देश के चिकित्सा ढांचे की ‘भयावह तस्वीर’

Thursday, Sep 01, 2016 - 01:38 AM (IST)

लोगों को अच्छी और स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा, स्वच्छ जल तथा लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों का दायित्व है परंतु स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी ये इसमें असफल रही हैं। सरकारी कुप्रबंधन के कारण ही लोग चिकित्सा व शिक्षा के लिए सरकारी अस्पतालों व स्कूलों में जाना नहीं चाहते और निजी अस्पताल व स्कूल इतने महंगे हैं कि वहां इलाज व पढ़ाई करवा पाना आम जन के वश से बाहर है। यहां प्रस्तुत हैं सरकारी अस्पतालों में कुप्रबंधन की हाल ही की चंद घटनाएं :

 
* 23 अगस्त को ओडिशा में कालाहांडी के सरकारी अस्पताल द्वारा एम्बुलैंस और मोर्चरी वैन उपलब्ध न करने के कारण एक गरीब आदिवासी अपनी पत्नी की लाश मजबूरन कंधे पर लाद कर पैदल ही 60 किलोमीटर दूर अपने घर के लिए चल पड़ा। राज्य सरकार द्वारा ‘महाप्रयाण’ योजना के अंतर्गत सरकारी अस्पताल से मृतक का शव उसके घर तक मुफ्त पहुंचाने के प्रावधान के बावजूद वहां जरूरतमंदों को यह सेवा मिल नहीं पाती।
 
* 25 अगस्त को बिहार में मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल में एक घायल को लाया गया जो सहायता के लिए अस्पताल अधिकारियों के एक कमरे से दूसरे कमरे में अपनी प्लास्टर चढ़ी टांग को घसीटता हुआ रेंग-रेंग कर जाता रहा परंतु किसी को उस पर दया नहीं आई। अस्पताल की सिविल सर्जन ललिता सिंह से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘हम जो कर सकते थे, कर दिया अब हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं।’’  
 
* 25 अगस्त को ही ओडिशा में बालासौर जिले के ‘सोरो कम्युनिटी हैल्थ सैंटर’ में एक दुर्घटनाग्रस्त मृत महिला की लाश लाई गई जिसे पोस्टमार्टम के लिए बालासौर के जिला अस्पताल ले जाया जाना था। यहां भी लाश के लिए एम्बुलैंस न मिलने पर अस्पताल प्रबंधन ने लाश को बोरी में बंद कर रेल से ले जाने के लिए लाश के टुकड़े करवा उसकी गठरी बंधवा दी जिसे 2 कर्मचारी लाठी पर लटका कर रेलवे स्टेशन ले गए। 
 
* 25 अगस्त को ही मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की संध्या यादव को प्रसव पीड़ा होने पर उसके घर वालों ने राज्य सरकार द्वारा महिलाओं के लिए शुरू की गई ‘जननी एक्सप्रैस एम्बुलैंस सेवा’  को एम्बुलैंस के लिए कई फोन किए ताकि उसे स्वास्थ्य केंद्र में पहुंचाया जा सके परंतु एम्बुलैंस नहीं आई और महिला को स्वास्थ्य केंद्र तक 6 कि.मी. का अत्यंत दुर्गम मार्ग अपनी जान जोखिम में डाल कर पैदल चल कर ही तय करना पड़ा। 
 
* 26 अगस्त को एक महिला ने आरोप लगाया कि उसने शिमला के सरकारी कमला नेहरू अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था परंतु अस्पताल के स्टाफ ने उसे किसी अन्य महिला की नवजात बेटी से बदल दिया।
 
* 26 अगस्त को ही एक व्यक्ति बुखार से तप रहे अपने बेटे को कंधे पर लाद कर कानपुर के सरकारी लाला लाजपत राय अस्पताल में लाया लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने उसे भर्ती करने से इंकार कर दिया।
 
अपने बेटे को कंधे पर उठाए वह व्यक्ति  कभी डाक्टरों की मिन्नतें करता तो कभी स्ट्रेचर के लिए भागदौड़ करता लेकिन उस पर किसी को भी दया नहीं आई और अंत में बच्चे ने अपने पिता के कंधे पर ही दम तोड़ दिया। 
 
* 27 अगस्त को बंगाल में बोलपुर के सरकारी अस्पताल में एक 13 वर्षीय बच्चे को इलाज के लिए दाखिल करवाया गया जिसे बेहद जहरीले सांप ने डंस लिया था। डाक्टरों ने कहा कि ऑक्सीजन मास्क लगाकर बीरभूम के अस्पताल में ले जाना होगा। 
 
बच्चे के परिजनों ने ऑक्सीजन सिलैंडर युक्त एम्बुलैंस का प्रबंध किया और जब वे बच्चे को ऑक्सीजन के सिलैंडर के साथ एम्बुलैंस तक ले जाने लगे तो नर्सों ने उसका ऑक्सीजन मास्क उतार दिया और वार्ड से बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के एम्बुलैंस तक लाने के दौरान बच्चे की मृत्यु हो गई।
 
* 27 अगस्त को ही बंगाल में मुçàæüदाबाद मैडीकल कालेज और अस्पताल में आग लग जाने से वहां उपचाराधीन 2 बच्चों और एक अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो गई। आपात स्थिति में अस्पताल से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था और न ही वहां अग्रिशमन उपकरण काम कर रहे थे। 
 
देश के अस्पतालों में अव्यवस्था, कुप्रबंधन, बुनियादी ढांचे के अभाव और वहां कार्यरत स्टाफ की संवेदनहीनता के ये तो चंद नमूने मात्र हैं जबकि वास्तविकता तो इससे भी अधिक भयावह है। जब हमारे चिकित्सा संस्थानों में इतना कुप्रबंधन हो तो फिर लोग वहां इलाज के लिए जाने से संकोच क्यों न करेंगे!  
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