आज भी मौजूद हैं ‘श्रवण कुमार’ जैसे बेटे-बेटियां
punjabkesari.in Wednesday, Aug 09, 2023 - 05:05 AM (IST)

धर्मग्रंथों में लिखा है कि जो मनुष्य अपने माता-पिता और घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा-सत्कार करते हैं, उन्हें किसी मंदिर में जाने की आवश्यकता नहीं रह जाती। पिता-पुत्र के संबंधों को उजागर करते हुए हमारे धर्म ग्रंथों में अनेक उदाहरण मिलते हैं। इनमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र, देवव्रत (भीष्म पितामह) और श्रवण कुमार आदि के नाम सर्वोपरि हैं।
जहां श्री राम और देवव्रत (भीष्म पितामह) ने अपने-अपने पिता महाराज दशरथ तथा शांतनु के वचन पालन की खातिर प्रसन्नतापूर्वक राज सिंहासनों का त्याग कर दिया, वहीं श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता-पिता की इच्छापूर्ति के लिए उन्हें कांवड़ में बिठाकर तीर्थयात्रा करवाई। आज भी कुछ संतानें मौजूद हैं जो अपने माता-पिता की प्रसन्नता के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहती हैं। हाल ही में जोधपुर की रहने वाली 2 बहनें कोमल और टीना अपनी नेत्रहीन मां ‘सागर कंवर’ की इच्छा पूरी करने के लिए उन्हें मारवाड़ का महाकुंभ कहलाने वाली ‘भोगिशैल परिक्रमा’ में पैदल यात्रा करवाने के लिए हाथ पकड़ कर लेकर गईं। इसी प्रकार का उदाहरण ‘इकहरा करहल’ (मैनपुरी) निवासी राधेश्याम (95) और उनकी पत्नी रामपूर्ति देवी (90) के पुत्रों ने पेश किया है।
इन दिनों सावन का महीना चल रहा है और राधेश्याम व रामपूर्ति देवी की सावन माह में गंगा में स्नान करने की इच्छा हुई। उन्होंने यह बात अपने 8 पुत्रों महेंद्र, गोविंद, गोपाल, आकाश, विकास, पंकज, अर्जुन और इशांत को बताई तो वे उनकी इच्छा पूरी करने के लिए उन्हें कांवड़ में बैठाकर 170 किलोमीटर दूर ‘लहरा गंगा घाट’ के लिए निकल पड़े और इन दिनों अपने माता-पिता को मंदिरों के दर्शन करवा रहे हैं। उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि आज भी ऐसी संतानें मौजूद हैं जो अपने माता-पिता के लिए कुछ भी कर सकती हैं। अपने माता-पिता की उपेक्षा करने वाली संतानों को इनसे शिक्षा लेनी चाहिए।—विजय कुमार