‘सेना के लिए’ ‘खरीदा घटिया गोला-बारूद’ केंद्र सरकार जल्द सुधार करे

Friday, Oct 02, 2020 - 03:54 AM (IST)

इस समय भारत अत्यंत अशांत दौर से गुजर रहा है। एक ओर देश में महामारी का प्रकोप जारी है तो दूसरी ओर सीमा पर भारत तथा चीन के बीच तनाव बना हुआ है। चीनी शासकों द्वारा भारत के साथ विभिन्न स्तरों पर चल रही बातचीत के बावजूद तीखे तेवर अपनाए रखने के कारण दोनों ही देशों ने सीमा पर नफरी में भारी वृद्धि कर दी है। जहां वायुसेना प्रमुख आर.के.एस. भदौरिया ने देश की उत्तरी सीमाओं पर हालात को असहज बताया है वहीं इन हालात के बीच भारतीय गोला-बारूद की घटिया क्वालिटी के बारे में एक परेशानकुन खुलासा हुआ है। 

सेना द्वारा ‘आर्डनैंस फैक्टरी बोर्ड’ (ओ.एफ.बी.) से 2014 से 2020 के बीच  खरीदे गए गोला-बारूद एवं अन्य सामान के आंतरिक आकलन की रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई एक इंटरनल रिपोर्ट के अनुसार इसने 6 साल में  ‘ऑर्डनैंस फैक्टरी बोर्ड’ से 960 करोड़ रुपए का  खराब गोला-बारूद खरीदा है जबकि इतनी रकम से सेना को लगभग 100 तोपें मिल सकती थीं। जिन सैन्य उपकरणों में खामी पाई गई है, उनमें 23 एम.एम. के एयर डिफैंस शैल, आर्टिलरी शैल, 125 एम.एम. के टैंक राऊंड के अलावा इन्फैंट्री की असाल्ट राइफलों में इस्तेमाल किए जाने वाले अलग-अलग कैलिबर के बुलेट शामिल हैं। 

सेना की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि खराब क्वालिटी के गोला- बारूद से न सिर्फ  धन हानि हुई बल्कि 2014 के बाद इसके परिणामस्वरूप 403 दुर्घटनाओं में लगभग 27 जवानों की मृत्यु तथा लगभग 159 जवान घायल हुए हैं जिनमें से अनेकों ने अपने हाथ-पैर तक खो दिए हैं। सैन्य अधिकारियों के अनुसार अन्य वस्तुओं की तरह ही गोला-बारूद की भी ‘शैल्फ लाइफ’ होती है जो इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें प्रयुक्त विस्फोटकों की गुणवत्ता कैसी है तथा उसका निर्माण किस प्रकार किया गया है जिसके पूरी होने के बाद उन्हें ‘डिस्पोज’ कर दिया जाता है। खराब सैन्य सामग्री के साथ ही सेना के लिए अन्य सामान महंगे भावों पर खरीदने का भी खुलासा हुआ है। आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार ‘ओ.एफ.बी.’ से खरीदी एक जवान की वर्दी की लागत 17,950 रुपए है जबकि इसकी बाजार कीमत 9400 रुपए है। अर्थात ‘ओ.एफ.बी.’ हर वर्दी पर 8550 रुपए अधिक ले रहा है।

प्रति जवान 4 वर्दियों के हिसाब से भी जोड़ें तो यह अंतर 480 करोड़ रुपए बनता है। बाजार में 1800 रुपए से कम में मिलने वाली काम्बैट ड्रैस 3300 रुपए में खरीदी जाती है जबकि 500 रुपए में खरीदी जाने वाली कैप 150 रुपए में मिल जाती है। उक्त घटनाक्रम से स्पष्टï है कि हमें रक्षा सामग्री के मामले में आत्म निर्भर होने, इसका घरेलू उत्पादन बढ़ाने तथा इसकी गुणवत्ता बढ़ाने की कितनी अधिक आवश्यकता है। बेशक हमारी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के अंतर्गत स्वदेशीकरण पर जोर दिया है परंतु यह अभी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है तथा रक्षा उपकरणों के मामले में अभी काफी कुछ करना बाकी है। इसके लिए देश में नई तकनीक लाने, सैन्य रक्षा उपकरणों के विकास, निर्माण और उत्पादन से जुड़े लोगों को तैयार करने और यदि वे इसके लिए पूर्णत: प्रशिक्षित नहीं हैं तो विदेशों में समुचित प्रशिक्षण दिलवाने की आवश्यकता है जैसा कि हम कृषि के क्षेत्र में इसराईल का सहयोग प्राप्त कर रहे हैं। 

बेशक भारत ने युद्धपोतों के निर्माण में उपलब्धियां प्राप्त की हैं जिसका प्रमाण विशालकाय ‘आई.एन.एस. विक्रांत’ आदि है, परंतु इतने भर से संतुष्टï होकर बैठ जाना उचित नहीं है। हमारी निर्माण प्रौद्योगिकी को हालात के अनुसार अपटूडेट करते रहना भी अनिवार्य है। अब भारत सरकार ने रक्षा के क्षेत्र में सेना तथा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के परामर्श से ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा बुलंद करते हुए चरणबद्ध रूप से इसे लागू करने के निर्णय के अंतर्गत 101 वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया है जिनमें आॢटलरी गन, असाल्ट राइफलें, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, राडार तथा अन्य वस्तुएं शामिल हैं। इस निर्णय को तेजी से अमली जामा पहनाना होगा। 

‘स्टाकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीच्यूट’ (सिपरी) के अनुसार अमरीका और चीन के बाद भारत सैन्य क्षेत्र मेें तीसरा सर्वाधिक खर्च करने वाला देश है तथा हाल के समय में पाकिस्तान और चीन के साथ इसके सैन्य तनाव के कारण भारत का रक्षा खर्च और भी बढ़ा हुआ है। अत: देश में सैन्य उपकरणों के स्वदेशीकरण से जहां विदेशों से सैन्य उपकरण खरीदने पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत होगी वहीं भारत में उन्नत तकनीक से बेहतर हथियार बना कर और भारतीयों को रोजगार देकर हमारा देश अपनी विश्वव्यापी प्रतिष्ठा में भी वृद्धि करेगा।-विजय कुमार

Advertising