5000 युवक यू.पी. में हिरासत में लिए गए हैं। लोगों की पत्थरबाजी और पुलिस द्वारा उनकी पिटाई के वीडियो दोनों पक्षों की ओर से सामने आए। 228 पुलिस कर्मी घायल हुए हैं। दोनों ही ओर की ङ्क्षहसा ङ्क्षनदनीय है और तुरंत रुकनी चाहिए। 

विरोध प्रदर्शन छात्रों तक ही नहीं सीमित : ‘हिन्दू’ जैसे प्रख्यात अखबारों के पत्रकारों को गिरफ्तार किया तथा पीटा गया, योगेन्द्र यादव एवं चंद्रशेखर (जोकि 15 दिन की हिरासत में है) जैसे नेताओं से लेकर राम चंद्र गुहा जैसे इतिहासकार को पहले गिरफ्तार और बाद में रिहा कर दिया गया। भारतीय इतिहास के इस स्याह पक्ष में भी दो मुख्य सकारात्मक पहलू दिखे हैं। 

पहला, भारतीय मुसलमानों को अक्सर -एक भारत तथा दूसरे पाकिस्तान के लिए- दोहरी निष्ठा वालों के रूप में पेश किया जाता रहा है। हिंदुत्व के कट्टरवादी उन्मादी समर्थकों की ओर से व्हाट्सएप पर फैलाई जाने वाली झूठी जानकारियों में उन्हें ईरान तथा अफगानिस्तान से कई सौ वर्ष पहले आए आक्रमणकारियों तथा विजेताओं के अपराधों के साथ जोड़ा जाता रहा है। इस तथ्य के बावजूद अधिकतर मुसलमान हमेशा से भारतीय समाज का हिस्सा रहे हैं। परंतु गत शुक्रवार को यह बात दिलचस्प और देखने वाली थी कि पुरानी दिल्ली की 17वीं सदी में बनी जामा मस्जिद जैसी महत्वपूर्ण इबादतगाह  में खड़े मुस्लिम तिरंगा झंडा लहरा रहे थे तथा भारतीय संविधान उठा रहे थे। यही बात देश भर में नजर आ रही थी जहां विभिन्न विश्वविद्यालयों के बाहर मुस्लिम छात्र कह रहे थे कि वे भारतीय हैं और देश के संविधान पर पूरा भरोसा करते हैं। बेंगलुरू में दो स्थलों पर पुलिस तथा छात्रों ने एक जैसे उत्साह के साथ राष्ट्रगान गाया। 

यह पहली बार नहीं है कि भारतीय मुस्लिमों ने अपनी पहचान पर खुले आम जोर दिया है-सेना और पुलिस से लेकर कार्पोरेट जगत तक में मुस्लिम सेवाएं दे रहे हैं परंतु पहली बार है कि भारतीय के तौर पर अपने अधिकारों के लिए उन्होंने इस तरह आवाज उठाई है। इन विरोध प्रदर्शनों का यह एक विशेष सकारात्मक पक्ष है। इस जारी विरोध का दूसरा सकारात्मक पक्ष है धीमी गति से लगभग अदृश्य रूप में बदलता सरकार का रुख। इससे पहले तक भाजपा ने किसी मुद्दे पर या कानून पर कदम पीछे खींचने की जरूरत नहीं समझी, तो इसकी वजह यह नहीं थी कि उसके पास लोकसभा में बहुमत है और अब सहयोगियों की मदद से राज्यसभा से भी वह कानून पास करवा सकती है या अधिकतर राज्यों में इसकी सरकार है, इसकी वजह थी कि अब तक उसे मतदाताओं का मजबूत समर्थन प्राप्त था। इसके विपरीत यू.पी.ए. सरकार के दौरान भाजपा के नेतृत्व में विरोधी दलों के दबाव की वजह से कितनी ही बार परमाणु नीति, आधार आदि से जुड़े कानून बदलने पड़े या लटक गए। 

गृह मंत्री अमित शाह के तहत मोदी 2.0 सरकार ने जनता के मत की परवाह किए बगैर कई सख्त फैसले लिए हैं। गृह मंत्री ने संसद में स्पष्ट रूप से कहा था कि पहले सी.ए.ए. और फिर एन.आर.सी. को इसी तरतीब में देश भर में लागू किया जाएगा परंतु अब कुछ बदले हुए बयान सुनने को मिल रहे हैं। सबसे पहले पूर्वोत्तर राज्यों के इंचार्ज भाजपा के जनरल सैक्रेटरी राम माधव ने कहा, ‘‘इस वक्त सारा ध्यान सी.ए.ए. पर है और एन.आर.सी. के संबंध में घोषणा 2021 में होगी।’’ इसके बाद भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘‘एन.आर.सी. असम तक सीमित है तथा देश के किसी अन्य हिस्से में इसे लागू करने की कोई योजना नहीं है। आप ऐसे बच्चे के बारे में बात करके अफवाहें फैला रहे हैं जिसका अभी जन्म ही नहीं हुआ।’’ शुक्रवार देर रात एक बार फिर गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि एन.आर.सी. के लिए दस्तावेजों की जरूरत असम की तरह सख्त नहीं होगी। 

13 सूत्रीय जानकारी देते हुए मंत्रालय ने कहा, ‘‘आपके लिए अपने जन्म के बारे में जानकारी देना पर्याप्त होगा जैसे कि जन्म तिथि या स्थान।’’ इसके अलावा ‘‘जिनके पास जन्म का विवरण नहीं होगा, वे अपने माता-पिता की जानकारी दे सकते हैं तथा वोटर आई.डी. और आधार नंबर भी नागरिकता साबित करने के लिए मान्य दस्तावेज होंगे।’’रविवार को रामलीला मैदान में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने न केवल अनेकता में एकता पर जोर दिया और कहा कि एन.आर.सी. के बारे में अभी कुछ भी निश्चित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि डिटैंशन कैम्प नहीं बने हैं (जोकि सत्य नहीं है)। इस बीच सरकारी कर्मचारियों की ओर से शाम को एक अन्य आदेश जारी हुआ जिसमें कहा गया कि आधार तथा वोटर आई.डी. को नागरिकता के दस्तावेज के तौर पर मंजूर नहीं किया जाएगा। 

चाहे सरकार कहे कि वह देश भर में फैल चुके विरोध से अप्रभावित है या एन.आर.सी. मुद्दे की बारीकियों पर फैसले ले रही है, यह पहली बार है कि उसने अपनी नीति लागू करने से पहले इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने की कोशिश की है तो इसकी वजह जनता का व्यापक रोष और दबाव ही है। आप चाहे इसे पीछे लिया या आगे बढ़ाया गया कदम कहें, इतना तो स्पष्ट है कि सरकार अब शांति कायम करने में कम्युनिकेशन के महत्व को समझ रही है। 

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