रेल दुर्घटनाओं से मौतों का सिलसिला जारी

Tuesday, Nov 22, 2016 - 02:02 AM (IST)

वैसे तो हर वर्ष बजट में रेल मंत्री रेल सेवाओं में सुधार के लिए बड़े-बड़े पग उठाने के दावे करते हैं परंतु स्वतंत्रता के 69 वर्ष बाद भी रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला लगातार जारी है। नवीनतम रेल दुर्घटना 20 नवम्बर तड़के 3 बज कर 7 मिनट पर हुई जब 110 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से कानपुर की ओर बढ़ रही इंदौर-राजेंद्र नगर एक्सप्रैस के 14 डिब्बे पुखरायां रेलवे स्टेशन के निकट भूकंप के झटके जैसी आवाज के साथ पटरी से उतर जाने से अब तक 146 के लगभग यात्रियों की मृत्यु और 400 के लगभग यात्री घायल हो गए।

दुर्घटना इतनी भयानक थी कि 4 डिब्बे पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और उनमें फंसे यात्रियों को गैस कटर की सहायता से डिब्बे काट कर बाहर निकालना भी मुश्किल हो गया क्योंकि जब-जब डिब्बों पर गैस कटर लगाया जाता था अंदर फंसे घायलों की चीखें गैस की गर्मी के कारण और भी तेज हो जातीं और राहत कर्मियों को काम रोकना पड़ता था। 

भारत की अब तक की तीसरी सबसे बड़ी इस रेल दुर्घटना ने 28 मई 2010 को बंगाल में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस रेल दुर्घटना की याद दिला दी जिसमें 148 लोगों की मौत हुई थी। इससे पूर्व 6 जून, 1981 को बिहार में एक रेल दुर्घटना में 800 यात्रियों की मृत्यु हो गई थी जो भारत में हुई सबसे बड़ी रेल दुर्घटना थी।

इस दुर्घटना का कारण सरसरी तौर पर रेल पटरी में दरार होना माना जा रहा है और जांच रिपोर्ट आने में तो अभी समय लगेगा परंतु फौरी तौर पर सामने आई कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। चर्चा है कि उक्त रेल गाड़ी के चालक ने इंजन के मीटर पर अधिक लोड देख कर अपने सहचालक से मंत्रणा करके झांसी मंडल के उच्चाधिकारियों को इसकी सूचना दी तो उन्होंने उनसे कहा कि ‘‘किसी भी तरह रेलगाड़ी को कानपुर तक ले जाएं, उसके बाद देखा जाएगा।’’

चालक का यह भी कहना है कि तड़के 3 बज कर 3 मिनट पर उसने ओवर हैड इलैक्ट्रिकल केबल में तेज धमाके की आवाज सुनने के बाद आपात्कालीन बे्रक का इस्तेमाल किया था। दुर्घटनाग्रस्त रेलगाड़ी के एस-2 कोच में यात्रा कर रहे एक यात्री का कहना है कि उसने इसी डिब्बे में यात्रा कर रहे रेलवे की वर्दी पहने एक अधिकारी से रेल के पहियों से असामान्य किस्म की आवाजें आने की चर्चा की थी परंतु उस अधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।  

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा घायलों और मृतकों के परिजनों को क्षतिपूर्ति राशि देने के दावे किए जा रहे हैं परंतु इसके साथ ही सरकार के दावों की पोल भी खुलनी शुरू हो गई है। अनेक घायलों को रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने बंद किए जा चुके 500-500 के नोट थमा दिए। 

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पीड़ितों को अपनी बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा देने की घोषणा का भी परिवहन कर्मचारियों ने पालन नहीं किया। अनेक पीड़ितों ने उत्तर प्रदेश के परिवहन के टिकट दिखाए और शिकायत की कि कर्मचारियों ने उन्हें टिकट लेने या बस से उतर जाने को विवश किया।

जहां इस घटना को लेकर देश में भारी रोष व्याप्त है वहीं बुजुर्ग भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी ने इसे ‘विरोधियों की साजिश’ बताते हुए यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया है कि ‘‘केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए हो सकता है कि कुछ लोगों ने रेल दुर्घटना करवाई हो।’’ 

रेलवे के कुछ सूत्रों का कहना है कि गाड़ी से आधुनिक लिंक हाफमैन बुश (एल.एच.बी.) डिब्बे की अनुपस्थिति से मृतकों की संख्या बढ़ी। इनके अनुसार स्टेनलैस स्टील के डिब्बों में अधिक सुरक्षा प्रावधान होते हैं। ये डिब्बे अधिक प्रभावशाली ढंग से झटकों व उनके दुष्प्रभाव को झेल सकते हैं तथा गाड़ी के पटरी से उतरने पर पलटते नहीं हैं अत: यदि स्टेनलैस स्टील के ‘एल.एच.बी.’ डिब्बे होते तो कम मौतें होतीं।

आज भारत सरकार देश में रेलवे प्रणाली को विमान यात्राओं के एक विकल्प के रूप में विकसित करने की कोशिश करने के साथ-साथ देश में तीव्रगामी बुलेट रेलगाडिय़ां चलाने की योजना बना रही है परंतु भारतीय रेल पटरियां तो सामान्य रेलगाडिय़ों की रफ्तार को झेलने में भी असमर्थ हैं। एक सप्ताह से भी कम समय में रेल पटरियों में खराबी के कम से कम 6 मामले सामने आए हैं परंतु इनका कोई सुधारात्मक उपाय नहीं किया गया। यह इसी से स्पष्ट है कि मध्य रेलवे में  रेलवे के ‘रिसर्च, डिजाइन्स एंड स्टैंडड्र्स आर्गेनाइजेेशन’ द्वारा मान्यता प्राप्त एक भी रेल पटरियों का वैल्डर नहीं है। अतीत की तरह ही यह रेल दुर्घटना भी एक सबक है। अभी भी यदि रेलवे के कत्र्ताधत्र्ता इसके कारणों की जांच कर ठोस निवारक पग उठाएं तो भविष्य में शायद ऐसे दुखांतों से कुछ बचा जा सकेगा। 
 

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