डोनाल्ड ट्रम्प का नया विदेश नीति दस्तावेज
punjabkesari.in Monday, Dec 08, 2025 - 05:05 AM (IST)
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 4 दिसम्बर को अपना नया चिर प्रतीक्षित विदेश नीति दस्तावेज जारी किया। इस दस्तावेज में सर्वाधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि ट्रम्प ने दक्षिण एशिया सम्बन्धी अपनी नीति में विशेष रूप से भारत का उल्लेख किया है कि दक्षिण एशिया में चीन को रोकने के लिए अमरीका को भारत के साथ दोस्ती करनी होगी।
इस दस्तावेज में विश्व के 5 विभिन्न क्षेत्रों के सम्बन्ध में ट्रम्प प्रशासन का नजरिया और उनको मैनेज करने के उपाय सुझाए गए हैं। दस्तावेज में दक्षिण अमरीका सम्बन्धी नीति में वहां सीमा पार से नशीले पदार्थों का आना तथा माइग्रेशन को रोकने, लैटिन अमरीका में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने और इसके समुद्री तथा जमीनी क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए उन्होंने सम्बन्धित क्षेत्रों में अपनी सेना की तैनाती के पुनरीक्षण और उसे फिर से बढ़ाने की बात कही है। एशिया की बात करते हुए दस्तावेज में अमरीका के सबसे बड़े प्रतियोगी चीन का उल्लेख किए बिना कहा गया है कि चीन को अपना दबदबा कायम करने से रोकने के लिए क्या किया जा सकता है तथा इस क्षेत्र में तैनात अधिकारियों को उसे रोकने के तरीकों में तेजी लानी होगी।इसके लिए दस्तावेज में डोनाल्ड ट्रम्प की अक्तूबर की यात्रा के दौरान जापान, दक्षिण कोरिया तथा मध्य-पूर्व के देशों के साथ की गई ‘डील्स’ का उल्लेख किया गया है।
दस्तावेज में कहा गया है कि अनिवार्य रूप से यूरोप, जापान, कोरिया, आस्ट्रेलिया, कनाडा, मैक्सिको तथा अन्य महत्वपूर्ण देशों को ऐसी व्यापार नीतियां अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा जिनसे चीन के प्रभाव को दोबारा संतुलित किया जा सके। इसी प्रकार जहां अमरीका ने दस्तावेज में ताईवान के सम्बन्ध में यथास्थिति बनाए रखने तथा किसी भी एकतरफा फैसले का समर्थन न करने की बात कही है, वहीं ट्रम्प प्रशासन ने इसके लिए जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर अधिक सैन्य बोझ डालने की बात कही है। ट्रम्प के इस दस्तावेज में भारत के लिए भी एक महत्वपूर्ण भूमिका तय की गई है। ट्रम्प की नीतियों के कारण भारत-अमरीका सम्बन्ध इस समय पिछले दो दशकों के न्यूनतम स्तर पर होने के बावजूद, ट्रम्प चाहते हैं कि, ‘‘हमें अनिवार्य रूप से भारत के साथ व्यापारिक (तथा अन्य)सम्बन्धों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि आस्ट्रेलिया, जापान और अमरीका के सहयोग के साथ नई दिल्ली भारत प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा में अपना योगदान डाल सके।’’
यूरोप के सम्बन्ध में ट्रम्प का कहना है कि वह मुफ्तखोरों का महाद्वीप बन चुका है। उसे अपनी रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी अपने हाथ में लेनी चाहिए और अमरीका से मदद लेकर अपने गोला बारूद और क्षमता में वृद्धि करनी चाहिए। जहां तक रूस का सम्बन्ध है दस्तावेज में यूक्रेन में युद्ध समाप्त होने की इच्छा जताई गई है ताकि यूक्रेन एक टिकाऊ देश के रूप में अपना अस्तित्व कायम करने में सफल हो सके लेकिन इसमें यह नहीं बताया गया कि यह किस प्रकार संभव हो सकेगा। यही नहीं अमरीकी प्रशासन ने मध्य-पूर्व के देशों के लिए जो नीति बनाई है वह अमरीका द्वारा लोकतंत्र का ध्वजारोही होने के दावों के बिल्कुल विपरीत है। अमरीका पहले लोकतंत्र को बढ़ावा देने की बात करता था परंतु अब इसने राजशाही या तानाशाही का ही साथ देने की बात कह दी है।
अफ्रीका के लिए घोषित नीति भी अफ्रीका के हित में न होकर अमरीका के ही हित में है। 29 पृष्ठïों में सिर्फ 3 पैराग्राफ ही डोनाल्ड ट्रम्प ने अफ्रीका को दिए हैं जिनमें कहा गया है कि अमरीका को खनिज पदार्थों और दुर्लभ खनिज की जरूरत होने के कारण उससे डील करनी पड़ेगी। इसमें सिवाय अपनी स्वार्थपूर्ति की बात करने के उन्होंने वहां की जनता के कल्याण बारे कोई बात नहीं की है और न ही पश्चिमी देशों की वजह से सूडान आदि देशों के बिगड़े हुए हालात सुधारने में सहयोग आदि का कोई उल्लेख है। हर किसी को यह बात मालूम है कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अत्यधिक अस्थिर मानसिकता के व्यक्ति होने के कारण उनकी बातों पर बहुत अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता कि कब वह कौन सी नई नीति ले आएंगे और कौन सी पलट देंगे। अत: अब जबकि वह अपने कार्यकाल के दूसरे वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं, उनके नए विदेश नीति दस्तावेज से लगता है टैरिफ की नीति निकाल दी गई क्योंकि नए विदेश नीति दस्तावेज में उसका कोई उल्लेख नहीं किया है।
इस दस्तावेज में भारत का उल्लेख ऐसे समय में किया गया है जब रूस के राष्टï्रपति पुतिन भारत की यात्रा पर आए हुए थे तथा इस समय भारत-अमरीका संबंध पिछले 20 वर्षों के निकृष्टतम स्तर पर हैं और पिछले 4 महीनों से इस कवायद में लगे होने के बावजूद भारत-अमरीका व्यापार समझौता किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सका है। डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर अधिकतम टैरिफ लगा कर भी देख लिया परंतु भारत डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ घोषणाओं के आगे झुक नहीं रहा है। ऐसे में न केवल भारत और अन्य देश कैसे अमरीका पर फिर विश्वास कर पाएंगे?
