फारूक अब्दुल्ला अपने बयानों से प्रदेश की क्या सेवा कर रहे हैं

Wednesday, Nov 29, 2017 - 12:59 AM (IST)

जम्मू-कश्मीर पर सर्वाधिक समय तक अब्दुल्ला परिवार और उनकी नैशनल कांफ्रैंस का ही शासन रहा। उमर अब्दुल्ला के बाद 1 मार्च, 2015 को प्रदेश में पी.डी.पी. की सरकार बनी और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने जिनकी 7 जनवरी, 2016 को मृत्यु के बाद महबूबा मुफ्ती ने भाजपा की सत्ता में भागीदारी के साथ 4 अप्रैल, 2016 को मुख्यमंत्री का पद संभाला।

जहां अब्दुल्ला परिवार के शासनकाल के दौरान पी.डी.पी. द्वारा आलोचनात्मक स्वर उठाए जाते रहे वहीं इस समय जबकि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के सफाए के लिए आप्रेशन ‘आल आऊट’ चलाया जा रहा है, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैकां प्रमुख डा. फारूक अब्दुल्ला अपने बयानों से नए विवाद खड़े कर रहे तथा युवाओं में उकसाहट पैदा कर रहे हैं :

25 फरवरी, 2017 को उन्होंने श्रीनगर में पार्टी वर्करों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘नई पीढ़ी के आतंकवादी आजादी के लिए लड़ रहे हैं। इन लड़कों ने खुदा से वादा किया है कि वे अपनी जान देकर भी मुल्क के लिए आजादी हासिल करेंगे। कश्मीरियों की नई पीढ़ी डरती नहीं उसे बंदूकों का भी कोई खौफ नहीं है। ये लड़के विधायक, सांसद या मंत्री बनने के लिए कुर्बान नहीं हो रहे, अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं क्योंकि यह हमारी जमीन है और हम ही इसके मालिक हैं।’’

11 नवम्बर को फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘पी.ओ.के. पाकिस्तान का है। यह चीज नहीं बदलेगी। कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के पास है वह उसी का है। इसको लेकर चाहे कितने भी युद्ध या वार्ताएं दोनों देशों के बीच हो जाएं सच पर कोई असर नहीं होगा।’’

15 नवम्बर को फारूक अब्दुल्ला ने उड़ी में कहा, ‘‘कब तक बेगुनाहों का खून बहता रहेगा। हम कब तक यह कहते रहेंगे कि पी.ओ.के. हमारा हिस्सा है। यह (पी.ओ.के.) उनके बाप की जागीर नहीं है।’’

‘‘आज वे (भारत) दावा करते हैं कि ये हमारा है। तो इसे (पी.ओ.के.) हासिल कर लीजिए, हम भी कह रहे हैं कि कृपया इसे (पाकिस्तान से) हासिल कर लीजिए। हम भी देखेंगे। वे (पाकिस्तान) इतने कमजोर नहीं हैं और उन्होंने कोई चूडिय़ां नहीं पहन रखी हैं। उनके पास भी एटम बम है।’’

25 नवम्बर को उन्होंने पी.ओ.के. पर भारत के दावे को लेकर कहा कि  ‘‘पी.ओ.के. भारत की बपौती नहीं है। भारत कश्मीर पर बाप-दादा से मिली जायदाद की तरह दावा नहीं कर सकता है।’’

27 नवम्बर को फारूक अब्दुल्ला ने कहा ‘‘भाजपा वाले पी.ओ.के. में झंडा फहराने की बात करते हैं अगर हिम्मत है तो वे पहले श्रीनगर के लाल चौक में झंडा फहरा कर दिखाएं।’’

जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद के दौर के दौरान सभी दलों ने अपने सदस्य खोए हैं जिसमें पी.डी.पी. और नैशनल कांफ्रैंस भी शामिल हैं, ऐसे में फारूक अब्दुल्ला जैसे वरिष्ठï नेता द्वारा इस तरह के बयान देना उचित नहीं लगता।

हर दूसरे दिन होने वाले बंद और प्रदर्शनों के कारण प्रदेश के पर्यटन और व्यवसाय को काफी क्षति पहुंच चुकी है। बच्चोँ की शिक्षा प्रभावित हो रही है। चाहे वे पुलिस में हों या सेना में, कश्मीरी बच्चे मारे जा रहे हैं जबकि अलगाववादियों के अपने बच्चे और परिवार प्रदेश से बाहर सुरक्षित स्थानों में रहते, शादी-विवाह रचाते, पढ़ाई और इलाज आदि करवाते हैं।

यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि पी.डी.पी. और नैकां दोनों के ही भाजपा से संबंध रहे हैं। उमर अब्दुल्ला वाजपेयी सरकार में विदेश राज्य मंत्री रह चुके हैं और अब जम्मू-कश्मीर में भाजपा के सहयोग से पी.डी.पी. की महबूबा मुफ्ती की सरकार है।

जब उमर अब्दुल्ला प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब पी.डी.पी. वाले उनके विरुद्ध शोर मचाते थे और अब जबकि पी.डी.पी. वाले भाजपा के साथ सत्तारुढ़ हैं तो अब्दुल्ला परिवार बयानों से विवाद पैदा कर रहा है और आम लोग इसमें पिस रहे हैं।

डा. फारूक अब्दुल्ला एक बुजुर्ग राजनीतिज्ञ हैं अत: उनसे प्रदेश के हालात सुधारने की अपेक्षा की जाती है, ऐसे बयान देकर हालात बिगाडऩे की नहीं। समय की आवश्यकता तो यह है कि आपस में परस्पर सहमति से राज्य में ऐसा माहौल पैदा किया जाए जिससे यहां शांति बहाली में सहायता मिले।     —विजय कुमार

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