कोरोना के कारण''पढ़े-लिखों के काम धंधे हुए बंद''''अब फल-सब्जियां आदि बेच रहे हैं''

punjabkesari.in Wednesday, May 12, 2021 - 04:53 AM (IST)

कोरोना महामारी के कारण आई विश्वव्यापी मंदी के चलते करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। जहां तक भारत का संबंध है, कोरोना की पहली लहर के बाद दूसरी लहर ने भी देश में रोजगार पर बहुत बुरा असर डाला है। 

‘सैंटर फार मोनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ (सी.एम.आई.ई.) के अनुसार देश में वेतनभोगियों और अन्य रोजगार वालोंं की सं या, जो जनवरी, 2021 में 40.7 करोड़ थी, फरवरी में 39.82 करोड़, मार्च में 39.81 करोड़ तथा अप्रैल में और भी घट कर 39.08 करोड़ रह गई। उक्त आंकड़ों से स्पष्टï है कि जनवरी के बाद से देश में रोजगार में लगातार गिरावट आई है। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के कारण बेरोजगार हुए छोटे-बड़े व्यवसायों से जुड़े मध्यम वर्गीय तथा नौकरी से निकाले गए  लोग अब छोटे-मोटे काम करने को विवश हो गए हैं : 

* जम्मू के एक सा टवेयर इंजीनियर युवक को जब नौकरी नहीं मिली तो उसने एक आटो फाइनांस करवा कर उस पर फल और सब्जियां बेचनी शुरू कर दी हैं। वह सब्जियों और फलों की होम डिलीवरी भी कर रहा है। 
* मेरठ में पिता की नौकरी चली जाने पर राष्ट्रीय स्तर के दो खिलाड़ी भाइयों ने परिवार का गुजारा चलाने के लिए सब्जी बेचनी शुरू कर दी है।
* मध्यप्रदेश के शाजापुर में बी.ए., बी.बी.ए. तथा अन्य उच्च शिक्षा प्राप्त कुछ युवा नौकरी चली जाने पर क बल, चादरें, खिलौने, टॉयलैट क्लीनर, खाने-पीने की चीजें, गुब्बारे आदि बेच कर घर का खर्च चला रहे हैं।

* तमिलनाडु के ‘पुड्डïूकोटेई’ शहर तथा उसके आस-पास के इलाकों में आनंद नामक बी.ए. (इकोनॉमिक्स) तथा आई.टी.आई. का डिप्लोमा प्राप्त मणिकंदन नामक 2 बेरोजगार युवक नैशनल हाईवे पर फल बेच रहे हैं। 
* हरियाणा के कलानौर में 2 भाइयों ने कोरोना के कारण अपना अच्छा-भला चलता फास्टफूड का कारोबार बंद हो जाने के परिणामस्वरूप अब फल और सब्जियां बेचनी शुरू कर दी हैं।
* छत्तीसगढ़ के रायपुर में जहां अनेक पढ़े-लिखे युवक ई-रिक्शा चला रहे हैं वहीं अनेक युवक फल-सब्जी बेचने लगे हैं। एक व्यापारी धंधा ठप्प होने के बाद अपनी कार की डिक्की में फल बेचता पाया गया।

* गाजियाबाद की एक फैक्टरी में नौकरी से निकाला गया अमर सिंह यादव पहले 12000 रुपए मासिक पर नौकरी करता था लेकिन नौकरी छूटने के बाद अब अपने गांव में 100 रुपए दिहाड़ी पर मजदूरी करने को विवश है। 
* दिल्ली में मिनी ट्रक चलाने वाला शाहजहांपुर का अमीर हसन नौकरी छूट जाने के बाद अब 200 रुपए दिहाड़ी पर मजदूरी कर रहा है।
* उत्तर प्रदेश के साहिबगंज में पेशे से इंजीनियर मोह मद शादाब मेहंदी ने नौकरी छूट जाने के बाद गांव में हार्डवेयर की दुकान खोल ली है।

* बठिंडा में एक विधवा अपना सैलून बंद हो जाने के बाद अपनी बेटी और मां का पेट पालने के लिए फुटपाथ पर सब्जियां बेचने को विवश है।
* तेलंगाना के वारंगल में कोरोना महामारी के कारण बेरोजगार हुई शारदा नामक सा टवेयर इंजीनियर शहर में सब्जी बेच रही है।
* गुजरात में निमेश कुमार (एम.फिल), आशीष सोलंकी (ग्रैजुएट), कुणाल राठौड़ (आई.टी. में ग्रैजुएट) तथा तरुण परमार नामक 4 उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवक इन दिनों नौकरी की तलाश करने के साथ-साथ मिठाई बेच रहे हैं। 

* विवाह-शादियों में फूलों की सजावट करके प्रति मास 60-70 हजार रुपए कमाने वाले पटियाला के शाम सिंह को अब अपने परिवार का पेट पालने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है।

इनके अलावा भी अनेक ऐसे मामले होंगे जिनमें कोरोना महामारी के कारण लोग अपना धंधा बदलने को मजबूर हो गए या नौकरी छूट जाने से बेरोजगार होकर छिटपुट काम करने लगे हैं ताकि अपने परिवार वालों का पेट पाल सकें। हालांकि देश की कुछ बड़ी क पनियों ने अब विश्वविद्यालयों के कै पस में जाकर प्लेसमैंट करनी शुरू कर दी है जिसके नतीजे आने वाले महीनों के रोजगार के आंकड़ों में देखने को मिलेंगे परंतु अकेला प्राइवेट सैक्टर इस बड़ी समस्या पर काबू नहीं पा सकता। 

अत: सरकार को देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कुछ बड़े कदम उठा कर रोजगार के साधन जुटाने पड़ेंगे तभी नौकरियों में वृद्धि होगी, लोगों का रहन-सहन सुधरेगा और वे पहले की भांति अपने परिवार का पालन-पोषण तथा बच्चों की शिक्षा-दीक्षा आदि कर सकेंगे। —विजय कुमार
 


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