प्राइवेट बसों के बंद होने के कारण कर्मचारियों के सामने ‘रोजी-रोटी’ का संकट

Friday, Jun 19, 2020 - 02:07 AM (IST)

‘कोरोना’ संकट के चलते तीन महीनों से बसें न चलने के कारण प्राइवेट बस आप्रेटरों का कारोबार पूरी तरह ठप्प होकर रह गया है और हजारों ड्राइवर, कंडक्टर व सहायक बेरोजगार हो गए हैं। लॉकडाऊन से पहले पंजाब में 7000 से अधिक प्राइवेट बसें चल रही थीं जिनमें काम करने वाले लगभग 15,000 ड्राइवर, कंडक्टर और सहायक अपने परिवारों का पालन-पोषण कर रहे थे। 

बस मालिकों के अनुसार बसें चलाने के लिए सामाजिक दूरी के नियम के चलते सिर्फ 50 प्रतिशत सीटें भरने के आदेश और इसमें भी बस के शुरू होने के स्थान से सवारियां उठाने के बाद सफर समाप्ति तक रास्ते में न ही किसी सवारी को उतारने और न ही बिठाने की शर्त के कारण जहां बसें चलाना बस मालिकों के लिए घाटे का सौदा बन गया वहीं ड्राइवरों, कंडक्टरों और सहायक स्टाफ के परिवारों के समक्ष दाल-रोटी का संकट पैदा हो गया है। इसी प्रकार हरियाणा में लगभग 4000 प्राइवेट बसों का पहिया थमा हुआ है और उनमें काम करने वाले 10,000 के लगभग ड्राइवर, कंडक्टर और सहायक बेरोजगार हो गए हैं। 

हिमाचल प्रदेश में भी 3300 प्राइवेट बसों से जुड़े लगभग 7000 लोगों का रोजगार छिन गया है। हिमाचल प्रदेश के ‘प्राइवेट बस आप्रेटर संघ’ के महासचिव रमेश कमल का कहना है कि ड्राइवर, कंडक्टर और सहायक आदि बस मालिकों से वेतन मांग रहे हैं लेकिन बसें खड़ी रहने के चलते उनकी आॢथक स्थिति भी कमजोर हो गई है अत: उनके लिए स्टाफ को वेतन देना संभव नहीं है। इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि विभिन्न राज्यों की सरकारों ने अपनी बसों के परिचालकों को तो ग्रांटें दी हैं, लेकिन प्राइवेट बस आप्रेटरों की सहायता करने को वह तैयार नहीं हैं। 

बसों का परिचालन शुरू न होने के कारण जहां आम लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है वहीं इससे जुड़े लोग भी गंभीर आॢथक संकट में फंसे हुए हैं। लिहाजा जिस प्रकार राज्य सरकारों द्वारा अपनी बसों और कर्मचारियों को आॢथक सहायता दी जा रही है उसी प्रकार प्राइवेट बस आप्रेटरों और उनके बेरोजगार हुए स्टाफ को भी सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि वे भी इस आपदा काल में कुछ राहत पा सकें।—विजय कुमार  

Advertising