सत्ता पाने के लिए सब कुछ किया जा रहा है और इस हमाम में सभी नंगे हैं

punjabkesari.in Saturday, Feb 08, 2020 - 01:39 AM (IST)

महाराष्ट्र में गत वर्ष चुनावों में शिवसेना-भाजपा का गठबंधन टूटने के बाद अचानक राकांपा सुप्रीमो शरद पवार (जो पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और फिर केंद्र की कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे) के भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अजीत पवार अपने साथियों सहित भाजपा से जा मिले जिसकी बदौलत 23 नवम्बर, 2019 को देवेंद्र फडऩवीस ने मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ ग्रहण की और अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बनाए गए। 

शपथ ग्रहण के मात्र 72 घंटों के भीतर ही 26 नवम्बर को यह सरकार संकट में आ गई और फ्लोर टैस्ट से पहले ही देवेंद्र फडऩवीस तथा अजीत पवार के इस्तीफे से सरकार जाती रही परंतु इससे पहले 25 नवम्बर को ए.सी.बी. ने अजीत पवार के विरुद्ध चल रहे सिंचाई घोटाले बारे 9 मामले ‘सबूतों के अभाव’ में बंद कर दिए जिससे वह आरोप मुक्त हो गए।

उल्लेखनीय है कि अजीत पवार करोड़ों रुपए के सिंचाई घोटाले में आरोपी थे और भाजपा स्वयं इस मुद्दे पर उन्हें कई बार घेर चुकी थी। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने स्वयं कई बार उनको जेल भिजवाने की बात कही थी। महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो ने 2018 में अजीत पवार को 70,000 करोड़ के कथित सिंचाई घोटाले में आरोपी ठहराया था। 23 नवम्बर को फडऩवीस सरकार के शपथ ग्रहण का समाचार आते ही शिवसेना ने आरोप लगाया था कि‘‘अजीत पवार ने जेल जाने से बचने के लिए भाजपा से हाथ मिलाया है।’’ परंतु उद्धव ठाकरे ने 28 नवम्बर को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण करने के बाद जब 30 दिसम्बर को अपना मंत्रिमंडलीय विस्तार किया तो उन्होंने भी अजीत पवार को फिर उपमुख्यमंत्री बना दिया। 

जहां शिवसेना नीत उद्धव ठाकरे की सरकार में अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बनने में सफल रहे वहीं अब राकांपा सुप्रीमो शरद पवार की अध्यक्षता वाले मराठवाड़ा में जालना जिले के पथरवाला गांव में स्थित  ‘वसंत दादा चीनी संस्थान’ (वी.एस.आई.) को कौडिय़ों के भाव 51.33 हैक्टेयर जमीन अलाट करने के मामले में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आलोचना के घेरे में आ गए हैं। उल्लेखनीय है कि 1975 में बड़े चीनी मिल मालिकों द्वारा स्थापित पुणे स्थित वी.एस.आई. को देश के अग्रणी चीनी अनुसंधान एवं शिक्षा संस्थानों में एक माना जाता है। वर्तमान ‘महाराष्ट्र विकास अघाड़ी’ सरकार के और भी कई वरिष्ï मंत्री इस संस्थान के सदस्य हैं। 

इनमें  उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, राजस्व मंत्री दिलीप वलसे पाटिल, वित्त मंत्री जयंत पाटिल (सभी राकांपा), राजस्व मंत्री बाला साहब थोरट (कांग्रेस) के अलावा गवॄनग कौंसिल में 2 अन्य मंत्री राजेश टोपे (राकांपा) और सतेज पाटिल (कांग्रेस) भी शामिल हैं। अपनी सरकार बनने के कुछ ही समय बाद उद्धव ठाकरे ने इस संस्थान का दौरा भी किया तथा कहा कि यह जमीन सरकार ने ‘विशेष मामला’ बताते हुए उक्त संस्थान को अलाट की है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि नियमों को ताक पर रख कर यह जमीन अलाट की गई है जिसका बाजार मूल्य लगभग 10 करोड़ रुपए है। 

महाराष्ट्र के कृषि विभाग द्वारा बीज फार्म कायम करने के लिए राज्य सरकार ने इस जमीन का अधिग्रहण किया था। राजस्व विभाग ने तर्क दिया था कि 1997 के सुप्रीमकोर्ट के फैसले के अनुसार रियायती आधार पर इस जमीन की अलाटमैंट नहीं की जा सकती। राजस्व विभाग ने यह भी कहा था कि जिस उद्देश्य के लिए इस जमीन का अधिग्रहण किया गया है उसी उद्देश्य से इस जमीन का इस्तेमाल होना चाहिए परंतु उद्धव सरकार ने राजस्व विभाग और वित्त विभाग के अलावा राज्य के महाधिवक्ता की आपत्तियों की उपेक्षा करते हुए शरद पवार के संस्थान को सस्ते दाम पर यह जमीन अलाट कर दी है। 

देवेंद्र फडऩवीस सरकार में शामिल होने पर अजीत पवार को सिंचाई घोटाले में क्लीन चिट मिलना और बाद में उनका शिवसेना नीत सरकार में शामिल होना तथा शिवसेना सरकार द्वारा शरद पवार की अध्यक्षता वाले संस्थान को कौडिय़ों के भाव जमीन अलाट करना सत्ता प्राप्ति के लिए तुष्टीकरण के मुंह बोलते उदाहरण हैं जिससे यह स्पष्टï होता है कि सत्ता के लिए सब कुछ किया जा सकता है और अधिकांश पाॢटयां इसमें संलिप्त हैं।—विजय कुमार 


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