फिलीपीन्स के चुनावों में पूर्व तानाशाह मार्कोस का बेटा मार्कोस जूनियर जीत के करीब

punjabkesari.in Monday, May 09, 2022 - 05:31 AM (IST)

एशिया-प्रशांत के सबसे मजबूत लोकतांत्रिक देशों की बात करें तो इसराईल से लेकर भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फिलीपीन्स के अलावा शायद ही कोई अन्य मजबूत लोकतंत्र नजर आता है। हालांकि, आज कई सफल लोकतंत्र भी जवाबदेही और आर्थिक पारदर्शिता की समस्याओं से जूझ रहे हैं। चुनावों और शासन के दौरान पुलिस की बड़ी भूमिका तो रही ही है लेकिन अब राजनीतिक दल चुनावों में सफलता के लिए दोस्ताना रुख रखने वाले टैलीविजन से लेकर सोशल मीडिया पर बहुत अधिक निर्भर हो चुके हैं। वे इसका इस्तेमाल अपनी छवि सुधारने के लिए कर रहे हैं। 

फिलीपींस भी इसका एक बड़ा उदाहरण है जहां आज 9 मई को मतदान होने जा रहा है। कुशासन और आर्थिक अपराधों तथा अनियमितताओं के विरुद्ध जनता के घोर विरोध के चलते इस देश के पूर्ववर्ती तानाशाह फर्डिनैंड मार्कोस को अपनी पत्नी इमेल्डा के साथ देश छोड़ कर भागना पड़ा था। 1986 में एक जनशक्ति क्रांति में अपदस्थ मार्कोस परिवार विश्व स्तर पर भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया था। जब क्रांतिकारियों ने राष्ट्रपति के महल पर धावा बोला तो उन्हें परिवार के बेशकीमती आयल पोर्टेट, स्वर्ण जडि़त एक जाकुजी बाथ टब, 15 मिंक कोट्स, 508  गाऊन और सबसे यादगार श्रीमती इमेल्डा मार्कोस के डिजाइनर जूतों की 3000 से अधिक जोडिय़ां मिलीं। इसके चलते वह बेहद बदनाम हो गई थीं। 

किसी को भी लगता होगा कि मार्कोस परिवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा खत्म हो गई है लेकिन ऑनलाइन झूठे प्रचार के माध्यम से इसे पुनर्जीवित किया गया है लेकिन इस बार के चुनावों में मार्कोस सीनियर के 64 वर्षीय बेटे और ‘बोंगबोंग मार्कोस’ के नाम से लोकप्रिय फर्डिनैंड मार्कोस जूनियर के जीतने की बड़ी सम्भावना जताई जा रही है। 

मार्कोस जूनियर को सुनने के लिए चुनावी रैलियों में लोगों की काफी ज्यादा भीड़ आई, उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग भारी बारिश में भी इक_े हुए। जानकारों के अनुसार उसकी लोकप्रियता का एक मुख्य कारण सोशल मीडिया और टैलीविजन पर उसकी छवि को निखार कर उसके पक्ष में माहौल बनाना है। कहा जा रहा है कि मार्कोस जूनियर अपनी लोकप्रियता के कारण पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आ सकता है। अगर ऐसा होता है तो वह तीन दशक बाद पूर्ण बहुमत के साथ फिलीपींस काराष्ट्रपति बनने वाला पहला व्यक्ति होगा। 

मार्कोस जूनियर के आलोचकों का कहना है कि उसने काले धन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल से अपने पक्ष में माहौल बनाया है। साथ ही उसे वंशवादी मदद मिली है। मार्कोस सीनियर के उस दौर को एक लंबा अर्सा बीत चुका है इसलिए नई पीढ़ी के लोग इस प्रकार के अभियानों से काफी प्रभावित हो रहे हैं। इतिहास का यह हेरफेर इतना व्यापक रहा है कि कई लोग गलत सूचनाओं पर दिल से विश्वास करने लगे हैं। 

हालत यह है कि कई लोगों के बीच यह धारणा बना दी गई है कि मार्कोस का तानाशाही शासन वास्तव में देश के लिए ‘स्वर्ण युग’ था-वह भी इस सच्चाई के बावजूद कि उसके शासन में अर्थव्यवस्था बदहाली के कगार पर थी और विदेशी बैंकों के कर्ज के भार से दब चुकी थी। 1972 में देश में मार्शल लॉ लगा दिया गया था। उसके बाद जो नेता सत्ता में आए, वे लोगों को रिझाने में कुछ विशेष सफल नहीं हो सके। इसी बात का लाभ अब मार्कोस जूनियर को मिल रहा है। 

उसकी टीम सोशल मीडिया पर मार्कोस सीनियर की छवि सुधारने के लिए भी कई तरह के अभियान चला रही है जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया पर मार्कोस सीनियर के शासनकाल को ‘अच्छे दिन’ बताया जा रहा है। हालांकि, इस सबके बावजूद ऐसा नहीं है कि मार्कोस जूनियर के लिए यह जीत आसान रहने वाली है।  विरोधी दल उन पर टैक्स चोरी का आरोप लगा कर उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य घोषित करने की मांग करते आ रहे हैं। 

मार्कोस को व्यापक रूप से चीन के साथ अधिक मित्रवत के रूप में देखा जाता है और उनकी वर्तमान साथी (उपराष्ट्रपति), जोकि वर्तमान राष्ट्रपति दुतेर्ते की बेटी सारा है, वर्षों से लंबित मनीला के क्षेत्रीय दावों को बीजिंग से द्विपक्षीय रूप से निपटना चाहती है। अगर मार्कोस राष्ट्रपति पद के लिए चुना जाता है तो 20 वर्षों से मनीला में बैठे अमरीकी बलों की जगह चीन के हक में एक जमीन तैयार हो जाएगी। उसकी जीत गणतंत्र की हार और झूठे सोशल मीडिया की जीत मानी जाएगी।


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