गऊ रक्षा के नाम पर मानव हत्या न करें और अंतर्जातीय विवाहों को बढ़ावा दें

Sunday, Jul 31, 2016 - 02:05 AM (IST)

इन दिनों देश में गौ रक्षा के नाम पर सक्रिय विभिन्न समूहों द्वारा अच्छी तरह जांच-पड़ताल किए बिना लोगों पर हमले किए जा रहे हैं। ऐसी ही एक घटना 11 जुलाई को गुजरात में ‘गिर सोमनाथ’ जिले के ऊना में हुई जब दलित परिवार के 7 सदस्यों को एक मृत गाय का चमड़ा उतारते हुए पकड़ कर गऊ रक्षकों के एक समूह ने एक कार से बांध कर बुरी तरह लोहे की छड़ों और लाठियों से पीटा। 

 
हमलावरों ने उनके द्वारा गाय की खाल उतारने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला चाकू छीन कर उससे भी उन पर वार किए। इतना ही नहीं उन्होंने शहर में उनका जलूस निकाला। इस मामले में गुजरात सरकार द्वारा उचित कार्रवाई न करने और दलित समाज को समुचित सुरक्षा प्रदान न करवाने का विरोध करते हुए अनेक दलित युवकों ने आत्महत्या का प्रयास किया। 
 
इसके कुछ ही दिनों बाद 27 जुलाई को मध्यप्रदेश के मंदसौर में भैंस का मांस लेकर जा रही 2 मुस्लिम महिलाओं को गौ मांस लेकर जाने के संदेह में पुलिस की उपस्थिति में पीटा गया जिसके विरुद्ध 29 जुलाई को लोकसभा में विपक्षी सदस्यों ने वॉक आऊट किया।
 
 इस तरह की घटनाओं के संबंध में महाराष्ट्र के प्रमुख दलित नेता और हाल ही में केंद्र में सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्री बनाए गए रामदास बंधु अठावले ने देश में ‘गऊ रक्षा’ तथा झूठी शान के नाम पर असहिष्णुता का वातावरण पैदा होने पर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि : 
 
‘‘गऊओं की रक्षा इंसानों की जान की कीमत पर नहीं होनी चाहिए और सरकार को यह बात यकीनी बनानी चाहिए कि गऊ रक्षकों द्वारा गुजरात के ऊना में दलित युवकों पर जैसी ङ्क्षहसा की गई है उसकी भविष्य में पुनरावृत्ति न हो।’’ 
‘‘मैं गऊ रक्षकों से कहना चाहता हूं कि देश में गऊ वध के विरुद्ध कानून है। आप गऊ रक्षा का अपना कार्य जारी रखें परंतु आप मानव हत्या क्यों करते हैं? यदि आप ऐसे गऊ रक्षा करेंगे तो फिर मानव रक्षा कौन करेगा?’’
 
‘‘यदि हम (दलित) मृत गऊओं का चमड़ा न उतारें तो फिर यह काम कौन करेगा? मृत गाय-बैलों के शरीर से चमड़ा उतारना अपराध नहीं है। गौ रक्षा के नाम पर अभियान चलाने वालों को लोगों पर हिंसा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करके वे अपने राज्य और सरकार को ही बदनाम कर रहे हैं।’’
 
इस प्रकार की घटनाओं का देश की दलित और मुस्लिम जनसंख्या पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में पूछने पर उनका कहना है: ‘‘मैं गऊओं के प्रति जन भावनाओं का सम्मान करता हूं। हमें गऊओं को नहीं मारना चाहिए। मैं एक बौद्ध हूं परन्तु इसके बावजूद मैं हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करता हूं। ‘गौ वध पर प्रतिबंध’ कानून बाबा साहब भीम राव अंबेदकर द्वारा निर्मित संविधान का हिस्सा है। इन गऊ रक्षकों को नियमों का पालन करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और ऐसी दादागिरी न की जाए।’’
 
इसके साथ ही श्री अठावले ने दलितों को दरपेश चंद अन्य समस्याओं का भी उल्लेख करते हुए कहा है कि : ‘‘अक्सर अंतर्जातीय विवाहों का विरोध किया जाता है। यहां तक कि ऐसे विवाहों के कारण हत्याएं तक हो जाती हैं। हमें इस संबंध में भी कुछ करना चाहिए। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जातिवाद समाप्त करने के लिए देश में  अंतर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है। इससे समाज एकजुट होगा। हमें ऐसे विवाहों को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। सरकार को इस संबंध में पूर्णत: स्पष्ट होना चाहिए कि कानून हाथ में लेने वाले लोगों से किस प्रकार निपटना है।’’
 
नि:संदेह हमारे जीवन में गाय का विशेष स्थान है परन्तु किसी भी मुद्दे पर बिना पूरी जांच-पड़ताल और सोच-विचार किए हिंसा पर उतर आना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। 
 
देश में इस मुद्दे पर बने हुए असहिष्णुता के वातावरण के बीच श्री अठावले के विचार प्रासंगिक हैं जिनसे देश में व्याप्त असहिष्णुता का वातावरण कुछ कम करने में सहायता मिल सकती है।
 
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