‘भाजपा नेतृत्व चिंतन करे’ ‘सहयोगी दल क्यों रूठ रहे हैं’

Wednesday, Feb 07, 2018 - 02:31 AM (IST)

देश के 19 राज्यों पर शासन करने वाली भाजपा के गठबंधन सहयोगियों में असंतोष के स्वर तेजी से उभरने लगे हैं। सबसे पहले महाराष्ट्र में शिव सेना ने भाजपा नेतृत्व पर गठबंधन धर्म की अवहेलना और पार्टी की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए 2019 के लोकसभा और फिर प्रदेश विधानसभा चुनाव अकेले लडऩे की घोषणा करके धमाका कर दिया। 

इसके बाद आंध्र प्रदेश में भाजपा की सहयोगी तेदेपा के नेता चंद्र बाबू नायडू ने भाजपा द्वारा पार्टी तथा आंध्र के हितों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए इससे संबंध तोडऩे की चेतावनी दे डाली। पंजाब में शिअद के साथ पार्टी का रिश्ता तनाव से गुजर रहा है। शिअद के राज्यसभा सांसद नरेश गुजराल ने तेदेपा नेता चंद्र बाबू नायडू से सहानुभूति व्यक्त करते हुए उनके द्वारा उठाई गई मांगों का समर्थन किया है। भाजपा पर गठबंधन धर्म सही तरीके से न निभाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि यदि गठबंधन धर्म निभाना है तो भाजपा को तानाशाही रवैया अपनाना बंद करना होगा। यदि ऐसे ही चलता रहा तो मोदी सरकार 2019 में लोकसभा के चुनावों में 272 सीटें नहीं ले पाएगी। 

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शिव सेना और तेदेपा की तरह अकाली दल भी गठबंधन से बाहर हो जाता है तो इससे भाजपा को विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़ेंगे। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार में भागीदार ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली ‘सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी’ (एस.बी.एस.पी.) ने भी सार्वजनिक रूप से भगवा पार्टी पर गठबंधन सहयोगियों की उपेक्षा का आरोप लगाया है। उनके अनुसार यह भाजपा पर है कि वह हमारे साथ गठबंधन जारी रखना चाहती है या नहीं। राजभर ने योगी सरकार में बसपा और सपा सरकारों से भी अधिक भ्रष्टïाचार का आरोप लगाकर उनके लिए परेशानी खड़ी कर दी है। बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के प्रधान तथा केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी भाजपा द्वारा जद (यू) के साथ गठबंधन करने के समय से ही भाजपा के साथ सहज महसूस नहीं करते।

कुशवाहा की पार्टी ने गत दिनों पटना में शिक्षा सुधारों को लेकर एक मानव शृंखला आयोजित की थी जिसमें भाजपा का तो कोई भी गठबंधन सहयोगी शामिल नहीं हुआ अलबत्ता लालू की राजद के अनेक नेताओं के शामिल होने से राजद और रालोसपा में बढ़ती नजदीकियों का संकेत मिला। रालोसपा का कहना है कि 2020 के चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा पार्टी का सी.एम. फेस होंगे और रालोसपा इस विचार का समर्थन करने वाली किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन करेगी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली ‘हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा’ (हम) ने भी अगले विधानसभा चुनावों में 50 सीटों की शर्त भाजपा के आगे रख दी है और मांग की है कि अगली बार सत्ता में आने पर इसे 2 उपमुख्यमंत्री बनाने होंगे जिनमें से एक दलितों का और दूसरा अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हो।

सुदूर नागालैंड में भाजपा ने चुनावों से कुछ ही समय पूर्व अपने पुराने सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (एन.पी.एफ.) से संबंध विच्छेद करके नई बनी नैशनलिस्ट डैमोक्रेटिक प्रोगै्रसिव पार्टी (एन.डी.पी.पी.) के साथ सीट बंटवारे का समझौता कर लिया है जिस पर एन.पी.एफ. में ही नहीं बल्कि स्वयं भाजपा काडर में भी असंतोष भड़क उठा है। कुल मिलाकर इस समय भाजपा एक ओर सफलता के रथ पर सवार है तो दूसरी ओर भाजपा नेतृत्व अपने गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर नहीं चल रहा है। हालांकि राजनाथ सिंह के चंद्र बाबू नायडू को फोन के बाद उन्होंने गठबंधन से अलग होने का निर्णय स्थगित तो कर दिया है परंतु पार्टी नेतृत्व के साथ उनकी नाराजगी यथावत कायम है। 

अत: भाजपा नेतृत्व के लिए यह चिंतन की घड़ी है कि आखिर गठबंधन सहयोगी उससे नाराज क्यों होते जा रहे हैं। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने समय में 26 दलों को आपस में जोड़ कर रखा परंतु आज भाजपा के वर्तमान नेतृत्व के लिए अपने आधा दर्जन गठबंधन सहयोगियों को भी अपने साथ जोड़ कर रखना कठिन हो रहा है।—विजय कुमार 

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