थम नहीं रहा कोचिंग सिटी कोटा में छात्रों की आत्महत्याओं का सिलसिला

punjabkesari.in Monday, Aug 14, 2023 - 04:32 AM (IST)

राजस्थान के कोचिंग सिटी कोटा में छोटे-बड़ेे मिलाकर 200 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं, जो देश भर से यहां आने वाले छात्र-छात्राओं को संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जे.ई.ई.), राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (एन.ई.ई.टी.) आदि का प्रशिक्षण देते हैं। इनमें लगभग अढ़ार्ई लाख छात्र कोचिंग ले रहे हैं। मैडीकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों की प्रवेश परीक्षाओं में सफलता के लिए इस शैक्षणिक सत्र में शहर के विभिन्न कोचिंग सैंटरों में 2.25 लाख से अधिक छात्रों के कक्षाएं लेने का अनुमान है। कोटा भारत में कोङ्क्षचग का प्रमुख केंद्र है जिसका वार्षिक राजस्व अनुमानत: 5,000 करोड़ रुपए से अधिक है परंतु यहां अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राओं द्वारा आत्महत्याओं के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। 

पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि  वर्ष 2014 में तो यह 45, 2015 में 31, 2016 में 18, 2017 में 24, 2018 में 19, 2019 में 18 और 2020 में यह संख्या 20 तक पहुंच गई। 2021 में अवश्य किसी भी छात्र की आत्महत्या की सूचना नहीं आई थी। क्योंकि कोरोना के कारण कोचिंग संस्थान बंद थे और छात्र घरों से ही ऑनलाइन क्लास के जरिए पढ़ाई कर रहे थे परंतु 2022 में जैसे ही कोचिंग संस्थान खुले यह आंकड़ा सीधे 18 पर पहुंच गया। इस वर्ष पिछले 8 माह में यहां 20 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। नवीनतम घटना में 10 अगस्त को महावीर नगर थाना क्षेत्र में आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले मनीष प्रजापत (17) नामक छात्र ने होस्टल के कमरे में फांसी लगा ली। मृतक यहां जे.ई.ई. की तैयारी कर रहा था। 

उसी दिन उसके पिता उससे मिलने आए थे जिनके जाने के 4 घंटे बाद ही वह फंदे पर झूल गया। इससे पहले 12वीं के साथ नीट की तैयारी कर रहे पटना (बिहार) निवासी नवलेश (17) फांसी के फंदे पर झूल गया था। उसने सुसाइड नोट में पढ़ाई के दौरान तनाव की बात लिखी थी। इससे एक दिन पहले ही एक अन्य कोङ्क्षचग छात्र धनेश कुमार (15) ने फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। वह भी 11वीं के नीट की तैयारी में लगा था जबकि पिछले माह ही एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की 10वीं मंजिल से कूदकर बेंगलुरु के रहने वाले नासिर (22) ने आत्महत्या कर ली थी। इन घटनाओं ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर यहां आत्महत्याओं का अंतहीन सिलसिला कहां जाकर रुकेगा!

कोटा में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चे मानते हैं कि कई कारण उन्हें डिप्रैशन की ओर धकेलते हैं जो कमजोर पलों को जन्म देता है। 10 महीने की तैयारी का शैड्यूल इतना व्यस्त होता है कि ब्रेक के दौरान वे घर भी नहीं जा पाते और परिवार से दूरी और अकेलापन उन्हें खटकता है। परिवार के साथ ‘कम्युनिकेशन गैप’ भी इसका एक कारण है छात्रों का कहना है कि उन्हें हमेशा छुट्टियों में पढ़ाई में पिछड़ जाने और छूटे हुए लैक्चरों का बैकलॉग बढ़ जाने का डर सताता रहता है। ऐसे में कई छात्र डिप्रैशन में चले जाते हैं और आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लेते हैं। 

कोरोना काल के बाद, विशेषकर इस वर्ष, छात्रों की आत्महत्याओं का एक नया पैटर्न सामने आया है जिसके अनुसार छात्रों ने घर से यहां आने के कुछ ही महीनों के बाद अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार या तो छात्र परीक्षा निकट आने के दौरान या परिणाम आने के आसपास यह कदम उठाते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार छात्रों में ऐसे कदम उठाने का एक कारण यह भी है कि वे सोशल मीडिया पर अधिक समय देने के कारण अपनी पढ़ाई के लिए पूरा समय नहीं निकाल पाते। 

हमारे इन शिक्षा केंद्रों में देश भर के सबसे मेधावी छात्र आते हैं और वे अपने परिवार के लिए कुछ बनने की खातिर बहुत मेहनत भी करते हैं। लिहाजा भारत में भी अमरीका की भांति स्कूलों-कालेजों और कोचिंग केंद्रों में काऊंसलर या सलाहकार रखने की व्यवस्था करनी चाहिए जो छोटे-बड़े हर आयु वर्ग के बच्चों का ध्यान रखें और उन्हें उचित मार्गदर्शन दे सकें। युवाओं में महत्वाकांक्षाएं होती हैं लेकिन समस्याओं तथा चुनौतियों का सामना  करने के लिए हिम्मत और दृढ़ संकल्प की भी जरूरत होती है और इस बारे में उनके पास कोई बात करने वाला होना चाहिए। कितने ही बच्चे ‘पियर प्रैशर’ (सहपाठियों या दोस्तों का दबाव) या जातिगत समस्याओं आदि के दबाव में आत्महत्या करते हैं। ऐसे में क्या ऐसे कोचिंग सैंटर हर शहर या स्कूल में नहीं बनाए जा सकते ताकि बच्चों को घर से दूर कोचिंग के लिए जाना न पड़े। क्या हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को और सक्षम नहीं बनाना चाहिए? 


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