‘अल-नीनो’ ने गर्मी और सूखे से मारा ‘ला-नीना’ बाढ़ और वर्षा से मारेगा

Monday, May 02, 2016 - 01:26 AM (IST)

फरवरी 2015 में शुरू हुआ अल-नीनो का मौसम चक्र पिछले 100 वर्षों में अब तक का सर्वाधिक भयानक और शक्तिशाली मौसम चक्र है। इसके प्रभाव से व्यापक स्तर पर पड़े सूखे तथा भीषण गर्मी ने कई क्षेत्रों में खाद्यान्न एवं पेयजल संकट खड़ा कर दिया जिससे कृषि बुरी तरह प्रभावित हुई। भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों में लगभग 650 अरब रुपए की सम्पत्ति नष्ट हुई तथा असंख्य लोगों की मृत्यु हुई है। 

 
इक्वाडोर और पेरू के निकट प्रशांत महासागर के पानी के असामान्य रूप से गर्म होने से समस्त विश्व में मौसम असामान्य हुआ है। अल-नीनो के कारण दक्षिणी अमरीका से दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया की ओर बहने वाली हवाओं की गति धीमी पड़ जाती है जिससे उसके ऊपर के वातावरण में शुष्कता बढ़ जाती है। 
 
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि समय-समय पर अल-नीनो से कृषि उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है और 2015 के अल-नीनो का प्रभाव 1997 से लेकर अब तक सर्वाधिक भयानक रहा है। 
 
अल-नीनो के परिणामस्वरूप महासागरों का जल सामान्य से कहीं अधिक गर्म हो जाता है। पिछले कई वर्षों से भारत में अधिक गर्मी अल-नीनो की वजह से ही पड़ रही है। 
 
इसी के परिणामस्वरूप इस समय भारत तथा अन्य एशियाई देशों में जान-माल की भारी क्षति हुई है जिसकी भरपाई लम्बे समय तक नहीं हो पाएगी। भारत में लगभग एक दर्जन राज्य अल-नीनो के चलते सूखे की लपेट में हैं और कुछ राज्यों में तो हालत बहुत ही खराब है।
 
यहां तक कि महाराष्ट के औरंगाबाद तथा एलोरा आदि में राज मार्गों पर बने होटलों में शौचालय की सुविधा बंद कर दी गई है। पीड़ित परिवारों ने तो सभा-समारोहों में भी जाने से संकोच करना शुरू कर दिया है क्योंकि उनके अनुसार घूमने-फिरने और जश्न मनाने का मतलब है अधिक पानी का खर्च होना।
 
अधिकांश जलवायु मॉडलों के पूर्वानुमान के अनुसार मई 2016 से पहले सामान्य स्थिति बहाल होने की कोई आशा नहीं है। अगले कुछ महीनों में इसका प्रभाव तो कम होने की आशा है तथा मानसून आने तक अल-नीनो कमजोर पड़ जाएगा और इसके बाद ला-नीना आएगा जो वर्षा लाएगा। 
 
सामान्य तौर पर सूखा, गर्मी और भारी अनावृष्टि का कारण बनने वाले अल-नीनो के बाद ला-नीना आया करता है जिसका प्रभाव अल-नीनो से सर्वथा विपरीत होता है। यह किसानों के चेहरों पर चमक लौटा सकता है।
 
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार 2016-17 में आने वाला ला-नीना मौसम और मानसून दोनों को कृषि के अनुकूल रखेगा क्योंकि जब-जब अल-नीनो के बाद ला-नीना आता है तो उससे फसल बहुत अच्छी होती है और जिन वर्षों में अल-नीनो के बाद भारत में ला-नीना आया उन वर्षों में भारत में कृषि की औसत वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत थी जो सामान्य अवधि की औसत से काफी अधिक है। लिहाजा इस वर्ष अच्छे मानसून की आशा की जा रही है।  
 
परंतु ला-नीना के साथ भी एक समस्या है। इसके आने पर प्रशांत महासागर के पूर्व तथा मध्य भाग में समुद्री सतह के औसत तापमान में असामान्य रूप से ठंडी स्थिति पैदा हो जाती है जिसे अनेक मौसम वैज्ञानिक ‘अल वेइजो’ या ‘कोल्ड इवैंट’ कहते हैं। 
 
एशिया में इसका प्रभाव अधिक होगा तथा इसके परिणामस्वरूप यहां भीषण वर्षा, बाढ़ और भू-स्खलन की आशंका है। जहां अल-नीनो की विदाई का समाचार राहत देने वाला है और ला-नीना के आने से इस वर्ष पिछले वर्षों की अपेक्षा अच्छी वर्षा और फसल की आशा जगी है वहीं मौसम वैज्ञानिकों द्वारा ला-नीना के चलते भारी वर्षा, भीषण बाढ़ों और भू-स्खलनों आदि की आशंका कुदरती तौर पर चिंता बढ़ाने वाली है।
 
हमारे शासकों को इसका आभास हो न हो, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हमारे देश में तो सामान्य बाढ़ की स्थिति से निपटना भी प्रशासन के लिए कठिन हो जाता है। ऐसे में यदि देश को सामान्य से अधिक वर्षा और बाढ़ों का सामना करना पड़ा तब क्या होगा?   
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