चिंतन शिविर के दौरान कांग्रेस ने लिए कुछ अच्छे निर्णय

Sunday, May 15, 2022 - 04:12 AM (IST)

23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के समूह ‘जी-23’ ने 24 अगस्त, 2020 को सोनिया गांधी को लिखे पत्र में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए इसके संगठनात्मक ढांचे में सुधार के सुझाव दिए, परंतु उनकी उपेक्षा कर दी गई। इसी कारण पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता पिछले कुछ समय में कांग्रेस का साथ छोड़ गए हैं जिससे किसी समय देश की ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ कहलाने वाली कांग्रेस आपसी कलह के कारण चुनावी पराजयों के चलते मात्र 2 राज्यों तक सिमट कर रह गई। 

कांग्रेस को नवीनतम आघात पंजाब के हालिया चुनावों में लगा, जब आपसी कलह के चलते यह बुरी तरह हारी और ‘आम आदमी पार्टी’ प्रचंड बहुमत से राज्य में पहली बार सरकार बनाने में सफल हो गई। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। इससे पूर्व पश्चिम बंगाल के चुनावों में भी कांग्रेस को बुरी तरह निराशा हाथ लगी थी। 

कांग्रेस के इस हालत में पहुंचने का सबसे बड़ा कारण 2014 में केंद्र में स. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के जाने के बाद सोनिया गांधी द्वारा बीमारी के कारण कांग्रेस के मामलों में रुचि लेना लगभग छोड़ देना, संगठनात्मक चुनाव न करवाना और किसी वरिष्ठ नेता को आगे न आने देने से उनमें पार्टी से निष्कासन का भय पैदा हो गया जिससे पार्टी के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया। 

इन्हीं सब बातों को देखते हुए सोनिया गांधी ने पिछले कुछ समय के दौरान कलह की शिकार कई राज्य इकाइयों का नेतृत्व बदला। इसके अंतर्गत हरियाणा में कुमारी शैलजा के स्थान पर चौ. उदयभान को, हिमाचल में सुखविंद्र सिंह सुक्खू के स्थान पर पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को व पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की जगह अमरेंद्र सिंह राजा वडिंग़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 

इसी शृंखला में पूर्व पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ को विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार चरणजीत सिंह चन्नी बारे बयानबाजी करने के आरोप में कांग्रेस द्वारा नोटिस भेजा गया था। इस तरह के हालात के बीच कांग्रेस शासित राजस्थान के उदयपुर में 3 दिवसीय ‘नव संकल्प चिंतन शिविर’ का आयोजन करके कांग्रेस नेे पिछली भूलों को सुधारने की दिशा में प्रयास का संकेत दिया है। 

इनमें सिवाय गांधी परिवार के अन्यों के मामले में एक परिवार के एक ही सदस्य को टिकट देने, किसी व्यक्ति के पद पर रहने की अवधि भी 5 वर्ष तय करने तथा प्रत्येक स्तर पर कांग्रेस के 50 प्रतिशत पदाधिकारियों की आयु 50 वर्ष से कम रखना, कांग्रेस संगठन में दलितों, महिलाओं व अन्य अल्पसंख्यकों को 50 प्रतिशत आरक्षण देना शामिल है। पार्टी ने घर-घर जाकर लोगों के मन में बसने का संकल्प भी लिया है परंतु गांधी परिवार को एक परिवार एक टिकट वाले नियम से मुक्त रखने पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। चिंतन शिविर में पार्टी नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने प्रियंका गांधी को कांग्रेस का पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने की मांग भी की है। 

देश में व्याप्त बेरोजगारी व महंगाई आदि के दृष्टिगत आर्थिक नीतियों पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। इस बात पर भी सहमति बनी है कि पार्टी के नेताओं के किसी भी रिश्तेदार को तब तक टिकट नहीं मिलेगा, जब तक वह पार्टी के लिए 5 वर्ष काम नहीं कर लेगा। राज्य इकाइयों का नेतृत्व बदल कर व चिंतन शिविर का आयोजन करके सोनिया गांधी ने पार्टी में सुधार लाने का संकेत दिया है क्योंकि इस समय देश को एक मजबूत विकल्प देने के लिए कांग्रेस का बहुत मजबूत होना जरूरी है। 

अब तो हालत यह है कि कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी में मौजूद अपनी विचारधारा को मजबूत करके इसमें व्याप्त भ्रम की स्थिति समाप्त करने और वरिष्ठ नेताओं में व्याप्त यह भय दूर करने की आवश्यकता है कि आलोचना करने पर उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा। शिविर से कोई महत्वपूर्ण जानकारी लीक न हो जाए इसलिए सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं और प्रतिनिधियों से अपने फोन बाहर रखने का आग्रह किया ताकि अंदर की बात बाहर न जा सके। अभी चिंतन शिविर का रविवार का दिन शेष है। आशा करनी चाहिए कि इसमें कुछ और अच्छे निर्णय लिए जाएंगे और यदि नाराज नेता पार्टी में लौटना चाहें तो उनकी वापसी का स्वागत करने का निर्णय भी लेना चाहिए। —विजय कुमार 

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