‘न्यायपालिका में भ्रष्टाचार’चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की सकारात्मक पहल!

punjabkesari.in Friday, Jun 06, 2025 - 05:51 AM (IST)

इस वर्ष 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास के एक स्टोर रूम में लगी आग के पश्चात घर से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के मामले के बाद न्यायपालिका में फैल रहे भ्रष्टाचार को लेकर बहस तेज हो गई है। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के आगामी सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी भी कर ली है। इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन की 3 सदस्यीय समिति को जांच सौंपी थी और इस जांच समिति ने 3 मई को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। 

रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा पर नकदी बरामदगी के लगे आरोपों को सही पाया गया। इसके बाद 6 मई को जस्टिस वर्मा से उनका जवाब मांगा गया लेकिन उनकी सफाई से संतुष्ट न होने पर पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह रिपोर्ट भेज दी। साथ ही उनसे सिफारिश की गई कि वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाए। इस बहस के बीच सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने ब्रिटेन के उच्चतम न्यायालय में ‘मेंटेनिंग ज्यूडीशियल लेजिटिमेसी एंड पब्लिक कांफिडैंस’ विषय पर आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में कहा कि ‘‘दुख की बात है कि न्यायपालिका के भीतर भी भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले सामने आए हैं। ऐसी घटनाओं से जनता के भरोसे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी प्रणाली की शुचिता में विश्वास खत्म हो सकता है।’’

उन्होंने कहा कि  ‘‘चर्चा का एक और मुद्दा सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति का भी है। भारत में, न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु निश्चित है। यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार में कोई अन्य नियुक्ति प्राप्त करता है या चुनाव लडऩे के लिए पीठ से इस्तीफा देता है तो यह गंभीर नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इससे लोगों का ध्यान आकर्षित होता है।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘इसी को देखते हुए मेरे कई सहयोगियों और मैंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भूमिका या पद स्वीकार न करने की सार्वजनिक तौर पर प्रतिज्ञा की है। यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है।’’ इस बीच जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले के बाद भी पिछले कुछ दिनों में न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के 2 अन्य मामले सामने आए हैं। 16 मई, 2025 को एंटी क्रप्शन ब्यूरो ने 14 सितम्बर, 2023 से 21 मार्च, 2025 के बीच राऊज एवेन्यू जिला अदालत में तैनात रहे क्लर्क के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया। एंटी क्रप्शन ब्यूरो ने आरोपी द्वारा अग्रिम जमानत के लिए रिश्वत मांगने की शिकायतों के आधार पर एफ.आई.आर. दर्ज की थी।

29 मई, 2025 को सी.बी.आई. ने  3.30 लाख रुपए  की रिश्वतखोरी के मामले में राष्ट्रीय कम्पनी कानून न्यायाधिकरण (एन.सी.एल.टी.) की मुंबई बैंच के एक डिप्टी रजिस्ट्रार और एक अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी एक शिकायत के बाद की गई जिसमें आरोप लगाया गया था कि न्यायाधिकरण के अधिकारी ने लंबे समय से चल रहे होटल स्वामित्व विवाद में कार्रवाई को प्रभावित करने के लिए रिश्वत की मांग की थी। न्यायपालिका में व्याप्त हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर माननीय चीफ जस्टिस  बी.आर. गवई की चिंता निश्चित तौर पर जायज है। विधायिका और कार्यपालिका से निराश आम लोगों का भरोसा लोकतंत्र के तीसरे बड़े स्तंभ न्यायपालिका पर ही होता है।

यदि न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार व्याप्त होने लगे और अदालत के फैसले भ्रष्टाचार के चलते प्रभावित हों तो निश्चित तौर पर इससे आम जनता में न्यायपालिका के प्रति भरोसा कम हो सकता है। माननीय बी.आर. गवई और उनके सहयोगियों द्वारा रिटायरमैंट के बाद किसी भी सरकारी पद को स्वीकार न करने की शपथ भी एक बहुत अच्छा प्रयास है। सिर्फ सुप्रीमकोर्ट ही नहीं बल्कि देश भर के हाईकोर्ट्स और जिला अदालतों के न्यायाधीशों को भी इस मामले में उनका अनुसरण करना चाहिए। इसी तरह के प्रयास के जरिए न्यायपालिका में फैल रहे भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है।—विजय कुमार 


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