मलक्का जलडमरूमध्य में बुरा फंसा चीन

punjabkesari.in Wednesday, Feb 02, 2022 - 06:42 AM (IST)

अपना अधिकतर व्यापार समुद्री रास्ते से करता है, क्योंकि इसमें खर्च बहुत कम आता है, जमीन से अपना सामान पहुंचाने में उन इलाकों में सड़कें और रेल लाइन बिछानी पड़ती है जो महंगा सौदा है। मलक्का जलडमरूमध्य चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह 70 फीसदी तेल ईरान और खाड़ी के देशों से खरीदता है, जो हिन्द महासागर से होते हुए मलक्का जलडमरूमध्य से दक्षिणी चीन सागर और फिर चीन के तटों तक पहुंचता है। इसके अलावा चीन अपनी फैक्ट्रियों में तैयार 80 फीसदी उत्पादों को इसी समुद्री मार्ग से खाड़ी के देशों, पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी देशों में पहुंचाता है। 

मलक्का जलडमरूमध्य मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच एक संकरा सा समुद्री रास्ता है, जो दक्षिणी चीन सागर को हिन्द महासागर से जोड़ता है। चीन को इसी रास्ते से अफ्रीका, खाड़ी के देशों और ईरान से भी जोड़ता है।

चीन एक तरफ मलक्का के जरिए अंडेमान निकोबार द्वीप समूह पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है, जहां से वह भारत के पूर्वी और दक्षिणी तटों से होने वाली रणनीतिक हलचल पर नजर रख सके, वहीं हिन्द महासागर पर अपनी बढ़त बना कर अपने सामान को बेरोकटोक अपने तटों पर पहुंचाना चाहता है। लेकिन अंडेमान निकोबार द्वीप समूह में भारतीय नौसेना की मजबूत पोजीशन और मलक्का जलडमरूमध्य के पास मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ सिंगापुर के पास अमरीकी सेना की दमदार मौजूदगी ने चीन के इस सपने पर पानी फेर दिया है। लेकिन चीन हर तरीके से इस पूरे क्षेत्र पर कब्जे की कोशिशों में जुटा है। 

अगर भारत और अमरीका चाहें तो अपने-अपने तरीके से मलक्का जलडमरूमध्य का रास्ता रोक सकते हैं। इससे चीन को दक्षिणी चीन सागर पहुंचने के लिए सुंडा जलडमरूमध्य से होकर गुजरना पड़ेगा जो मलक्का से और दूरी पर स्थित है। हालांकि चीन ने बीच का रास्ता निकालने के लिए थाईलैंड से क्रा इस्तमुस में स्वेज और पनामा की तर्ज पर नहर बनाने की बात की थी, क्योंकि यह प्राय:द्वीप इस क्षेत्र में बहुत संकरा है और चीन ने थाईलैंड को बताया कि यहां से जब पानी के जहाज आवागमन करेंगे तो थाईलैंड को बड़ी धनराशि मिलेगी, लेकिन थाईलैंड ने चीन की इस योजना को सिरे से नकार दिया क्योंकि वह चीन के कर्ज जाल में नहीं फंसना चाहता था। 

चीन ने थाईलैंड को दूसरा प्रस्ताव दिया, जिसमें दक्षिणी चीनी शहर खुनमिंग से चीन एक रेलवे लाइन बनाएगा, जो क्रा इस्तमुस इलाके तक आएगी, जहां पर हिन्द महासागर की तरफ वाली बंदरगाह में चीन अपना सामान उतारेगा और यहां से आगे भेजेगा। इस पूरी परियोजना की कीमत 5 अरब डॉलर थी, जिसका खर्च चीन उठाता, लेकिन थाईलैंड ने चीन के इस मंसूबे पर भी पानी फेर दिया। हालांकि थाईलैंड इस रेल लाइन को बनाएगा, लेकिन अपने खर्च पर और चीन से इस परियोजना के लिए कोई पैसा नहीं लेगा, जिसके बाद इस रेल लाइन पर चीन का कोई आधिपत्य नहीं रहेगा। 

चीन मलक्का से होने वाली संभावित परेशानी से बचने के लिए अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए दूसरे देशों से अपने संबंध बेहतर बनाने की जुगत में लगा है। मसलन रूस, मध्य एशिया, यांमार, पाकिस्तान, ईरान और तुर्की से इन मुद्दों पर बातचीत चल रही है। लेकिन चीन की असल मंशा हिन्द महासागर और दक्षिणी चीन सागर पर कब्जा करने की है, ताकि वह अपना समुद्री व्यापार बेरोकटोक कर सके। 

हालांकि अगर चीन दूसरे देशों पर अपने पंजे फैलाता है तो अमरीका समेत नाटो शक्तियां मिल कर चीन का मुकाबला करने को तैयार बैठी हैं। जबकि चीन इस समय किसी भी बाहरी शक्ति से सीधी टक्कर नहीं लेना चाहता, क्योंकि इसके आर्थिक दुष्परिणाम उसे भुगतनेपड़ेंगे। ऐसे में क युनिस्ट पार्टी के अंदर शी जिनपिंग का विरोध और तेज होगा जिसकी आंच उनकी कुर्सी पर भी आएगी, भले ही जिनपिंग ने खुद को चीन का आजीवन राष्ट्रपति नियुक्त क्यों न कर लिया हो। 

नाटो से टक्कर लेने की स्थिति में विश्व की महाशक्तियों द्वारा लगाए जाने वाले आर्थिक प्रतिबंध चीन नहीं झेल पाएगा, क्योंकि अंदरूनी तौर पर इस समय चीन में आर्थिक संकट, ऊर्जा संकट, कोरोना महामारी और राजनीतिक संकट जारी है। अब यह चीन को देखना होगा कि वह अपने अरमानों के चलते पूरे देश की बलि देता है या अपने बेतहाशा बढ़ते अरमानों पर नकेल कसता है। 
 


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