कर्जे के बोझ तले दबी एयर इंडिया के लिए खरीदार मिलेगा?

Monday, Oct 23, 2017 - 01:07 AM (IST)

‘‘लगभग 46,000 करोड़ रुपए के कुल ऋण के बोझ तले दबी एयर इंडिया ने अपने 16 ऋणदाताओं को इसके ऋणों पर ब्याज की दर 2 प्रतिशत अंकों तक कम करने के लिए लिखा है। यह विमान सेवा सरकार के स्वामित्व वाली इंफ्रास्ट्रक्चर कम्पनी एन.बी.सी.सी. तथा विदेश मंत्रालय के साथ अपनी लगभग 98 सम्पत्तियां बेचने के संबंध में बात भी कर रही है।’’ 
ऐसा अप्रैल 2017 में था।

फिर 13 सितम्बर 2017 को एयर इंडिया तथा इसका ऋण पुन: समाचारों के शीर्षकों में आया जब इसने कहा, ‘‘एयर इंडिया प्रथम चरण में एक सरकारी गारंटी द्वारा समर्थित कुल 3250 करोड़ रुपए का आई.एन.आर. अल्पकालिक ऋण तलाश कर रही है ताकि 25 सितम्बर तक अपनी तात्कालिक वर्किंग कैपिटल आवश्यकता की पूर्ति कर सके।’’

इसके बाद 21 अक्तूबर को एयर इंडिया ने अपनी वर्किंग कैपिटल की जरूरतें पूरी करने के लिए एक बार फिर 1500 करोड़ रुपए के अल्पकालिक ऋण के लिए प्रस्ताव मांगे और अब यह ऋण बढ़ कर 50,000 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया पर कुल 52,000 करोड़ रुपए का कर्ज है जिसमें से 23000 करोड़ रुपए विमानों संबंधी ऋण और शेष वर्किंग कैपिटल ऋण एवं अन्य देनदारियां हैं।

इस ऋण की अवधि 27 जून 2018 तक अथवा विनिवेश की तिथि तक होगी। विमान सेवा ने बैंकों को कहा है कि वे 26 अक्तूबर तक जितनी राशि उपलब्ध करने के इ‘छुक हों, उसके विवरण के साथ अपनी वित्तीय बोली पेश करें क्योंकि एयर इंडिया 3 कामकाजी दिनों के भीतर अल्पकालिक ऋण की रकम लेना चाहती है। इसका मतलब यह है कि एयर इंडिया को पैसे की अत्यधिक जरूरत है तथा सरकार द्वारा ऐसी गारंटी देना तय है।

ऐसा तब है जब सरकार यह कह रही है कि वह इसे बेचने की दिशा में काम कर रही है। इससे यह सिद्ध होता है कि फिलहाल घाटे में चल रही इस विमान सेवा को बेचने के संबंध में सरकार की अभी तक कोई ठोस योजना नहीं है।

हालांकि नीति आयोग तथा वित्त मंत्रालय एयर इंडिया के पूर्ण निजीकरण के पक्ष में हैं, नागरिक विमानन मंत्रालय इस बात के लिए उत्सुक है कि सरकार इस राष्ट्रीय यात्री वाहक में एक दावेदार बनी रहे। यह इसका प्रबंधन तो निजी क्षेत्र को सौंप दे लेकिन एयर इंडिया के घाटे लगातार बढ़ते जाने के कारण यह कोई ठोस विकल्प दिखाई नहीं देता। यदि सरकार इसे बेचने की कोशिश भी करे तो फिर खरीदार कहां से आएंगे क्योंकि विमानन उद्योग के लिए मुनाफा कमाने की स्थिति में रहना ही कठिन हो रहा है।

सरकार ने एयर इंडिया की 3  मुनाफा कमाने वाली सहायक कम्पनियों के अलग-अलग रणनीतिक विनिवेश की सलाह भी दी थी जिसमें इसका एम.आर.ओ. यूनिट एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसिज लिमिटेड, ग्राऊंड हैंडलिंग भुजा, एयर इंडिया ट्रांसपोर्ट तथा एयर इंडिया चार्टर्स लिमिटेड शामिल हैं।

एयर इंडिया की प्राइम रियल एस्टेट सम्पत्तियों में नरीमन प्वाइंट मुम्बई स्थित इमारत, सांताक्रूज में पुराने हवाई अड्डïे पर स्थित इमारत, चेन्नई के अन्ना सलाई में फ्री होल्ड भूमि, बाबा खड़क सिंह मार्ग, कनाट प्लेस नई दिल्ली में एक कार्यालय आदि शामिल हैं परंतु प्राइम भूमि सम्पत्तियां होने के बावजूद ये पहले ही सिक्योरिटी के रूप में ऋण के लिए बैंकों के पास गिरवी हैं।

करदाताओं के धन से जिंदा कर्ज के बोझ तले दबी यह विमान सेवा सिर्फ वित्तीय संकट का सामना ही नहीं कर रही बल्कि इसे भारी प्रतियोगिता का सामना भी करना पड़ रहा है।

प्रश्न यह है कि कौन लोग एयर इंडिया द्वारा यात्रा करते हैं-सरकारी कर्मचारी, सिविल कर्मचारी, राजनीतिज्ञ, मंत्री-लगभग समूची सरकार के सदस्य इसमें यात्रा करते हैं और इसीलिए इसे समाप्त करने में देर हो रही है। क्या यह अ‘छा नहीं होगा कि इन सभी लोगों को यात्रा का वैकल्पिक साधन दे दिया जाए जिसमें कुछ रेल द्वारा यात्रा करने का और कुछ विमान यात्रा का भत्ता शामिल हो। हालांकि यह राशि भी करदाताओं की जेब से ही जाएगी लेकिन फिर भी यह इस लगातार बढ़ रहे कर्जे वाली कम्पनी को दी जाने वाली राशि से कम ही होगी। 

Advertising