‘जम्मू-कश्मीर में केंद्र का एक के बाद एक नया प्रयोग’

punjabkesari.in Friday, Nov 27, 2020 - 04:22 AM (IST)

आखिर कश्मीर कहां जा रहा है? पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के कारण यह बुरी तरह से उलझन में जकड़ा हुआ है। चार जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी 18 नवम्बर को जम्मू के सांबा जिले के रीगल क्षेत्र में एक सुरंग के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने में कामयाब हो गए। शुक्र है कि उन्हें बी.एस.एफ. तथा पुलिस द्वारा तीन घंटों तक चले एनकाऊंटर में मार गिराया गया। 

ऐसा कहा जाता है कि यह सुरंग इससे पहले भी इस्तेमाल में लाई जा चुकी है। दशकों से आतंक को झेल रहे जम्मू-कश्मीर में यह एक नया विस्तृत पहलू है। नई दिल्ली ने हालांकि इस्लामाबाद के निरंतर ही आतंकी हमलों के खिलाफ एक कड़ा रुख अपनाया है तथा पाकिस्तान को इसके नतीजे भुगतने के लिए चेताया है। जम्मू-कश्मीर में अब मुख्य लक्ष्य जिला विकास परिषद (डी.डी.सी.) के चुनावों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने का है जोकि सख्त सुरक्षा के बीच 28 नवम्बर से 19 दिसम्बर के बीच होने हैं। 

भूमि घोटाले जिसमें कि कुछ महत्वपूर्ण कश्मीरी नेता शामिल हैं, के बीच में सर्वप्रथम डी.डी.सी. चुनाव आयोजित होंगे जिनमें बहुत अधिक रुचि दिखाई दे रही है। वकील, कारोबारी, पूर्व पत्रकार तथा नए-नए नेता बने लोग डी.डी.सी. चुनावों के उम्मीदवार हैं। एक तरफ गुपकार घोषणा के लिए 7 पार्टियों का गठबंधन है जिसका नेतृत्व पूर्व सी.एम. फारुख अब्दुल्ला कर रहे हैं। इसमें महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं। इन सबका असंतोष इस बात को लेकर है कि सुरक्षा के नाम पर उन्हें स्वतंत्र रूप से चुनावी प्रचार करने की अनुमति नहीं दी जा रही। 

फारुख अब्दुल्ला ने प्रशासन पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दखलअंदाजी करने का आरोप लगाया है। नैकां के साथ-साथ पी.डी.पी. ने भाजपा पर जम्मू-कश्मीर में आधिकारिक मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।  उन्होंने कहा कि सुरक्षा के कारण गैर-भाजपा उम्मीदवारों को चुनावी प्रचार नहीं करने दिया जा रहा। जम्मू-कश्मीर प्रशासन को ऐसे आरोपों को देखने की जरूरत है। यदि वह सही तौर पर कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चितित है। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीयकरण की प्रक्रिया ने आतंकियों तथा पाकिस्तानी एजैंसियों को सकते में डाल दिया है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जनता से भी समर्थन मिल रहा है। जैसा कि कश्मीर एक राजनीतिक लैबोरेटरी बन चुका है। बिना किसी स्पष्ट नतीजों के नई दिल्ली एक के बाद एक प्रयोग कर रही है। अलगाववादियों तथा आतंकी नेताओं को लुभाने के लिए पिछले कई वर्षों से कई प्रयास किए जा चुके हैं। उग्र कार्रवाइयों तथा कठोर नीतियों पर चलने वाले लोगों के मनों को भी जीतने का प्रयास किया जा रहा है। 

मेरा मानना है कि देश का नेतृत्व एकजुट होकर कार्रवाई करे तथा कश्मीरी समस्याओं को एक नियोजित तथा संगठित तरीके से निष्पादन किया जा सके। कश्मीर में आम लोगों के मनों में भी एक आशावादी माहौल बनाना होगा क्योंकि बंदूक हमारे जैसे लोकतंत्र में किसी भी समस्या को हल नहीं कर सकती। मुख्य बिंदू यह है कि अल्पावधि तथा लम्बी अवधि के पहलुओं में कश्मीर समस्या से निपटने के लिए कौन से कदम उठाए जा सकते हैं? 

1. पहली प्राथमिकता कश्मीरी लोगों को स्वच्छ तथा पारदर्शी प्रशासन दिया जाए। मुझे यह कहने में कोई बुराई नहीं की कि भाजपा नीत एन.डी.ए. सरकार इस मामले में असफल रही है।  
2. जम्मू-कश्मीर को एक बार फिर राज्य का दर्जा देना होगा। इस संदर्भ में केंद्र सरकार को भूमि कानून के प्रावधानों पर निगाह दौड़ानी होगी। 
3. समयबद्ध विकास आधारित कूटनीति तथा कार्य योजना को बनाना होगा जिससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं के लिए नौकरियां उत्पन्न की जा सकें। सरकार को अपने मनों में यह बात रखनी चाहिए कि बेरोजगारी की समस्या एक बहुत बड़ा अभिशाप है जो आतंकियों के लिए एक तैयार सामग्री उपलब्ध करवाती है। 
4. आतंकी गतिविधियों तथा इसके संदिग्ध मंतव्यों के लिए विदेशी फंडों के प्रवाह पर पूरा नियंत्रण करना होगा।
5. पाक प्रायोजित आतंकी संगठनों तथा उनके संरक्षकों को सीमा पार से निपटने के लिए एक कठोर कार्य योजना बनाने की जरूरत है। 
6. सीमा पार चल रहे आतंकी कैंपों को मिटाने के लिए रास्ते तलाशने होंगे।
7. सभी राजनीतिक संगठनों से  एक बातचीत का दौर चलना चाहिए। 
8. कश्मीरी सोसाइटी के पुर्नर्माण के लिए भ्रष्टाचारमुक्त राजनीतिक प्रशासन की जरूरत है। 

इस संदर्भ में यह विचलित करने वाली बात है कि फारुख तथा उमर अब्दुल्ला जैसे हाईप्रोफाइल नेताओं के भूमि घोटाले में नाम सामने आए हैं। उच्च न्यायालय बधाई की पात्र है जिसने अपने 9 अक्तूबर के आदेश में केंद्र शासित प्रदेश को रोशनी एक्ट के अंतर्गत दी गई सभी भूमि को रिकवर करने के लिए कहा है। अदालत ने इसे गैर-कानूनी करार दिया है। क्या प्रधानमंत्री मोदी का प्रशासन कश्मीरी मसले पर एक क्रियाशील नीति का खेल खेलने को तैयार है? प्रधानमंत्री मोदी के मन को पढ़ना मुश्किल है। प्रधानमंत्री मोदी को यह महसूस करने की जरूरत है कि अस्थायी समाधान हमें दूर तक नहीं ले जा सकता।-हरि जयसिंह
 


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