जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला की रिहाई लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करने की दिशा में कदम

punjabkesari.in Saturday, Mar 14, 2020 - 03:25 AM (IST)

अंतत: केंद्र सरकार ने पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट (पी.एस.ए.) के अंतर्गत 7 महीनों से अधिक समय से अपने घर में नजरबंद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला को 13 मार्च को रिहा कर दिया जिसे केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में निलंबित पड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। 

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर पर सर्वाधिक समय तक अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी नैशनल कांफ्रैंस का ही शासन रहा। अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढिय़ों के सदस्य स्वयं शेख अब्दुल्ला, उनके पुत्र फारूक अब्दुल्ला और फिर फारूक अब्दुल्ला के पुत्र उमर अब्दुल्ला प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फारूकअब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला दोनों के ही भाजपा व कांग्रेस से संबंध रहे हैं। जहां वाजपेयी सरकार में उमर अब्दुल्ला विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं वहीं मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार में फारूक अब्दुल्ला अक्षय ऊर्जा मंत्री रहे। 

अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में कुछ समय अलगाववादी संगठन जे.के.एल.एफ. से जुड़े रहे डा. फारूक अब्दुल्ला पर ये आरोप भी लगते रहे हैं कि वह दोहरे व्यक्तित्व वाले राजनीतिज्ञ हैं जो कभी पूर्णत: राष्ट्रवादी दिखाई देते हैं तो कभी अपने विवादास्पद बयानों से भिन्न नजर आते हैं। उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि वह कश्मीर में कुछ बोलते रहे हैं, जम्मू में कुछ तथा दिल्ली में कुछ और ही बोलते रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व पी.ओ.के. को पाकिस्तान का हिस्सा बता चुके डा. फारूक अब्दुल्ला ने 25 नवम्बर, 2017 को दोहराया था कि ‘‘पाक अधिकृत कश्मीर भारत की बपौती नहीं है।’’ इसी प्रकार 15 जनवरी, 2018 को उन्होंने श्रीनगर में कहा, ‘‘पाकिस्तान की बर्बादी के लिए भारत ही जिम्मेदार है।’’ 

5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने, राज्य के पुनर्गठन और इसे केंद्र शासित क्षेत्र बनाने की घोषणा से एक दिन पूर्व 4 अगस्त, 2019 की रात को राज्य के 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती एवं अन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया गया और 17 सितम्बर, 2019 से उन्हें पी.एस.ए. (पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट) के अंतर्गत हिरासत में रखा गया। फारूक अब्दुल्ला तथा अन्य नेताओं की रिहाई का मामला संसद में उठता रहा है और कई विपक्षी पाॢटयों द्वारा केंद्रीय भाजपा सरकार से इनकी जल्द से जल्द रिहाई की मांग भी की जा रही थी।

उल्लेखनीय है कि पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट (पी.एस.ए.) जम्मू-कश्मीर में तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने जंगलों की लकड़ी की तस्करी रोकने के लिए लागू किया था जिसे बाद में प्रदेश में सक्रिय आतंकवादियों पर लागू किया जाने लगा और जब राज्य में आतंकवाद धीमा पडऩे लगा तो यह कानून नशा तस्करों के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाने लगा और इसी कानून के अंतर्गत फारूक तथा उमर अब्दुल्ला की गिरफ्तारी हुई। विरोधी पार्टियों की ओर से केंद्र सरकार को भेजे गए संयुक्त प्रस्ताव में कहा गया था कि ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में लोकतांत्रिक सहमति को आक्रामक प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा दबाया जा रहा है।’’‘‘इसने संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के बुनियादी सिद्धांतों को जोखिम में डाल दिया है तथा लोकतांत्रिक मानदंडों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता पर हमले बढ़ रहे हैं।’’ 

कुछ दिन पूर्व केंद्र सरकार ने कहा था कि अब चूंकि जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं इसलिए पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित हिरासत में लिए गए तमाम नेताओं को रिहा कर दिया जाएगा और इसी कड़ी में 13 मार्च को डा. फारूक अब्दुल्ला को रिहा करने के आदेश जारी किए गए। राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा है कि केंद्र सरकार द्वारा डा. फारूक की रिहाई का एक कारण राज्य में ठप्प पड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना भी है जिसके लिए इसने हिरासत में लिए राजनीतिज्ञों को रिहा करने का सिलसिला शुरू किया है। समझा जाता है कि आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में नजरबंद किए गए अन्य नेता भी रिहा किए जाएंगे। महबूबा मुफ्ती के विश्वस्त साथी अल्ताफ बुखारी द्वारा पी.डी.पी. से विद्रोह करके ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी के गठन को भी फारूक की रिहाई का एक कारण माना जा रहा है जो राज्य की राजनीति में सक्रिय होने जा रही है।—विजय कुमार


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