अब चिराग पासवान और पी.एल. पूनिया ने कहा ‘आरक्षण के लाभ त्यागें समृद्ध दलित ’

punjabkesari.in Thursday, Apr 14, 2016 - 01:56 AM (IST)

पिछड़े समुदायों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों में सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने के लिए भारत सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों एवं निजी शिक्षा संस्थानों में पदों व सीटों पर नियुक्तियों, प्रवेश तथा अन्य क्षेत्रों में प्रतिशत आरक्षित करने की कोटा प्रणाली निर्धारित की हुई है। 

 
पिछले कुछ समय से विभिन्न आरक्षण आंदोलनों के चलते देश का राजनीतिक वातावरण गर्माया हुआ है। 21 सितम्बर 2015 को एक साक्षात्कार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत ने एक वर्ग पर आरक्षण को लेकर राजनीति करने व उसके दुरुपयोग का आरोप लगाया था।
 
उन्होंने सुझाव दिया था कि ‘‘आरक्षण की नीति पर पुनॢवचार करने का समय आ गया है। इसके लिए एक अराजनीतिक समिति बनाई जानी चाहिए जो तय करे कि कितने लोगों को कितने दिनों तक आरक्षण की जरूरत होनी चाहिए।’’
 
‘‘यह समिति एक स्वायत्त आयोग की भांति हो जिसे अपने निर्णयों को लागू करने का भी अधिकार हो और एक राजनीतिक प्राधिकरण इनके कार्यान्वयन में ईमानदारी तथा नेकनीयती पर नजर रखे। जहां तक हमारे देश के संविधान में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग पर आधारित आरक्षण नीति का संबंध है तो यह वैसी ही होनी चाहिए जैसी संविधान निर्माताओं के मन में थी।’’
 
‘‘यदि आरक्षण संबंधी नीति का पालन हमारे संविधान के निर्माताओं की कल्पना के अनुसार किया गया होता तो कोई विवाद भी उत्पन्न न होता। देश में आरक्षण का राजनीतिक स्वार्थों के लिए उपयोग किया जाता रहा है। प्रजातंत्र की कुछ आकांक्षाएं होती हैं लेकिन ‘दबाव समूहों’ के माध्यम से दूसरों को दुखी करके तथा व्यापक जनहित की उपेक्षा करके इन्हें पूरा नहीं करना चाहिए।’’
श्री भागवत के बयान के बाद अब 11 अप्रैल को लोजपा नेता चिराग पासवान एवं कांग्रेस के वरिष्ठï नेता और पूर्व सांसद व ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ के अध्यक्ष श्री पी.एल. पूनिया ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए हैं। 
 
बिहार से पहली बार सांसद बने चिराग पासवान ने एक साक्षात्कार में कहा है कि ‘‘जैसे ‘गिव अप योजना’ के अंतर्गत समृद्ध लोगों ने रियायती गैस सिलैंडर पर सबसिडी छोड़ी है वैसे ही अमीर दलितों व समाज के अन्य वर्गों के समृद्ध लोगों को स्वेच्छा से आरक्षण के लाभों का परित्याग कर देना चाहिए।’’ 
 
‘‘इससे न सिर्फ अन्य समुदायों के लोगों को तरक्की का बेहतर मौका मिलेगा बल्कि जिन्हें आरक्षण की सर्वाधिक जरूरत है, इससे उन्हें भी लाभ प्राप्त होगा।’’ एक जातिमुक्त समाज की कामना करते हुए  उन्होंने आगे कहा कि ‘‘यह निर्णय स्वानुभूति के आधार पर लिया जाना चाहिए न कि बल प्रयोग द्वारा।’’ 
 
इसी प्रकार श्री पी.एल. पूनिया ने भी एक बयान में कहा है कि ‘‘समृद्ध दलितों को राष्ट के प्रति अपनी जिम्मेदारी के तौर पर  उन लोगों के लिए आरक्षण की सुविधाएं छोड़ देनी चाहिएं जिन्हें उनकी तुलना में इन सुविधाओं की अधिक जरूरत है। ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग’ में हम विचार करेंगे कि इस बारे क्या किया जा सकता है, इस पर संबंधित पक्षों से भी चर्चा की जाएगी।’’
 
श्री पूनिया ने यह भी कहा कि ‘‘संविधान में प्रदत्त गारंटियों के दृष्टिविगत, जो लोग आरक्षणों का लाभ उठाकर सामाजिक-आॢथक सीढ़ी पर ऊपर चढ़ गए हैं, उन्हें अब दूसरों के लिए यह जगह खाली कर देनी चाहिए।’’
 
यहां यह बात भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत, चिराग पासवान और पी.एल. पूनिया के अलावा कुछ समय पूर्व कांग्रेस के मनीष तिवारी भी आरक्षण की नीति में बदलाव की जरूरत व्यक्त करते हुए कह चुके हैं कि ‘‘इसका आधार आर्थिक होना चाहिए। गरीबी सबसे बड़ा पिछड़ापन है। समय आ गया है कि इस पर बात होनी चाहिए।’’ 
 
उपरोक्त बयानों के परिप्रेेक्ष्य में जरूरतमंदों के लिए आरक्षण की वकालत के सुझाव पर सरकार को जल्दी ध्यान देना चाहिए और जो लोग आरक्षण की सुविधा के अंतर्गत लाभ लेकर सम्पन्न हो चुके हैं, उन्हें इसके दायरे से बाहर निकालने की दिशा में भी विचार करना चाहिए।  
 

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