तीनों सीटों पर बंगाल उपचुनावों में पराजय भाजपा सतर्क हो

Saturday, Nov 30, 2019 - 12:30 AM (IST)

2014 के चुनावों में भारी-भरकम सफलता के बाद भाजपा बड़ी तेजी से आगे बढ़ी और विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई। वर्ष 2017 तक पहुंचते-पहुंचते देश के 21 राज्यों तथा 72 प्रतिशत जनसंख्या वाले क्षेत्र पर इसका और ‘राजग’ में शामिल इसके सहयोगी दलों का शासन स्थापित हो गया। परंतु अनेक कारणों से भाजपा की बढ़त की यह रफ्तार कायम न रही और विभिन्न राज्यों एवं स्थानीय निकायों के चुनावों में पराजय के चलते लोगों पर इसकी पकड़ कमजोर पडऩे लगी। आज की तारीख में हालत यह है कि भाजपा तथा सहयोगी दलों का शासन 21 राज्यों से घट कर 17 राज्यों तक सिमट गया है जिनमें से 13 राज्यों में भाजपा तथा 4 राज्यों में सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री हैं और अब देश की 41 प्रतिशत जनसंख्या वाले क्षेत्र पर ही भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों का शासन रह गया है।

ताजा संदर्भ में देखें तो पिछले दिनों हुए कर्नाटक के स्थानीय निकायों के चुनावों में पराजय के बाद राजस्थान में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भी भाजपा को पछाड़ते हुए कांग्रेस ने 49 स्थानीय निकायों में से 37 पर सफलता प्राप्त कर ली जबकि भाजपा 12 स्थानीय निकायों पर ही कब्जा कर सकी। भाजपा ने हरियाणा में तो वैचारिक धरातल पर अपनी विरोधी पार्टी जजपा के साथ मिल कर और उसके नेता दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री का पद देकर किसी तरह अपनी सरकार बना ली परंतु महाराष्ट्र में गठबंधन सहयोगी शिवसेना की नाराजगी के बाद जल्दबाजी में सरकार बनाने और गंवाने से इसकी छवि प्रभावित हुई है।

इतना ही नहीं बंगाल में हुए 3 विधानसभाओं के उपचुनावों में भी भाजपा को निराशा ही हाथ लगी और वहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने अपना वर्चस्व कायम रखते हुए सभी 3 सीटों पर विजय प्राप्त कर ली। इन तीन सीटों में से तृणमूल कांग्रेस ने खडग़पुर सदर सीट भाजपा से और कालियागंज सीट कांग्रेस से छीनी जबकि करीमपुर सीट पर अपना कब्जा कायम रखा। ममता बनर्जी ने इसे एन.आर.सी. (नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स) तथा भाजपा नेताओं के विरुद्ध राज्य की जनता का फतवा करार दिया है।

इसी वर्ष के शुरू में लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने खडग़पुर सदर विधानसभा क्षेत्र में 46,000 तथा कालियागंज में 57,000 वोटों की बढ़त प्राप्त की थी जबकि इन उपचुनावों में तीनों सीटों पर उसकी पराजय इसके जनाधार में कमी की चेतावनी दे रही है। जहां भाजपा महाराष्ट्र में सरकार बनाने में विफल रही है वहीं झारखंड में 30 नवम्बर से 20 दिसम्बर तक पांच चरणों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भी भाजपा नेतृत्व में चिंता व्याप्त है। झारखंड जैसे छोटे राज्य में पांच चरणों में चुनाव करवाने के पीछे यही कारण बताया जा रहा है क्योंकि वहां अपनी सरकार बरकरार रखने को लेकर भी भाजपा नेतृत्व सशंकित है।

जिस प्रकार भाजपा के ‘चाणक्य’ अमित शाह ने हरियाणा में ‘75 पार’ का लक्ष्य दिया था, उन्होंने इस बार झारखंड के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किया है।   झारखंड में जहां भाजपा के कुछ साथी इससे नाराज होकर अलग हो गए हैं वहीं मुख्यमंत्री रघुवर दास के अनेक साथी बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं। इस बीच मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने राज्य में नक्सलवाद में कमी संबंधी रघुवर दास के दावे से अनभिज्ञता व्यक्त की है और कहा है कि उन्हें इस बारे राज्य सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई। भाजपा के सामने पैदा हुई इस स्थिति के पीछे जहां उसके द्वारा स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा का बड़ा योगदान है वहीं साथी दलों की नाराजगी की भी इसमें मुख्य भूमिका है जिस कारण भाजपा और सहयोगी दलों में तनाव व्याप्त है।


सहयोगी दलों की न सुनने के कारण ही भाजपा नेतृत्व की ‘राजग’ पर पकड़ कमजोर हो रही है। इस स्थिति को सुधारने के लिए भाजपा नेतृत्व को देर किए बगैर चिंतन-मनन करना और सोचना होगा कि जहां दूसरी पार्टियां अपनी पारस्परिक शत्रुता और मतभेद भुला कर इकट्ठी हो रही हैं वहीं भाजपा के पुराने साथी इससे क्यों रूठ रहे हैं!    —विजय कुमार 

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