क्या हमें नए संसद भवन की जरूरत है

Monday, Sep 21, 2020 - 03:28 AM (IST)

जिस महल के दोनों सदनों में ब्रिटिश सांसद अपने सरकारी कत्र्तव्य निभा रहे हैं उसका नाम ‘वैस्टमिंस्टर पैलेस’ है। यह नाम इसके निकट स्थित वैस्टमिंस्टर एबे से लिया गया है। ‘वैस्टमिंस्टर पैलेस’ नाम का उल्लेख कई ऐतिहासिक संरचनाओं के लिए हो सकता है परंतु अक्सर इसे ‘ओल्ड पैलेस’ (एक मध्यकालीन इमारत जो 1834 में आग से नष्ट हो गई थी) या इसके स्थान पर आज खड़े ‘न्यू पैलेस’ के लिए ही किया जाता है। 

इस पर आश्चर्य हो सकता है कि हम ब्रिटेन का इतिहास क्यों खंगाल रहे हैं। शायद इसलिए क्योंकि उनकी संसद या महल ढहने वाला है और इसे मुरम्मत की अत्यधिक आवश्यकता है। सीवेज सिस्टम के साथ-साथ सभी फायर, हीटिंग, जल निकासी, मैकेनिकल और इलैक्ट्रिकल सिस्टम्स को बदलने की आवश्यकता है जिन्हें 1888 में स्थापित किया गया था और भवन से एस्बैस्टस उतारने की भी आवश्यकता है। 

बड़ी आशंका है कि यदि मुरम्मत में देरी होती रही तो 19वीं शताब्दी में बनी यह इमारत जो यूनैस्को विश्व धरोहर स्थल है, आग या बाढ़ से नष्ट हो जाएगी-या इसकी खस्ताहाल चिनाई गिरने से किसी की मौत हो सकती है! लगभग दो-तिहाई सांसदों ने अपने कार्यालय स्थानांतरित कर लिए हैं और सरकार अब 4 बिलियन पाऊंड के अनुमान के साथ आगे आई है। दोनों सदन अब इतने पैसे का निवेश करने पर पुनर्विचार कर रहे हैं। महामारी से अर्थव्यवस्था इतनी बुरी तरह प्रभावित है कि इतना पैसा संसद पर लगाने से सभी कतरा रहे हैं। 

ऐसे में क्या यही सवाल भारतीय सांसदों और भारतीयों के मन में नहीं उठना चाहिए? टाटा प्रोजैक्ट्स लिमिटेड ने 7 कम्पनियों को पछाड़ कर एक नया संसद भवन बनाने के लिए बुधवार को 861.90 करोड़ रुपए में बोली जीती। नई इमारत का निर्माण सैंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के अंतर्गत वर्तमान संसद के निकट किया जाएगा। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने 21 महीनों में निर्माण कार्य समाप्त करने की योजना बनाई है। आखिरकार इसको सजाने और संवारने पर भी कुछ समय लगेगा। भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में सरकार ने इस परियोजना के लिए मार्च 2022 की समय सीमा तय की है। सी.पी.डब्ल्यू.डी. के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने लॉकडाऊन अवधि का उपयोग नागरिक निकायों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने के लिए किया लेकिन परियोजना की समय सीमा को बदल दिया गया है।’’ 

सैंट्रल विस्टा रीडिवैल्पमैंट पहल में एक केंद्रीय सचिवालय का निर्माण और सैंट्रल विस्टा का पुनर्विकास शामिल है जो राष्ट्रपति भवन सहित कुछ सबसे अधिक पहचान योग्य सरकारी भवनों का केन्द्र है। 20,000 करोड़ रुपए के पुनर्विकास की योजना वास्तव में महत्वाकांक्षी है लेकिन क्या हमें यह राशि ऐसे समय में खर्च करनी चाहिए जब अर्थव्यवस्था पर इतना अधिक संकट छाया है और केंद्र सरकार और राज्य सरकारों दोनों के ही पास कोई धन नहीं है। राज्य सरकारें अपने जी.एस.टी. शेयर की मांग कर रही हैं लेकिन केंद्र सरकार इसे देने का जोखिम नहीं उठा सकती है। हालांकि, सरकार ने यह कभी स्पष्ट नहीं किया कि वह नई संसद क्यों बनाना चाहती है परंतु हल्की-सी यह शिकायत सुनने में आई है कि मंत्रियों के पास तो अपने कमरे हैं परंतु सभी सांसदों के पास नहीं हैं। जब देश आर्थिक मंदी की ओर जा रहा है तो इतना छोटा-सा मामला इतने बड़े फैसले का आधार नहीं हो सकता। 

दूसरी ओर एक कारण यह भी माना जा रहा है कि देश का 75वां स्वतंत्रता दिवस अंग्रेजों की बनी संसद में नहीं मनाया जाना चाहिए! ऐसे में शायद हमें फिर से ब्रिटेन की ओर देखना होगा। उनकी 1 हजार वर्ष पुरानी संसद उस ‘विलियम द कांकरर’ के पुत्र विलियम द्वितीय का महल है जो फ्रांस के नोर्मंडी से आए और भयंकर युद्ध के बाद उन्होंने इंगलैंड को जीता था। ऐसे में ब्रिटेन के सांसदों को यह हमेशा याद रहता है कि वह उस व्यक्ति के महल में कानून बनाते हैं जिसने न केवल उन्हें परास्त किया बल्कि बुरी तरह से कुचला और दबाया। 

कई बार ऐसा समय आया जब राजाओं ने उन्हें अलग जगह पर संसद बनाने का सुझाव दिया परन्तु उनका कहना था कि वह इमारत जहां उनकी लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई, जहां से वे प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध जीते, एक ‘विजेता’ के कृत्यों की तुलना में कहीं अधिक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण है। ईमारतें ईंट और पत्थर से पूजनीय या ऐतिहासिक नहीं बनतीं, वे देश के नेताओं की निष्ठा और कर्मठता से बनती हैं। यह भी याद रखना आवश्यक है कि अंग्रेजों की बनाई भारतीय संसद में पैसा तथा परिश्रम तो भारतीयों का ही लगा था या फिर कहीं यह एक ऐसा समाधान तो नहीं जिसे अमेरिका ने 1930 में ‘ग्रेट डिप्रैशन’ के दौरान अपनाया था जिसके तहत लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए सरकार ने सड़कों और पुलों का निर्माण करना आरंभ कर दिया था।

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