बंगलादेश का बदल रहा धर्म निरपेक्ष स्वरूप पाठ्यपुस्तकों का इस्लामीकरण

Sunday, Feb 05, 2017 - 11:00 PM (IST)

बंगलादेश में प्रतिवर्ष स्कूली बच्चे अपनी पढ़ाई शुरू होने पर नई पुस्तकें मिलने का बेसब्री से इंतजार करते हैं और इस वर्ष आवामी लीग ने जब इस देश के प्राइमरी से लेकर दसवीं कक्षा तक के बच्चों को 3 करोड़ 60 लाख पुस्तकें बांटीं, तो लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई परन्तु उनकी यह खुशी जल्दी ही आक्रोश में बदल गई क्योंकि इन पुस्तकों में प्रसिद्ध कवि ज्ञान दास, माइकल मधुसूदन दत्त तथा पारम्परिक उपन्यासकार सुनील गंगोपाध्याय जैसे गैर-मुस्लिम लेखकों की सभी रचनाएं हटा दी गई हैं। यहां तक कि इन में से रामायण जैसे महान हिन्दू ग्रंथ से संबंधित पाठ को भी  हटा दिया गया।

बंगलादेश में शरिया का कानून लागू करने के लिए प्रयत्नशील तथा विभिन्न मदरसों के मुखिया और इस्लामी कट्टरवादी विशेष रूप से हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे संगठन ऐसा ही चाहते हैं। इस्लामी कट्टरवादियों पर किसी सीमा तक अंकुश लगाने के लिए प्रयत्नशील बंगलादेश की धर्म निरपेक्ष सरकार के नजरिए में इस बदलाव पर राजनीतिक क्षेत्रों में हैरानी व्यक्त की जा रही है क्योंकि एक ओर जहां बंगलादेश की सत्तारूढ़ आवामी लीग सरकार इस्लामी आतंकवाद को रोकने की कोशिश कर रही है,तो दूसरी ओर ऐसा दिखाई दे रहा है कि यह धार्मिक रूढ़ीवादियों के तुष्टिकरण का प्रयास कर रही है।

आवामी लीग सरकार ने देश में चल रहे प्राइवेट मदरसों द्वारा पाठ्यपुस्तकों में सुझाए गए बदलावों को स्वीकार करके स्कूलों के लिए एक प्रकार के सरकारी निरीक्षण के अधीन ला दिया है। यह एक खतरनाक बदलाव है, जो किसी व्यवस्था पत्र द्वारा सम्पन्न नहीं किया जा सकता। इसके पीछे सक्रिय हिफाजत-ए-इस्लाम की शक्ति का आधार इसके वे सदस्य और आम लोग  हैं, जो शरिया लागू करने की इसकी योजना से सहमति रखते हैं।

अधिकारी इस संबंध में कुछ भी बोलने से संकोच करते हैं परन्तु अधिकारियों द्वारा हिफाजत-ए-इस्लाम के आगे घुटने टेकने से स्पष्ट है कि आज बंगलादेश किस तरह इस्लामवाद की ओर बढ़ रहा है।1971 में जब बंगलादेश ने पाकिस्तान से मुक्ति प्राप्त की थी तब इसके संस्थापक सिद्धांतों में धर्म निरपेक्षता भी एक थी लेकिन 1980 के दशक में वह पाकिस्तान की सेना द्वारा समॢथत जमात-ए-इस्लामी तथा बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बी.एन.पी.) के दबाव में आ गया और बंगलादेश के तानाशाह हुसैन मोहम्मद इरशाद द्वारा इस्लाम को बंगलादेश का सरकारी धर्म घोषित कर देने पर इस सिद्धांत को पृष्ठभूमि में डाल दिया गया।

1991 में बंगलादेश में लोकतंत्र बहाल होने पर देश की दोनों मुख्य पाॢटयों में से बी.एन.पी. ने रूढ़ीवादी जनता पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काया जिसे देखते हुए आवामी लीग के नेताओं को बचाव की मुद्रा में जाना पड़ा।2001 में बी.एन.पी. के सत्ता में आने पर हालात बदले और सरकार जमात-ए-इस्लामी जैसी इस्लामी शक्तियों के दवाब में आने के बाद वहां आतंकवादी समूह उभरे, जिन्होंने दर्जनों आवामी लीग के नेताओं तथा आम नागरिकों की हत्या कर दी और जब आवामी लीग सत्ता में आई तो इसने  विपक्ष पर मुकद्दमों की बौछार कर दी।

इसी शृंखला में 2009 में बंगलादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अपराधों की सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल गठित किया गया और चूंकि उस समय जमात के नेताओं ने पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था, लिहाजा इसके नेताओं पर अदालत की गाज गिरनी ही थी। इसके जवाब में जमात और बी.एन.पी. गठबंधन सड़कों पर उतर आए और इन मुकद्दमों के विरुद्ध कुछ हिसक प्रदर्शन हुए।

विशेष रूप से 2014 के आम चुनावों से पहले और इससे पूर्व मई 2013 में हिफाजत-ए-इस्लाम ने बंगलादेश को एक इस्लामी राज्य घोषित करने के लिए अङ्क्षहसक आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन का आवामी लीग सरकार ने बलपूर्वक दमन किया, जिसके दौरान कम से कम 50 नागरिक मारे गए।

कोई जमाना था जब बंगलादेश में खुलापन नजर आता था, परन्तु आज इस्लामी कट्टरवादी धर्म निरपेक्षता को इस्लाम के लिए खतरे के रूप में पेश करने में सफल हो रहे हैं और इसका नवीनतम उदाहरण है बंगलादेश की स्कूली पाठ्यपुस्तकों से हिन्दू लेखकों के लिखे हुए आलेखों का हटाया जाना।

यह न सिर्फ बंगलादेश की युवा पीढ़ी की दिमागी धुलाई के अनुरूप है, बल्कि इसके माध्यम से उनके मन में कट्टरवाद का जहर भरने की कोशिश भी की जा रही है। जहां यह बंगलादेश के किसी सीमा तक बचे-खुचे धर्म निरपेक्ष स्वरूप के लिए खतरा है, वहीं भारत के लिए भी उसके पड़ोस में आतंकवादियों की एक और नई युवा पीढ़ी तैयार होने की भूमिका के समान है। 

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