देश से युवाओं का मोह भंग विदेशों में ‘भागने’ का बढ़ा रुझान

Tuesday, Jan 03, 2017 - 11:19 PM (IST)

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘‘युवा शक्ति ही किसी भी देश की सबसे बड़ी शक्ति होती है’’  परन्तु इस शक्ति को सही दिशा देना और संभाल कर रखना देश के कर्णधारों और नेताओं की जिम्मेदारी है।

भारत की 130 करोड़ जनसंख्या में 26 वर्ष या इससे कम आयु के युवक-युवतियों की संख्या 50 प्रतिशत के लगभग है परंतु इनमें से बड़ी संख्या में युवा निराशा और हताशा के शिकार होकर विदेश जाने की सोचने लगे हैं।

विदेश जाने के इस मोह के पीछे मुख्य कारणों में बेरोजगारी, पक्षपात, भेदभाव, उपेक्षा, वास्तविक प्रतिभाओं का निरादर, अपने ही देश में उन्नति की कम संभावनाओं का होना और उत्तम भविष्य की लालसा है।

विदेशों में बेहतर भविष्य और आधुनिक सुख-सुविधाओं के कारण प्रति वर्ष 2 लाख युवा वैध-अवैध तरीकों से वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं और विदेश जाने का जुनून लोगों के सिर पर इस कदर चढ़ चुका है कि अनेक मामलों में भाई-बहन ‘शादी’ करवा कर ‘नकली पति-पत्नी’ तक बन कर विदेश जाते पकड़े गए हैं। कुछ मामलों में एन.आर.आई. रिश्तेदारों ने ‘अपनों या अपनियों’ के साथ शादी करके उन्हें विदेश पहुंचा दिया है।

प्रबंधन कोर्स, कम्प्यूटर और अन्य तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवा विशेष रूप से यूरोपीय देशों इंगलैंड, अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में बसने को उतावले हो रहे हैं तो मेहनत-मजदूरी आदि के काम करने वाले युवाओं का दूसरा वर्ग खाड़ी के देशों की ओर रुख कर रहा है।

भारत की युवा शक्ति का अपने ही देश के साथ मोह भंग का प्रमाण हाल ही में एक राष्टï्रव्यापी सर्वेक्षण में सामने आया है जिसके अनुसार आधे से अधिक युवा मानते हैं कि भारत उनका ‘अभिन्न होमलैंड’ नहीं है तथा उन्हें भारत के अलावा किसी अन्य देश में रह कर अधिक खुशी होगी।
 

15 राज्यों के राजधानी नगरों में करवाए इस सर्वे में शामिल तीन चौथाई से अधिक युवाओं ने कहा,‘‘ज्यादा से ज्यादा हम भारत को स्वीकार्य देश कह सकते हैं।’’ अधिकांश युवाओं ने लैंगिक समानता, रोजगार, शिक्षा के अवसर और युवाओं को स्वतंत्रता के मामले में भारत को घटिया बताया।

इस सर्वे के अनुसार युवाओं में केवल राष्ट्रीयता की भावना ही नहीं बल्कि देश के प्रति सच्चे चिरस्थायी प्यार की अवधारणा भी कमजोर पड़ गई है। सर्वे में शामिल युवाओं में से मात्र लगभग पांचवें हिस्से ने भारत के साथ अपना रिश्ता दूर तक चलने की बात कही जबकि आधे से अधिक युवाओं के अनुसार भारत से उनका रिश्ता बहुत दूर तक नहीं निभ पाएगा।

यहीं पर ही बस नहीं, लोगों में बड़ी संख्या में निराशा और हताशा व्याप्त हो रही है। लगभग 66.1 प्रतिशत महिलाओं और 62.8 प्रतिशत युवकों के अनुसार वे देश में निकट भविष्य में ‘कुछ अच्छा होने’ की उम्मीद खो बैठे हैं। लगभग आधे युवाओं के अनुसार भारत को एक ऐसे ‘सुपरमैन’ की आवश्यकता है जो देश के हालात ठीक कर सके।

पाश्चात्य देशों में सच्चाई, सफाई, स्पष्टïवादिता, वचनबद्धता, सामाजिक सुरक्षा, नौकरी मिलते ही नाममात्र ब्याज पर मकान, वाहन व अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की उपलब्धता लोगों को वहीं बस जाने के लिए प्रेरित करती है।

बुजुर्गों को चिकित्सा संबंधी देखभाल, पैंशन, सामाजिक सुरक्षा, जरूरत पडऩे पर सहायता और शिक्षा एïवं नौकरी आदि में किसी भी प्रकार का भेदभाव न होना भी इसका एक बड़ा कारण है। ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ कहावत के अनुसार बड़े से बड़े अमीर लोग भी अपना काम स्वयं करने में संकोच नहीं करते जिनकी देखा-देखी अन्य लोग भी वैसा ही आचरण करते हैं व इन्हीं खूबियों के कारण हमारे युवाओं का मोह अपने देश से टूट रहा है।

यदि यह सिलसिला जारी रहा तो भविष्य में यहां क्या बचेगा, सोच कर ही कंपकंपी होने लगती है। चारों ओर व्याप्त निराशा देख कर तो लगता है कि यदि आज विश्व में वीजा प्रणाली खोल दी जाए तो देश युवाओं से खाली हो जाएगा।                                                —विजय कुमार

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