सरमाएदार वर्गों को मजबूत करने के एजैंडे को कामयाब न होने दें

Monday, Jan 18, 2021 - 05:40 PM (IST)

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय जिसके तहत कृषि कानूनों पर रोक, न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रशासन की सुरक्षा तथा किसी भी किसान को उसकी भूमि से वंचित नहीं किया जाएगा, ऐसे हालातों में एक उचित निर्णय है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति को प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों के साथ सलाह-मशविरे के साथ गठित किया होता तो यह बहुत अधिक आत्मविश्वास से प्रेरित बात होती। जब सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार कृषि कानूनों के मामले को सुनने का निर्णय किया, कई याचिकाएं जो विवादास्पद निर्णयों वाली थीं, ने सरकार को निरंतर ही सर्वोच्च न्यायालय में घेरे रखा। इसे ध्यान में रखना चाहिए कि कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है।

70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार अभी भी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। उनकी रोजी-रोटी इसी से चलती है। 82 प्रतिशत किसान छोटे तथा सीमांत हैं। ले-देकर 60 प्रतिशत भारतीय जनसंख्या यानी कि 81 करोड़ लोग कृषि पर निर्भर हैं। वे छोटे उद्यमी कहे जा सकते हैं क्योंकि उनके पास जो भूमि होती है उसी पर वह खेती करते हैं। यही उनका श्रम है। उनके पास 1 से 5 एकड़ तक की भूमि होती है जिससे उनके घरों का चूल्हा जलता है। भारत में औसत भूमि का आकार 1.16 हैक्टेयर है। सीधे तौर पर यह कहें तो यह 2.8 एकड़ है। इसके अलावा ये कृषि कानून आयात करने के लिए हमें वापस ‘शिप टू माऊथ’ पर आश्रित कराते हैं जिसने 1970 के शुरू में हरित क्रांति को अंतत: जल्दी में पहुंचा दिया।

वास्तव में यह कृषि कानून कार्पोरेट भारत को एक कानूनी लाइसैंस दे देते हैं जो छोटे किसानों को अपने अधिकार में ले सकें। इन किसानों के पास कोई मोल-भाव करने की शक्ति नहीं है। भारत में पिछले 80 महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था को क्या हुआ यह देखने की जरूरत है। हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान कम्पीटिशन कमिशन ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन ने कहा, ‘‘आयोग ने अब दवा क्षेत्र, संचार क्षेत्र तथा डिजिटल बाजार क्षेत्र में अध्ययन करने का निर्णय लिया है। इन क्षेत्रों में बाजार के खिलाडिय़ों द्वारा आयोजित प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार के आरोपों के साथ आयोग ने मामले प्राप्त किए हैं। इन क्षेत्रों में लक्ष्य सुनिश्चित करना है कि प्रतिस्पर्धा ‘जीवंत’ बनी रहे और यहां  पर काफी ऐसे खिलाड़ी हैं जो रियायत के पुरस्कार में भाग लेने की योग्यता रखते हैं।’’

इसका उत्कृष्ट उदाहरण विमानन क्षेत्र है।  जहां पर सरकार ने आॢथक मामलों के विभाग (डी.ई.ए.), वित्त मंत्रालय तथा नीति आयोग के विरोध के बावजूद अडानी ग्रुप ऑफ कम्पनीज को 6 हवाई अड्डों तथा ग्रीनफील्ड नवी मुम्बई एयरपोर्ट में हिस्सेदारी को नियंत्रण करने की अनुमति दे रखी है। यह 7 हवाई अड्डे अहमदाबाद, मैंगलूर, लखनऊ, जयपुर, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम तथा मुम्बई में हैं जिन्होंने मोटे तौर पर पिछले वित्तीय वर्ष (2019-20) के दौरान 80 मिलियन यात्रियों को संभाला है। यह करीब 340 मिलियन घरेलू एयर पैसेंजर ट्रैफिक के एक चौथाई को परिवर्तित कर देता है।

11 दिसम्बर 2018 को  एन.डी.ए./भाजपा सरकार पब्लिक प्राइवेट साझेदारी मूल्यांकन समिति (पी.पी.पी.ए.सी.) ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय के निजीकरण को लेकर डी.ई.ए. के नोट को लाल झंडी दे दी। यह 6 हवाई अड्डे परियोजनाएं अत्यधिक पूंजी गहन परियोजनाएं हैं।  इसलिए यह सुझाव दिया गया कि 2 से अधिक हवाई अड्डे एक ही बोलीदाता को नहीं दिए जाएंगे। विभिन्न कम्पनियों को बांटने से यार्डस्टिक प्रतिस्पर्धा की सुविधा होगी।

नीति आयोग ने आश्चर्यजनक रूप से दृढ़ता का प्रदर्शन कर एक नोट में उल्लेख किया, ‘‘एक बोलीदाता जो पर्याप्त तकनीकी क्षमता की कमी रखता हो, के  कारण परियोजना  तथा सरकार  जिन सेवाओं के लिए प्रतिबद्ध है, उनकी गुणवत्ता वाले समझौते को खतरा हो सकता है।’’ इन क्षमताओं को दर-किनार कर सरकार अभी भी आगे बढ़ रही है और एयरपोर्ट प्रबंधन में पहले से कोई अनुभव न रखने वाली एक कम्पनी को इन सभी हवाई अड्डों का नियंत्रण एक नीलामी के माध्यम से लेने की अनुमति दे रही है।

कुलीन वर्ग एक देश या उद्योग होता है जो कुछ सशक्त लोगों के एक छोटे से समूह द्वारा नियंत्रित होता है।   अमरीका  शरमैन एंटी ट्रस्ट एक्ट को 1890 में लेकर आया ताकि उन शक्तियों को दबाया जाए जो व्यापार के साथ दखलअंदाजी करती हैं तथा आॢथक प्रतिस्पर्धा को कम करती हैं। न कहा जाने वाला इसका हिस्सा यह था कि  कार्पोरेशन्ज को इतनी अनुमति न दी जाए कि वह शक्तिशाली हो जाएं और अपने प्रभाव के द्वारा नीति-निर्माण तथा सरकार के प्रशासन को नियंत्रण करना शुरू कर दे।

अमरीका ने अपने एंटी ट्रस्ट कानूनों का स्टैंडर्ड ऑयल, ए.टी. एंड टी., कोडैक तथा माइक्रोसॉफ्ट सहित विभिन्न संस्थानों पर राज्यकाल के लिए 20वीं शताब्दी में इसका इस्तेमाल किया। सर्वोच्च न्यायालय को इसलिए इन कृषि कानूनों के सही इरादों के बारे में सावधान होना चाहिए। ऐसे सरमाएदार वर्गों को और मजबूत करने के एजैंडे को, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पहले से ही नियंत्रित कर चुके हैं, को कामयाब न होने दिया जाए। - मनीष तिवारी

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