अजहर पर पाबंदियों से ही खत्म नहीं होगा वैश्विक आतंकवाद

Sunday, May 05, 2019 - 11:17 PM (IST)

जहां जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने की कूटनीतिक जीत पर भारत सरकार खुद को बधाइयां दे रही है, वहीं अमरीकी सैक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोम्पियो ने इसे अमरीकी कूटनीति तथा आतंकवाद के विरुद्ध विश्व समुदाय की जीत बताया है। फ्रांस ने भी इसे अपनी निजी जीत माना है क्योंकि उन्होंने यूरोपियन यूनियन पर दबाव डाल कर यूरोप में अजहर के विरुद्ध बैन लगवाया।

चीन द्वारा 10 वर्ष से लगाई अपनी आपत्तियों को हटा लेने के बाद मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में अमरीकी प्रयासों का नेतृत्व करने वाले संयुक्त राष्ट्र में अमरीकी मिशन को भी पोम्पियो ने बधाई दी है। पोम्पियो ने इस कूटनीतिक कदम में साथ देने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के अन्य दो स्थायी सदस्यों ब्रिटेन तथा फ्रांस की भी तारीफ की।

वास्तव में न्यूयॉर्क से यह खबर भी आई है कि 16 फरवरी से ही 6 देशों अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच इस मुद्दे पर चर्चा जारी थी और आपस में कई मुद्दों पर समझौतों के बाद (जहां सबकी विजय हो) ही सहमति पर पहुंचा जा सका।
 
सबसे पहले अमरीका चाहता था कि ईरान से भारत तेल खरीदना बंद करे और भारत चाहता था कि कश्मीर तथा अरुणाचल प्रदेश को भारतीय हिस्सों के रूप में चीन मान्यता दे, जैसा कि उसने सप्ताह भर पहले सम्पन्न दूसरे बी. आर.आई. सम्मेलन में पहली बार उन्हें भारतीय नक्शे में दिखा कर किया। दूसरी तरफ पाकिस्तान ने कहा कि मसूद की आतंकी कार्रवाई के रूप में पुलवामा हमले का जिक्र संयुक्त राष्ट्र काऊंसिल में न किया जाए (जो कि हुआ)।

चीन की मांग थी कि अमरीका के साथ व्यापार की बेहतर शर्तें तय हों और भारत उसकी ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना का हिस्सा बने। इस बीच फ्रांस तथा ब्रिटेन को भी चीन के साथ कुछ व्यापारिक मुद्दे हल करने थे। वार्ता के दौरान मेज पर विभिन्न मुद्दे रखे गए परंतु अंतत: किन-किन पर सहमति बनी, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है।

परंतु ‘यूनाइटेड नेशन्स चार्टर रैजोल्यूशन 1207’ के चैप्टर 8 के बारे में इतना तो एकदम स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय शांति कायम रखने तथा आतंकी संगठनों, विशेष रूप से मसूद अजहर जैसे आतंकियों को दी गई आजादी को खत्म करने पर इसने जोर दिया है। मसूद अजहर पर यात्रा प्रतिबंध होगा, कोई संगठन या व्यक्ति उसे हथियार दे या बेच नहीं सकेगा, टैरर फंङ्क्षडग पर सख्ती से लगाम लगेगी। नई पाबंदियों के तहत मसूद अजहर की सम्पत्तियों तथा आय स्रोतों की जांच होगी तथा उन्हें जब्त किया जाएगा।

मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र ने 2002 में ही वैश्विक आतंकी समूह घोषित कर दिया था। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के ताजा आदेशों के अंतर्गत यदि पाकिस्तान पूर्ण कार्रवाई करता है तो उस पर पाबंदियां वास्तव में सख्त हो सकती हैं। दूसरी ओर यह भी स्वाभाविक है कि जैश को फंड्स किसी नए नाम के तले मिल सकते हैं। कोई हथियार विक्रेता खुलेआम या कानूनन मसूद अजहर के संगठन को हथियार पहले भी नहीं देता था और अगर पाकिस्तान सरकार इसे छुपाने का काम जारी रखती है तो भी अजहर पर खास असर होने वाला नहीं है।

हमें भूलना नहीं चाहिए कि सुरक्षा परिषद् ने 1999 में यही प्रस्ताव तालिबान तथा अल कायदा के विरुद्ध अपनाया था। तब भी पाकिस्तान उनकी ढाल बना था। ऐसे में वैश्विक आतंकवाद का सामना करने के लिए कौन से अन्य पग उठाए जाने चाहिएं? यह एक खेदपूर्ण तथ्य है कि ईराक तथा सीरिया में इस्लामिक स्टेट के भारी विनाश के बावजूद 2001 की तुलना में अधिक देशों में तब से भी अधिक जिहादी संगठन सक्रिय हैं। श्रीलंका में बम धमाके तथा इंडोनेशिया के चुनाव दिखाते हैं कि आतंकी लड़ाके अब स्थानीय तथा वहाबी सर्वसत्तावादी तथा असहिष्णु विचारों से प्रेरित हैं।

नीति निर्माता, यहां तक के अमरीकी भी इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि केवल ताकत (आतंकियों को मारने तथा आतंकी षड्यंत्रों को नष्ट करने के लिए सैन्य कार्रवाई) के उपयोग से ही इस लड़ाई में जीत नहीं मिलेगी। वहीं युवाओं को भ्रमित करने वाले विचारों का खात्मा एक अलग ही कार्य है। ये विचार तथा आॢथक सहायता मुख्यत: सऊदी अरब जैसे देशों से आते हैं और अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने के मुद्दे पर साथ देने वाले सुरक्षा परिषद् के सभी सदस्यों के उसके साथ भी अच्छे संबंध हैं अत: सिर्फ हथियार बेचने जैसा कि अमरीका सऊदी अरब के साथ करता है, या सऊदी अरब से आर्थिक निवेश प्राप्त करना जैसा कि अन्य देश करते हैं, की बजाय यह उचित समय है कि न सिर्फ सऊदी अरब के साथ सख्तीपूर्वक बात की जाए बल्कि तुर्की, ईरान, क्यूबा, लीबिया, दक्षिण यमन ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तालिबानों के साथ भी बात की जाए। सिर्फ एक व्यक्ति को वैश्विक आतंकवादी चिन्हित करना एक कदम हो सकता है लेकिन युद्ध जीतना अभी दूर की बात है। 

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