देश के सरकारी अस्पताल बनते जा रहे हैं ‘कत्लगाह’

Thursday, May 25, 2017 - 12:02 AM (IST)

वैसे तो मुफ्त स्तरीय चिकित्सा और शिक्षा, स्वच्छ पानी और लगातार बिजली की आपूर्ति करना सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी है परंतु देश की आजादी से लेकर अब तक के 70 वर्षों में हमारी सरकारें देश की जनता को यह सुविधा उपलब्ध करवाने में असमर्थ रही हैं। 

हालत यह है कि न ही लोगों को लगातार बिजली और स्वच्छ पानी मिल रहा है, न ही सरकारी स्कूलों में सस्ती और स्तरीय शिक्षा उपलब्ध है और न ही सरकारी अस्पतालों में लोगों का इलाज संतोषजनक ढंग से हो रहा है जिसके मात्र पिछले 10 दिनों के चंद उदाहरण निम्र में दर्ज हैं: 

14 मई को बिहार में मुरलीगंज के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जब एक रोगी महिला को उसके परिजन लेकर पहुंचे तो वहां कोई भी डाक्टर नहीं था। अस्पताल के स्टाफ से जल्दी डाक्टर बुलाने का बार-बार अनुरोध करने के बावजूद काफी देर बाद जब डाक्टर आया तो महिला मर चुकी थी। 16 मई रात को मध्यप्रदेश में इंदौर के मुख्य अस्पताल में नवजात शिशु की तबीयत बिगडऩे पर बच्चे के परिजनों ने जब डाक्टरों से उसे देखने को कहा तो ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर थोड़ी देर बाद देखने को कह कर सो गया। कुछ देर बाद जब बच्चे के परिजन दोबारा डाक्टर को बुलाने गए तो डाक्टर झल्लाता हुआ आया और बोला ‘‘इसकी धड़कन बंद है।’’ 

फिर उसने बेसुध बच्चे के वारिसों को यह कह कर टाल दिया कि मैं इसकी धड़कन वापस ले आया हूं परंतु जब सुबह के समय दूसरे डाक्टरों ने उसे चैक किया तो उन्हें बताया कि यह तो बहुत पहले ही मर चुका है। 16 मई को ही उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पंवासा स्थित सरकारी अस्पताल के डाक्टर द्वारा कमला देवी नामक महिला को गलत दवाई देने के कारण  10 मिनट के भीतर उसकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। 17 मई को मेवात के मैडीकल कालेज में डाक्टरों की लापरवाही के चलते एक स्टाफ नर्स की मृत्यु हो गई। प्रसव के दौरान उसे काफी ब्लीडिंग हुई जिसका डाक्टरों ने ध्यान नहीं रखा और प्रसूता ने दम तोड़ दिया। 

17 मई को ही छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 3 सरकारी अस्पतालों- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंसिज और सिविल अस्पताल द्वारा मुस्कान खान नामक गर्भवती महिला को दाखिल करने से इंकार कर देने पर भाग-दौड़ के बीच 47 डिग्री की भीषण गर्मी में मुस्कान ने एक खुली शैड के नीचे बच्चे को जन्म दे दिया। 

उल्लेखनीय है कि इन दिनों सुरक्षित प्रसव और मातृत्व के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जारी ‘सुरक्षित मातृत्व अभियान’ चलाया जा रहा है। 19 मई को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के सी.एच.सी. सरकारी अस्पताल में दाखिल 3 वर्षीय बालिका की तबीयत बिगडऩे पर उसके पिता ने ड्यूटी नर्स से जब उसे देखने को कहा तो नर्स ने झूठ-मूठ ही कह दिया कि उसे दवाई दे दी गई है और वह कुछ ही देर में ठीक हो जाएगी। इस बीच बच्ची की तबीयत बिगडऩे के बावजूद नर्स ने ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर को सूचित नहीं किया। बच्ची को लगाया हुआ ग्लूकोज भी बैड पर बहता रहा जिसे सही करने के लिए भी कोई नहीं आया और अंतत: बच्ची को समय पर सही इलाज न मिलने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। बच्ची का शव ले जाने के लिए उसके परिजनों को शव वाहन भी नहीं दिया गया। 

22 मई को जमशेदपुर के महात्मा गांधी मैमोरियल अस्पताल में डाक्टरों द्वारा गलत इंजैक्शन व दवा देने एवं नर्सों की लापरवाही के कारण 6 मास की गर्भवती महिला और उसके गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो गई। 23 मई को मध्यप्रदेश में मंदसौर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर जांच करवाने आई गर्भवती महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती रही परंतु ड्यूटी नर्स ने उसकी ओर देखा तक नहीं। थक-हार कर जब उसके परिजन उसे निजी अस्पताल ले जाने लगे तो रास्ते में ही महिला की डिलीवरी हो गई और सही प्रसव न होने के कारण जल्दी ही नवजात की मृत्यु भी हो गई। 

डाक्टरों में संवेदनहीनता और लापरवाही के इस रुझान पर शीघ्र और कठोरतापूर्वक अंकुश न लगाया गया तो इसी तरह अस्पतालों में जीवन पाने के लिए जाने वालों का अकाल मृत्यु के मुंह में जाना जारी रहेगा। लिहाजा इनका कामकाज ठीक करने और अस्पतालों के स्टाफ को चाक-चौबंद रखने के लिए औचक छापेमारी व स्टाफ की जिम्मेदारी तय करना आवश्यक है।—विजय कुमार 

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