पराजय के बाद कांग्रेस में आत्ममंथन के स्थान पर कलह

punjabkesari.in Sunday, Mar 13, 2022 - 05:23 AM (IST)

हाल ही के विधानसभा चुनावों में जहां कांग्रेस पंजाब में सत्ता से वंचित हो गई, वहीं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा एवं मणिपुर में भी आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई जिसके बाद पार्टी में दोषारोपण व अंतर्कलह का सिलसिला तेज हो रहा है। 

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुर्जेवाला ने इस हार के लिए पार्टी के नेतृत्व या किसी नेता को उत्तरदायी न ठहरा कर कहा है कि ‘‘पंजाब में भले ही पार्टी ने एक शालीन नेतृत्व प्रस्तुत किया लेकिन वह कैप्टन अमरेंद्र सिंह सरकार के विरुद्ध साढ़े चार वर्ष की सत्ता विरोधी लहर को दूर करने में विफल रही।’’ 

इसके उत्तर में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा है कि ‘‘कांग्रेस का नेतृत्व कभी नहीं सीखेगा। यदि कांग्रेस मेरे कारण पंजाब में चुनाव हारी है तो फिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में किसके कारण हारी और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसका उत्तर दीवार पर मोटे अक्षरों में लिखा है, परंतु हमेशा की तरह मुझे लगता है कि वे इसे पढऩे से बचेंगे ही।’’ पंजाब के पूर्व मंत्री सुखजिंद्र सिंह रंधावा ने इस पराजय के लिए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि ‘‘बयानबाजी कर सिद्धू कांग्रेस को खत्म कर रहे हैं।’’ पूर्व मंत्री तृप्त राजेंद्र बाजवा ने सिद्धू को बेलगाम घोड़ा करार देते हुए कहा, ‘‘वह न किसी के साथ चल सकते हैं, न किसी को अपने साथ रख सकते हैं।’’ 

पूर्व मंत्री गुरकीरत कोटली ने भी कहा है कि ‘‘हमारे अध्यक्ष को अपनी बयानबाजी के मामले में कंट्रोल में रहना चाहिए था।’’  नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है, ‘‘मुझे हार-जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरा मकसद था पंजाब को आगे लेकर जाना। जिन्होंने मेरे लिए गड्ढों खोदे थे वे उसी गड्ढों में खुद गिर गए हैं।’’ सुनील जाखड़ के अनुसार, ‘‘ चन्नी को एक कार्ड की तरह पेश किया गया जो गलत था। कुछ महीने पहले बीमारी का अकलन सही किया लेकिन दवाई गलत थी। चेहरा बदला, छवि नहीं बदल पाए। जिसे कमान दी गई, उसे लोगों ने स्वीकार नहीं किया। क्या जुआ खेला जा रहा था? यदि राज्य में सिद्धू को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाता तो बदलाव की आंधी रुक जाती।’’ 

सुनील जाखड़ ने पूर्व पंजाब प्रभारी हरीश रावत को समस्या का सूत्रधार बताया और कहा ‘‘उत्तराखंड  में (उनको हरा कर) भगवान ने उनके साथ ‘न्याय’ ही किया।’’ उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की दुर्दशा पर पार्टी नेतृत्व के विरुद्ध असंतोष भड़कने लगा है। अनेक नेताओं का कहना है कि प्रदेश में पार्टी नेतृत्व को बदले बिना कांग्रेस के बुरे दिन दूर नहीं हो सकते। कांग्रेस के ‘जी-23’ नाम से चॢचत 23 वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, जितिन प्रसाद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, वीरप्पा मोइली, पृथ्वी राज चव्हाण, राज बब्बर, अरविंद्र सिंह लवली, संदीप दीक्षित आदि ने 24 अगस्त, 2020 को सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी नेतृत्व पर प्रश्र उठाते हुए इसमें संगठनात्मक सुधार व आमूल-चूल परिवर्तन की मांग की थी। 

अब सोनिया गांधी द्वारा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए 13 मार्च को बुलाई कार्य समिति की बैठक से पहले उक्त समूह के सदस्यों ने 11 मार्च को इस बारे दिल्ली में गुलाम नबी आजादी के आवास पर बैठक की। इसमें कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी आदि नेता शामिल हुए। हालांकि इनकी ओर से सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं आया, परंतु चर्चा है कि ये नेता सोनिया गांधी द्वारा बुलाई बैठक में चुनावी हार का मुद्दा, पार्टी संगठन में जरूरी बदलाव और जवाबदेही यकीनी बनाने की अपनी पुरानी मांग उठाएंगे। 

बैठक में इस तरह के संकेत भी मिले हैं कि यदि पार्टी का क्षरण रोकने के लिए तुरंत कदम न उठाए गए तो पार्टी में असंतुष्ट नेताओं द्वारा शक्ति प्रदर्शन करने तक की नौबत आ सकती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने चेतावनी दी है कि ‘‘यदि पार्टी ने अपना भाग्य फिर जगाना है तो यह अपने भीतर बदलाव लाने से बच नहीं सकती। हम सभी, जो कांग्रेस में विश्वास करते हैं, चुनाव के परिणामों से आहत हैं।’’ पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता व सुप्रीमकोर्ट के वकील जयवीर शेरगिल ने भी कहा है कि ‘‘नुक्सान तो नुक्सान है जिसके लिए कोई सफाई नहीं है। ‘वोट शेयर’ या ‘कम अंतर से हारे’ जैसी बातें कहने का कोई औचित्य नहीं है। फैसला बिना किसी ‘अगर-मगर’ के मानना होगा। यही सुधार के लिए पहला कदम है।’’ 

कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य और पार्टी प्रवक्ता वी. नारायणन ने भी कहा है कि ‘‘कुप्रबंधन के कारण चुनावों में बहुत बुरा प्रदर्शन हुआ है। विशेष रूप से हमने पंजाब में बहुत लापरवाही बरती। पार्टी के नेताओं का अब देशवासियों पर कोई प्रभाव नहीं रहा, यही बड़ी समस्या है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दीवार पर साफ-साफ लिखा हुआ पढ़ कर नए नेतृत्व के लिए रास्ता देना चाहिए।’’ हालांकि राहुल गांधी ने कह तो दिया है कि ‘‘हम जनादेश को स्वीकार करते हैं और इससे सबक लेकर भारत के लोगों के हित में काम करते रहेंगे।’’ लेकिन इस तरह की बातें तो वह पहले भी कहते रहे हैं। 

इस बीच चर्चा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी इन चुनावों में पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 13 मार्च की बैठक में अपने पदों से त्यागपत्र की पेशकश कर सकते हैं। इस संबंध में लोगों का कहना है कि कांग्रेस में तो पहले ही कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, अत: यदि इस बैठक में इनके त्यागपत्र के बाद सर्वसम्मति से या बहुमत से किसी एक को पार्टी का नेता चुनकर कुछ समय तक उसे काम करने का मौका दिया जाए तो शायद पार्टी को दोबारा खड़ी करने में कुछ सफलता मिल सकती है।—विजय कुमार 


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