लोगों का हित भूल एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में जुटी हैं केंद्र और राज्य सरकारें

Monday, Nov 13, 2017 - 02:33 AM (IST)

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार उत्तरी भारत के शहर एयर क्वालिटी इंडैक्स (वायु गुणवत्ता सूचकांक) पर लगातार गंभीर स्थिति में बने हुए हैं। प्रदूषण के मामले में वाराणसी 491 के साथ शीर्ष पर, 480 के साथ गुडग़ांव द्वितीय, दिल्ली 468 अंकों के साथ तृतीय स्थान पर जबकि लखनऊ और कानपुर क्रमश: 462 और 461 के साथ चौथे और पांचवें स्थान पर हैं। 

स्मोग प्रभावित दिल्ली में नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा महिलाओं तथा दोपहिया वाहनों को छूट देने से इंकार के बाद दिल्ली की ‘आप’ सरकार ने कार राशनिंग योजना रद्द कर दी है तथा ऑड-ईवन योजना भी स्मोग में उड़ गई है। दूसरी ओर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन के अनुसार दिल्ली में स्थिति सुधर रही है और उन्होंने दिल्ली वासियों को न घबराने के लिए कहा है। उन्होंने कहा है कि धूल दूसरे राज्यों से दाखिल नहीं हो रही है तथा न ही पराली का धुआं आ रहा है। हम (केंद्र) तो केवल मदद ही कर सकते हैं दिल्ली सरकार को जमीनी स्तर पर सुधार लागू करने हैं। 

उन सब पार्टियों को उद्धृत करना व्यर्थ होगा चाहे वह पंजाब में कांग्रेस सरकार के वित्त मंत्री हों या आप के विपक्षी नेता जो ‘आऊट आफ बाक्स’ नया समाधान तलाश करने की सोचने की बजाय पराली जलाने के पक्ष में अपना संकुचित दृष्टिïकोण व्यक्त करके समस्या को बढ़ा रहे हैं। इस हालत में इतना ही कहना काफी है कि जितनी बड़ी समस्या उतना ही बड़ा राजनीतिक ड्रामा हो रहा है। जहां तक वायु प्रदूषण का संबंध है, चूंकि ‘नासा’ द्वारा प्रसारित चित्रों में समूचे उत्तरी भारत को लाल रंग से डेंजर जोन के रूप में दिखाया गया है, लिहाजा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और यहां तक कि उत्तर प्रदेश में कोई भी व्यक्ति आपको यह बता देगा कि आज सबसे आसान और स्वत: स्फूत्र्त समझा जाने वाला काम अर्थात सांस लेना कितना कठिन हो गया है। 

केवल अस्थमा पीड़ित लोगों या छोटे बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि स्वस्थ वयस्कों के लिए भी घर से बाहर निकलना कठिन हो रहा है। ऐसी बात नहीं है कि इस समस्या को झेलने वाला भारत ही एकमात्र देश है। सभी विकसित और विकासशील देशों ने इसका सामना किया है। मैक्सिको को 1960 तक सर्वाधिक प्रदूषित माना जाता था परंतु वहां बारी-बारी से आने वाली सरकारों ने विभिन्न पग उठाए जिनमें प्रदूषित हवा को स्वच्छ करने के लिए कारों में कनवर्टर लगाना, मैट्रो और विद्युत चालित बसों जैसे सार्वजनिक परिवहन साधनों को प्रोत्साहन देना शामिल है। यहां तक कि चीन ने भी समय-समय पर कृत्रिम वर्षा का प्रबंध किया है। ओलिम्पिक खेलों के दौरान चीन सरकार ने पेइचिंग के इर्द-गिर्द अत्यधिक हानिकारक समझे जाने वाले औद्योगिक संयंत्र बंद कर दिए थे। 

चूंकि सभी सरकारें लोगों के कल्याण के लिए बनाई जाती हैं इसलिए प्रत्येक सरकार को समय की स्थिति के अनुसार उससे निपटने का निर्णय करके उसके अनुरूप उठाए जाने वाले पग की योजना बनानी होती है। इसके विपरीत इस समय तो ऐसा लग रहा है कि लोगों का कल्याण भूल सरकारें अपने ही कल्याण में लगी हुई हैं और भारत में इस समय सभी सरकारें चाहे वे पंजाब में हों, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली या केंद्र में सभी एक-दूसरे के विरुद्ध दोष मढऩे का खेल ही खेल रही हैं।

वास्तव में सभी सरकारों के लिए इस साल की प्रदूषण समस्या अब कुछ दिन की मेहमान है। थोड़ी-सी वर्षा होने की देर है, इसका जिक्र भी कहीं नहीं होगा। शायद सभी यह भूल रहे हैं कि प्रदूषण की यह चरम सीमा है परंतु साल भर पी.एम. 2.5 कभी भी 300 से नीचे नहीं आता जोकि 70 से अधिक नहीं होना चाहिए। ऐसे में बच्चों के फेफड़ों पर जो अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है उसका जिम्मेदार कौन है? क्या इसका समाधान ढूंढने के लिए अगली सॢदयों का इंतजार करना होगा?

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