21 दिन के भीतर माता-पिता का घर खाली करें दिल्ली सरकार का सही पग

Wednesday, Mar 01, 2017 - 12:13 AM (IST)

किसी समय भारत में संतानें अपने माता-पिता को देवतुल्य मान कर उन्हें असीम आदर-सत्कार देती थीं परन्तु आज यहां बड़ी संख्या में बुजुर्ग अपनी ही संतानों द्वारा उपेक्षित और उत्पीड़ित किए जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत बुजुर्गों को अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी संतानों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है और अपने बेटों-बहुओं, बेटियों तथा दामादों के हाथों दुव्र्यवहार एवं अपमान झेलना पड़ता है। 

अक्सर ऐसे बुजुर्ग मेरे पास आते रहते हैं जिन्हें उनकी संतानों ने जमीन, जायदाद अपने नाम लिखवा लेने के बाद बेसहारा छोड़ दिया है। इसी पृष्ठभूमि में कुछ राज्य सरकारों ने बुजुर्गों के भरण-पोषण को सुनिश्चित बनाने के लिए कानून तो बना रखे हैं परन्तु भारतीय अदालतों पर मुकद्दमों के भारी बोझ के चलते, अदालती प्रक्रिया बहुत लम्बी होने और आमतौर पर पांच से सात वर्ष तक का समय लग जाता है। इस कारण कई बार तो पीड़ित पक्ष न्याय की आशा में ही संसार से विदा हो जाता है। 

कुछ समय पूर्व एक सर्वे रिपोर्ट में बताया गया था कि राजधानी दिल्ली में 2011 की जनगणना के अनुसार बुजुर्गों की संख्या 1 करोड़ 60 लाख के लगभग है जिनमें से 15 लाख के लगभग बुजुर्ग 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं और इनमें से बड़ी संख्या में बुजुर्ग अपनी सम्पत्ति को लेकर संतानों द्वारा उत्पीड़ित किए जा रहे हैं। इसी को देखते हुए दिल्ली सरकार ने ‘माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण नियम-2009’ में संशोधन करके वरिष्ठ नागरिकों को अपने बच्चों के विरुद्ध शिकायतों के निवारण के लिए सीधे अपने इलाके के डिप्टी कमिश्रर से सम्पर्क करने की अनुमति प्रदान करके उनकी सम्पत्ति पर कब्जा जमाए बैठी लालची संतानों को निकाल बाहर करने के लिए कानूनी प्रक्रिया आसान कर दी है। 

डिप्टी कमिश्ररों पर अनिवार्यत: 21 दिनों की तय सीमा के भीतर यह मामला निपटाने की जिम्मेदारी डाल दी गई है। अब बुजुर्गों को पुलिस या अदालत में शिकायत करने की जरूरत नहीं होगी।दिल्ली सरकार के एक अधिकारी के अनुसार, ‘‘यदि डिप्टी कमिश्रर यह देखेगा कि किसी वरिष्ठï नागरिक की सम्पत्ति पर काबिज बेटा-बेटी या कानूनी वारिस उनकी देखभाल नहीं कर रहे या वे बुजुर्गों से बदसलूकी करते हैं तो आरोपी पार्टी को नोटिस जारी किया जाएगा। सरकार द्वारा अधिसूचित नए नियमों के अनुसार बेटे या वारिस को अपना पक्ष पेश करने का मौका दिया जाएगा और उसका स्पष्टीकरण संतोषजनक न होने पर उसे परिसर से निकलने का नोटिस जारी कर दिया जाएगा। 

वरिष्ठ नागरिक की शिकायत डिप्टी कमिश्रर जांच के लिए संबंधित एस.डी.एम. को भेजेगा जो 15 दिनों के भीतर-भीतर सम्पत्ति संबंधी पूरे विवरण की जांच करके डिप्टी कमिश्रर को रिपोर्ट देगा। शिकायत सही पाए जाने पर डिप्टी कमिश्रर अगले एक सप्ताह के भीतर आरोपी संतान को उसके माता-पिता की सम्पत्ति से कब्जा छोड़ देने का आदेश जारी कर देगा ताकि बुजुर्गों को न तो न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़े और न ही संतान के हाथों उत्पीड़ित ही होना पड़े। 

दिल्ली सरकार का यह फैसला गत वर्ष नवम्बर में दिल्ली हाईकोर्ट की एक रुलिंग के अनुरूप ही है जिसमें कहा गया है कि ‘‘बेटे की वैवाहिक स्थिति चाहे जो भी हो, उसके पास अपने माता-पिता द्वारा अपनी कमाई से स्वयं बनाए हुए मकान में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वह वहां उनकी सिर्फ कृपा पर ही रह सकता है।’’ इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि,‘‘यदि माता-पिता संतान को अपने घर में रहने की अनुमति देते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि संतान से रिश्ता बिगडऩे के बाद भी वे जीवन भर यह बोझ ढोते रहें।’’ 

जीवन की संध्या में पहुंचे हुए संतानों द्वारा उपेक्षित अभिभावकों को शीघ्र न्याय दिलवाने में दिल्ली सरकार की उक्त अधिसूचना का प्रभावशाली ढंग से पालन करवाए जाने पर यह अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी। अन्य राज्य सरकारों को भी बुजुर्गों को उनकी सम्पत्ति पर काबिज अवज्ञाकारी संतानों से मुक्ति दिलाने के लिए इसी प्रकार अपने कानूनों में संशोधन करना चाहिए ताकि जीवन की संध्या में बुजुर्गों को खून के आंसू रोने के लिए विवश न होना पड़े।              —विजय कुमार

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