बाल गृहों में बच्चों की दुर्दशा

Monday, Jan 28, 2019 - 02:56 AM (IST)

गत वर्ष बिहार के मुजफ्फरपुर शैल्टर होम में बच्चियों के साथ न जाने कब से हो रहे दुष्कर्मों, यौन उत्पीडऩ तथा तरह-तरह से प्रताडि़त किए जाने का भयावह सच सामने आने के बाद से ही देश भर के ऐसे विभिन्न आश्रय स्थलों पर सवालिया निशान लग चुके हैं। अब तक अनेक शैल्टर होम्स तथा चिल्ड्रन होम्स में बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव तथा शोषण के मामले उजागर हो चुके हैं।

उल्लेखनीय है कि मुजफ्फरपुर शैल्टर होम में सैक्स स्कैंडल सामने आने के बाद विभिन्न आश्रयगृहों पर छापेमारी के बाद केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने अनेक आश्रयगृह बंद कर दिए हैं। हाल ही में सी.बी.आई. ने बिहार के अन्य दो शैल्टर होम्स के खिलाफ बच्चों के साथ उत्पीडऩ को लेकर केस दर्ज किया है। इनमें भागलपुर में रूपम प्रगति समाज समिति की ओर से चलाया जा रहा ब्वॉयज चिल्ड्रन होम और गया का हाऊस मदर चिल्ड्रन होम शामिल हैं। 

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सी.बी.आई. को ‘टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल स्टडीज’ द्वारा किए गए अध्ययन में बताए गए आश्रय गृहों में कथित उत्पीडऩ की जांच का निर्देश दिया था। संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इनमें बच्चों के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल हुआ, उनकी बुरी तरह पिटाई की गई, उन्हें अभद्र संदेश लिखने को मजबूर किया गया और उनसे काम कराने से लेकर तरह-तरह की यातनाएं तक दी गईं। अनाथ तथा बेसहारा बच्चों के कल्याण के उद्देश्य से खोले गए देश के अधिकतर बाल गृहों तथा आश्रय स्थलों में वास्तव में हालात बेहद बुरे हैं। हाल में सामने आए एक सर्वेक्षण के अनुसार तो 50 प्रतिशत से अधिक चिल्ड्रन होम्स में नियमों को धत्ता बताते हुए बच्चों को शारीरिक दंड देना आम बात है। इसके अनुसार 9500 में से आधे चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स में बच्चों के साथ मार-पीट, तरह-तरह की पाबंदियां, खाना न देना, उनके साथ गाली-गलौच, अपमानित करना तथा धमकाना जारी है। 

2016-17 के दौरान चिल्ड्रन होम्स से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित हाल ही में सार्वजनिक की गई इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 4130 चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स ने स्वीकार किया है कि बच्चों को अनुशासित करने के लिए वे उन सभी तौर-तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जो कानून तथा तय नियमों के सरासर विरुद्ध हैं। रिपोर्ट ने देश के बाल गृहों में बच्चों से हो रहे अमानवीय बर्ताव की ओर एक बार फिर सबका ध्यान खींचा है जो महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स से जुड़े विभिन्न मुद्दों की पड़ताल के लिए स्थापित एक कमेटी द्वारा जुटाई जानकारी का हिस्सा है।

जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार बच्चों की गतिविधियों पर पाबंदी के मामले में अरुणाचल प्रदेश के चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स 25 प्रतिशत  के साथ सबसे आगे हैं जिसके बाद 24 प्रतिशत के साथ हरियाणा तथा 23 प्रतिशत के साथ त्रिपुरा का स्थान है। तमिलनाडु तथा कर्नाटक के चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स में भी ऐसा काफी अधिक हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार 697 चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स में बच्चों को गालियां देकर, 564 में उनकी पिटाई करके, 528 में गतिविधियों पर पाबंदी लगा कर, 432 में खाना न देकर, 244 में अपमानित करके, 171 में चिकोटी काट कर तथा 1028 में अन्य तरीकों से प्रताडि़त किया गया। 

सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि ऐसे चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स की संख्या अधिक है जो बच्चों के साथ अक्सर मार-पीट करते हैं। इनकी दर मेघालय में 19 प्रतिशत, हरियाणा में 17.7, अरुणाचल प्रदेश में 12.5 तथा दिल्ली में 10 प्रतिशत पाई गई है। हालांकि, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल तथा तमिलनाडु में बच्चों की पिटाई न करने के नियम का उल्लंघन करने वाले चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स की संख्या कहीं अधिक है। रिपोर्ट तथा इसके साथ विभिन्न सिफारिशों को कमेटी ने गत वर्ष महिला तथा बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी को सौंपा था और बताया जा रहा है कि सरकार ने इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए जरूरी निर्देश जारी करने के साथ ही निगरानी बढ़ाने के आदेश भी दिए थे। 

ऐसा नहीं कि पहली बार ऐसी घटनाएं सामने आई हैं लेकिन सबसे अधिक चिंता तो यही है कि यह सिलसिला लगातार जारी है। 2012 में हरियाणा के रोहतक और करनाल के एक-एक शैल्टर होम, 2013 में महाराष्ट्र के एक शैल्टर होम में भी कुछ बच्चों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया था। 2015 में देहरादून के एक नारी निकेतन में मूक-बधिर महिलाओं के साथ बलात्कार का मामला सामने आया। शैल्टर होम्स को सरकार की ओर से अच्छा-खासा फंड मिलता है, फिर भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो प्रश्न उठता है कि आखिर चूक कहां हो रही है। वास्तव में शैल्टर होम्स तथा चाइल्ड केयर इंस्टीच्यूशन्स तथा होम्स की निगरानी को लेकर व्यवस्थित सिस्टम की जरूरत है। वर्तमान में इनकी निगरानी ठीक से नहीं हो रही है। अब समय आ चुका है कि इन होम्स की नियमित निगरानी की संतोषजनक व्यवस्था के साथ ही इनके लिए जवाबदेही भी तय की जाए। 

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