भारत में अफ्रीका से लाए गए चीतों की लगातार हो रही मौतें

Monday, Jul 17, 2023 - 04:40 AM (IST)

120 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौडऩे में सक्षम चीता दुनिया का सबसे तेज दौडऩे वाला जानवर है। भारत में इसे लुप्त हुए 7 दशक से अधिक समय बीत चुका है। इसी कारण गत वर्ष जनवरी में भारत सरकार ने चीतों की स्वदेश वापसी के लिए एक एक्शन प्लान तैयार किया जिसके अंतर्गत नामीबिया से 4 नर और 4 मादा सहित कुल 8 तथा दक्षिण अफ्रीका से 7 नर और 5 मादा सहित 12 चीते लाए गए। इन्हें मध्य प्रदेश में 748 वर्ग किलोमीटर में क्षेत्र में फैले कूनो नैशनल पार्क में रखा गया है। एक्शन प्लान के अनुसार यह स्थान चीतों के रहने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यहां चीतों को अपना शिकार करने के लिए चीतल जैसे जानवर भी आसानी से उपलब्ध हैं। यहां एक किलोमीटर के दायरे में 38 से अधिक चीतल मौजूद हैं। 

कूनो नैशनल पार्क अक्सर सूखा रहता है और यहां अधिकतम तापमान 42.3 डिग्री सैल्सियस तथा न्यूनतम तापमान 6 से 7 डिग्री सैल्सियस तक रहता है लेकिन ऐसा लगता है कि कूनो नैशनल पार्क का मौसम यहां रखे चीतों को रास नहीं आ रहा है जिससे वे लगातार मर रहे हैं। गत 13 जुलाई को यहां सूरज नामक चीते की मौत के बाद इसी वर्ष यहां मरने वाले चीतों की संख्या 8 हो गई है। शुरूआती जांच में उसकी गर्दन और पीठ पर घाव पाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि 3 दिन पहले भी यहां तेजस नामक चीते ने दम तोड़ दिया था। उसकी भी गर्दन और पीठ पर ही घाव पाए गए थे। उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि वह अंदरूनी तौर पर कमजोर हो गया था तथा सूरज और तेजस दोनों के ही शरीर पर एक जैसे घाव थे जबकि इससे पहले एक चीते की मौत का कारण किडनी का संक्रमण पाया गया था। 

इन मौतों को देखते हुए यह प्रश्न पूछा जाने लगा है कि क्या चीतों को यहां का मौसम रास नहीं आ रहा या क्या वे किसी बीमारी से ग्रस्त हैं? अफ्रीकी चीता विशेषज्ञ आद्रियान के अनुसार हो सकता है कि चीतों की गर्दन पर लपेटे गए सैटेलाइट कालर के परिणामस्वरूप वे गर्दन पर संक्रमण का शिकार हो रहे हों। उनका कहना है कि वर्षा से गर्दन पर लगे कालर के नीचे का हिस्सा लगातार नमी में रहने के कारण संक्रमित हो जाता है जिससे चीतों के शरीर पर मक्खियां और चीचड़ धावा बोल देते हैं जो अंतत: उनकी मौत का कारण बन जाते हैं। अत: वन अधिकारियों को तत्काल बचे हुए चीतों की जांच करके उनमें व्याप्त संक्रमण का पता लगाना चाहिए। 

कुछ चीते आपस में लड़ते रहते हैं और इस कारण भी उनके शरीर में गहरे घाव हो जाते हैं परंतु अभी भी वन विभाग के अधिकारियों के पास इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है। वैसे कुछ समय पहले आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कूनो पार्क की कम जगह चीतों के असहज होने का कारण है जबकि दक्षिण अफ्रीका में चीतों के रहने के लिए काफी इलाका मौजूद है। यह भी प्रश्न उठता है कि क्या उनका ध्यान नहीं रखा जा रहा या उनकी खुराक में कोई गड़बड़ है। यदि उनकी मौत का कारण न ढूंढा गया तो इसी तरह शेष चीते भी इसी प्रकार मरते रहेंगे और भारत में चीतों को लाने का एक्शन प्लान ही फेल हो जाएगा।   

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