प्रसिद्ध ब्रांडेड कंपनियों का दूध भी हानिकारक पदार्थों से मुक्त नहीं

punjabkesari.in Monday, Oct 21, 2019 - 12:24 AM (IST)

भारत विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2017-18 में लगभग 176.35 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था। पिछले काफी समय से दूध की गुणवत्ता गिरने संबंधी देशव्यापी शिकायतों को देखते हुए ‘फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया’ (एफ.एस.एस.ए.आई.) ने देश भर में दूध के प्रमुख ब्रांडों की गुणवत्ता की जांच करने के लिए एक देशव्यापी अध्ययन करवाया।

18 अक्तूबर को जारी की गई इस अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना और उसके बाद मध्य प्रदेश तथा केरल से लिए गए दूध के नमूनों में सर्वाधिक मिलावट पाई गई। इन नमूनों, जिनमें प्रमुख ब्रांडों का दूध भी शामिल था, की जांच के बाद 37.7 प्रतिशत दूध के नमूने निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में नाकाम पाए गए जबकि सुरक्षा मापदंडों पर भी 10.4 प्रतिशत नमूने खरे नहीं उतर पाए। एफ.एस.एस.ए.आई. के सी.ई.ओ. पवन अग्रवाल के अनुसार इस अध्ययन के लिए मई और अक्तूबर 2018 के बीच देश भर से दूध के कुल 6432 नमूने लिए गए थे। इसमें लगभग 40.5 प्रतिशत प्रोसैस्ड दूध और शेष कच्चा दूध था। 

प्रोसैस्ड दूध के 2607 नमूनों में से 10.4 प्रतिशत नमूने एफ.एस.एस.आई. के मापदंडों पर फेल साबित हुए जिनमें एफ्लाटोक्सिन-एम 1, एंटी बायोटिक्स और कीटनाशकों जैसे पदार्थ पाए गए जबकि कच्चे दूध के कुल 3825 नमूनों में से 47 प्रतिशत नमूने मापदंडों पर फेल पाए गए। गुणवत्ता के मामले में पाया गया कि प्रोसैस्ड दूध के 37.7 प्रतिशत नमूनों में वसा, माल्टोडैक्सट्रिन और चीनी तथा कीटनाशकों जैसे हानिकारक तत्वों की अनुमति से अधिक मात्रा मौजूद होने के कारण वे गुणवत्ता के मापदंडों पर खरे नहीं उतरे। इनमें से 6 नमूनों में हाईड्रोजन पैराक्साइड, 3 में डिटर्जैंट और 2 में यूरिया पाया गया जबकि एक अन्य नमूने में भी अखाद्य पदार्थ पाया गया। 

श्री पवन अग्रवाल ने उक्त अध्ययन जारी करने के बाद कहा है कि, ‘‘आम आदमी का तो यह मानना है कि दूध में मिलावट अधिक है, परंतु हमारे अध्ययन से यह पता चलता है कि दूध में मिलावट की तुलना में संदूषण एक गंभीर समस्या थी। प्रोसैस्ड दूध के प्रसिद्ध और बड़े ब्रांडों तक में भी  इस प्रकार के संदूषक पदार्थों का पाया जाना कदापि स्वीकार्य नहीं है।’’ इसी कारण इस रिपोर्ट के बाद एफ.एस.एस.ए. आई. ने संगठित डेयरी क्षेत्र को 1 जनवरी 2020 तक गुणवत्ता मापदंडों का पालन करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि, बड़ी मात्रा में लेने पर एफ्लाटोक्सिन-एम 1 आमतौर पर लीवर को क्षतिग्रस्त करके जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं। 

आमतौर पर एफ्लाटोक्सिन-एम 1 दूध में आहार और चारे के रूप में पहुंचता है जिस पर नियंत्रण के लिए फिलहाल देश में कोई नियम लागू नहीं है और यह पहला मौका है जबकि भारत में दूध में हानिकारक अवशिष्टï पदार्थों की मौजूदगी के संबंध में विस्तृत अध्ययन किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में इन हानिकारक अवशिष्टï पदार्थों की जांच करने के लिए कोई उचित प्रयोगशाला नहीं है तथा ऐसी टैसिं्टग मशीनें देश में मंगवाने की कोशिश की जा रही है जो दूध में एफ्लाटोक्सिन-एम 1 का पता लगा सकें। 

तो क्या अब सरकार को दूध की गुणवत्ता का पालन करने वाली विदेशी कम्पनियों को भारत में आने के लिए अनुमति देनी पड़ेगी या तब तक बादाम या सोया मिल्क को बढ़ावा दिया जाएगा अथवा फिर जल्दी से जल्दी ऐसा कानून बनाना होगा जिसमें मिलावट करने वालों को कड़ा दंड दिया जाए।


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