भाजपा-शिवसेना संबंध पहुंचे अब हाशिए पर

Saturday, Oct 28, 2017 - 11:45 PM (IST)

श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से हटने के बाद से अब तक भाजपा और राजग के कई गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए हैं तथा इन दिनों 28 वर्षों से इसका महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिवसेना भी इनसे अब सख्त नाराज है। महाराष्ट्र की फडऩवीस सरकार में शिवसेना के 12 मंत्री हैं जिनमें 5 कैबिनेट दर्जे के हैं और केंद्र की मोदी सरकार में शिवसेना का केवल एक मंत्री है जिस पर शिवसेना कई बार अप्रसन्नता जता चुकी है। 

शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने तो कुछ समय पूर्व यहां तक कहा था कि शिवसेना के 50 वर्षों में से 25 वर्ष गठबंधन की वजह से ही बेकार हो गए। ऐसी ही बातों के चलते इस समय भाजपा और शिवसेना में कटुता शिखर पर पहुंच चुकी है तथा  गत माह शिवसेना ने फडऩवीस सरकार को अल्टीमेटम देते हुए अपना समर्थन वापस लेने की धमकी भी दे दी। मनमुटाव के कुछ ऐसे माहौल में दोनों दलों के बीच उठा-पटक जारी है। गत 23 अक्तूबर को शिवसेना ने भाजपा का नाम लिए बिना दावा किया कि, ‘‘केवल एक पार्टी के पास अकूत धन है। नोटबंदी के बाद लोगों ने मंदी का दौर देखा लेकिन एक पार्टी लगातार ऊपर चढ़ती गई और लोगों द्वारा खारिज किए जाने के बावजूद गोवा तथा मणिपुर में सत्ता में आई है।’’ 

शिवसेना ने यह दावा भी किया कि इस धन का इस्तेमाल शिवसेना को उखाड़ फैंकने की कोशिश में किया जा रहा है। 25 अक्तूबर को शिवसेना ने गुजरात के विकास माडल को लेकर कहा कि: 

‘‘अगर इसकी सफलता के बारे में भाजपा के दावे सही हैं तो सरकार को विधानसभा चुनावों से पूर्व इतनी सारी घोषणाएं करने की जरूरत क्यों पड़ी? अगर पिछले 15 वर्षों में वहां विकास कार्य किए गए होते तब तो प्रचार के नाटक के बिना ही चुनाव जीता जा सकता था।’’ यही नहीं शिवसेना से अलग हुए ‘मनसे’ के नेता राज ठाकरे ने भी 26 अक्तूबर को कहा कि ‘‘अगर गुजरात में भाजपा जीत रही है तो प्रधानमंत्री समेत इतने मंत्री वहां रैलियां क्यों कर रहे हैं?’’ इसके बाद 27 अक्तूबर को ठाणे में भी उन्होंने कहा कि ‘‘वर्तमान रुख और रिपोर्ट इंगित करते हैं कि भाजपा गुजरात में चुनाव हार सकती है।’’ 

27 अक्तूबर को शिवसेना सांसद संजय राऊत ने राहुल गांधी की तारीफ करते हुए कहा कि वह देश का नेतृत्व करने में सक्षम हैं, वहीं उन्होंने कहा कि ‘‘नरेन्द्र मोदी की लहर फीकी पड़ गई है। वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) को लागू किए जाने के विरुद्ध गुजरात के लोगों में रोष इस बात का संकेत है कि भाजपा को चुनाव में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। देश में सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति जनता है। वह किसी को भी पप्पू बना सकती है। ’’ संजय राऊत की उक्त टिप्पणी के अगले दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस ने एक टी.वी. कार्यक्रम में राज्य और केंद्र में सहयोगी शिवसेना पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया। 

उन्होंने कहा कि ‘‘वे हमारे सभी फैसलों का विरोध करते हैं। वे अपने सुझाव दे सकते हैं लेकिन एक ही साथ सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की भूमिका नहीं निभा सकते। अत: शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे को तय कर लेना चाहिए कि वह गठबंधन जारी रखना चाहते हैं या नहीं। शिवसेना का दोहरा रवैया महाराष्ट्र के लोगों के लिए अच्छा नहीं है।’’ इस कटुता में दोष किसका है, यह तो भाजपा और शिवसेना वाले ही बेहतर जानते होंगे परन्तु यह बात निॢववाद है कि दोनों दलों के बीच बढ़ रही कटुता दोनों के ही हित में नहीं है। अत: जितनी जल्दी दोनों दल आपस में मिल-बैठ कर अपने मतभेद दूर कर सकें, दोनों के लिए उतना ही अच्छा होगा। भाजपा नेतृत्व को भी सोचना होगा कि इस तरह पुराना साथी खोना उसके और राजग के लिए अहितकर ही होगा।—विजय कुमार

Advertising