‘एयर इंडिया’ की राह पर ‘बी.एस.एन.एल’.

Monday, Mar 25, 2019 - 03:40 AM (IST)

ऐन वक्त पर स्वीडन की कम्पनी ‘एरिक्सन’ के लगभग 550 करोड़ रुपए का बकाया चुका कर अनिल अम्बानी जेल जाने से बच गए। उनके नेतृत्व वाली कम्पनी ‘रिलायंस कम्युनिकेशन्स’ (आर कॉम) पर दूरसंचार उपकरण बनाने वाली कम्पनी ‘एरिक्सन’ ने अपना बकाया न चुकाने पर केस किया हुआ था।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘जानबूझ कर भुगतान नहीं करने’ का मामला और अदालत की अवमानना का दोषी पाते हुए आदेश दिया कि या तो 5 सप्ताह में ‘एरिक्सन’ के बकाए का भुगतान किया जाए या अनिल अम्बानी 3 महीने के लिए जेल जाने के लिए तैयार रहें। अनिल अम्बानी की सभी कम्पनियों की वित्तीय स्थिति बेहद खराब है, ऐसे में उनका जेल जाना तय लग रहा था परंतु समय सीमा समाप्त होने से ठीक पहले अनिल अम्बानी के लिए बड़े भाई मुकेश अम्बानी ने ‘एरिक्सन’ का बकाया चुकाने में उनकी मदद करके उन्हें जेल जाने से बचा लिया।

दूसरी ओर सरकारी क्षेत्र की दूरसंचार कम्पनी बी.एस.एन.एल. वर्षों से भारत की राष्ट्रीय विमान सेवा ‘एयर इंडिया’ की भांति ही लगातार घाटे में डूबती चली जा रही है। पिछले महीने अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थता जाहिर करने के बाद से ही यह सुर्खियों में है। ‘कोटक इंस्टीच्यूशनल इक्विटी’ की हालिया रिपोर्ट पर विश्वास करें तो बी.एस.एन.एल. का कुल घाटा दिसम्बर, 2018 तक बढ़ कर 90,000 करोड़ रुपए से अधिक हो चुका था।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘अब समय आ गया है कि सरकार इस पर गम्भीरता से विचार करे कि क्या इसमें और पैसा लगाना है या घाटे से बचने के लिए इसे बंद करना है। रिलायंस जियो के ब्राडबैंड क्षेत्र में भी कदम रखने के साथ ही इसका वायरलैस बिजनैस भी प्रभावित होगा। बी.एस.एन.एल. का अंत तय है। ऐसा कब होता है, यह देखने की बात है।’’ एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने पिछले वर्ष ही बी.एस.एन.एल. से अपनी हालत सुधारने के लिए सभी विकल्पों पर गौर करके रिपोर्ट पेश करने को कहा था। इनमें विनिवेश की योजना से लेकर कम्पनी को बंद करने अथवा इसकी हालत सुधारने के लिए सरकार की ओर से इसमें और धन लगाने पर विचार करने जैसे विकल्प शामिल थे।

रिपोर्ट के अनुसार कम्पनी के सामने सबसे बड़ा मुद्दा इसके कर्मचारियों की बड़ी तथा बूढ़ी होती संख्या थी। कम्पनी की 55 प्रतिशत आय कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में ही चली जाती है जो हर साल 8 प्रतिशत की दर से बढ़ जाती है जबकि इसकी आय स्थिर है। बी.एस.एन.एल. के अनुसार 50 से 60 वर्ष आयु के कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प देकर उनकी संख्या में 67 हजार तक की कमी हो सकती है। हालांकि, इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए कम्पनी को 5 हजार करोड़ रुपए संचालन लागत व 14 हजार करोड़ रुपए 4 जी स्पैक्ट्रम फीस अदा करनी होगी। कम्पनी के पास अपनी जमीन तथा इमारतों को बेचने का विकल्प भी था जिससे 15,000 करोड़ रुपए तक अर्जित हो सकते हैं।

गौरतलब है कि कम्पनी लगभग एक दशक से घाटे में चल रही है परंतु इसके बावजूद उसे बंद करने या उचित कार्रवाई के लिए नैशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल (एन.सी.एल.टी.) में ले जाने के संबंध में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रश्न उठता है कि यदि कोई निजी कम्पनी इतने घाटे में होती तो क्या उसे इसी तरह चलने दिया जाता? यदि इस पर अभी तक ताला नहीं लगा है तो इसकी एकमात्र वजह है कि यह एक सरकारी कम्पनी है जिसके कर्मचारियों की संख्या लगभग 1.76 लाख है।

वैसे भी चुनावी वर्ष में तो कोई भी सरकार इतने बड़े कर्मचारियों वाली कम्पनी को बंद करके चुनावों में अपने हाथ जलाने की सोच भी नहीं सकती। फिलहाल तो केन्द्र सरकार का यही संकेत है कि बी.एस.एन.एल. के कर्मचारियों के वेतन की अदायगी में इसकी पूरी सहायता की जाएगी और कुछ समय के लिए इसे सरकार की ओर से वित्तीय सहायता मिलना भी तय सा लगता है। हालांकि, टैलीकॉम बाजार में रिलायंस की एंट्री, तेजी से बदलती तकनीकों तथा गलाकाट प्रतियोगिता के बीच बी.एस.एन.एल. का दोबारा मुनाफे में लौटना लगभग असम्भव-सा है। ऐसे में इसे ‘एयर इंडिया’ की राह पर जाने से तभी बचाया जा सकता है यदि सरकार समझदारी से कोई फैसला लेती है।

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