बुजुर्गों की समस्याएं सुलझाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई जाएं

Tuesday, Aug 01, 2017 - 10:08 PM (IST)

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जमाना बदल गया है। अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद कलियुगी संतानें अपने माता-पिता की ओर से आंखें फेर लेती हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य किसी न किसी तरह अपने बुजुर्गों की सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है जिस कारण भारत में बुजुर्ग विभिन्न शारीरिक और मानसिक समस्याओं का शिकार हो रहे हैं। 

इसी परिप्रेक्ष्य में देश भर से 50,000 बुजुर्गों से प्राप्त फीड बैक के आधार पर एक एन.जी.ओ. ‘एजवैल फाऊंडेशन’ ने अपने अध्ययन में खुलासा किया है कि भारत में अपने परिजनों की उपेक्षा के कारण प्रत्येक 100 में से 43 बुजुर्ग मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार हो गए हैं। ‘‘लगभग 50 प्रतिशत बुजुर्गों की उनके परिवार वाले देखभाल नहीं करते और लगभग 45 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि उनके परिवार के सदस्य उनकी जरूरतों और रुचियों की ओर कोई ध्यान नहीं देते।’’ इसी को देखते हुए फाऊंडेशन ने भारत सरकार तथा अन्य संबंधित पक्षों  से बुजुर्गों के कल्याण और उनके सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए सरकारी योजनाओं में उनके लिए आवश्यक प्रावधान करने का सुझाव दिया है। फाऊंडेशन के अनुसार, ‘‘देश में आ रहे सामाजिक-आर्थिक बदलावों और जीवनकाल में वृद्धि से जनसंख्या में बढ़ रही भागीदारी के चलते बुजुर्ग सर्वाधिक कुप्रभावित हुए हैं। अत: सभी सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों में तत्काल बुजुर्गों के अनुकूल प्रावधान करने की आवश्यकता है।’’ 

इसी प्रकार परिजनों द्वारा बुजुर्गों के लगातार बढ़ रहे उत्पीडऩ को देखते हुए एक अन्य एन.जी.ओ. ने कहा है कि: चिकित्सा सुविधाओं में विकास से आज मनुष्य की आयु बढ़ गई है परंतु बड़ी संख्या में वर्तमान पीढ़ी के सदस्य अपने बुजुर्गों की देखभाल नहीं करते जिससे वे अपने ही घर या वृद्धाश्रमों में अकेले रहने को विवश हैं। एकल परिवारों का चलन बढऩे से भी परिवारों में बुजुर्गों के लिए जगह नहीं रही और उनके लिए कोई विशेष सामाजिक सुरक्षा योजना न होने के कारण जिंदा रहने की खातिर दूसरों पर उनकी निर्भरता बढ़ गई है। विशेष देखभाल, स्नेह और सम्मान से वंचित होने के कारण बुजुर्ग मधुमेह, हाईपरटैंशन, पाचन प्रणाली की तकलीफों और अंगों के नाकारापन जैसी समस्याओं का शिकार हो रहे हैं। 

इसी को देखते हुए एन.जी.ओ. ने सुझाव दिया है कि: अपने ही परिवार के सदस्यों के हाथों उत्पीड़ित बुजुर्गों के लिए कम से कम 5000 रुपए की मासिक पैंशन शुरू की जाए। देश भर में बुजुर्गों के लिए सरकारी अस्पतालों में श्रेष्ठ चिकित्सा और दवाओं की उपलब्धता यकीनी बनाई जाए और इसमें कोई भ्रष्टाचार न हो। बहुओं सहित अपने बुजुर्गों का उत्पीडऩ करने वालों को कठोरतम दंड दिया जाए और इसके लिए कानून में आवश्यक संशोधन किया जाए। माता-पिता और वरिष्ठï नागरिक के भरण-पोषण व कल्याण कानून-2007 के संबंध में बुजुर्गों को बताने के लिए इसका व्यापक प्रचार किया जाए ताकि वे अपने उत्पीड़कों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने के साथ-साथ उनसे भरण-पोषण भत्ता लेने संबंधी दावा कर सकें। बुजुर्गों की समस्याओं का समाधान करने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें कायम की जाएं और उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध की जाए। पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में सीनियर सिटीजन हैल्प लाइन के बारे में  मीडिया के माध्यम से लोगों को बताया जाए। 

बच्चों को अपने दादा-दादी और बुजुर्गों की अहमियत बताई जाए और साथ ही उन्हें संयुक्त परिवार प्रणाली के लाभों की जानकारी दी जाए। हमें नहीं भूलना चाहिए कि बुजुर्गों की समस्याओं की उपेक्षा और उनका समाधान न करने से हमारे सामाजिक विकास में भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा जिससे अंतत: सारा सामाजिक ढांचा ही बिगड़ जाएगा। लिहाजा उक्त सुझावों की रोशनी में उत्पीड़ित बुजुर्गों की समस्याओं पर फोकस करके उनकी समस्याएं सुलझाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाने, पैंशन लगाने, इलाज यकीनी बनाने तथा उनका उत्पीडऩ करने वालों के लिए कठोर दंड प्रावधान करने की आवश्यकता है।—विजय कुमार 

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