5 राज्यों के चुनावों में भाजपा का सबसे ‘बढिय़ा’ और सबसे ‘घटिया’ प्रदर्शन

punjabkesari.in Tuesday, Mar 14, 2017 - 11:23 PM (IST)

चुनावी राज्यों में से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा और पंजाब में कांग्रेस को मिली बम्पर सफलता के बाद विभिन्न पार्टियों की जीत-हार के कारणों का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है। सर्वाधिक हलचल उत्तर प्रदेश में मची हुई है जहां भाजपा को चुनौती दे रही सपा, कांग्रेस, बसपा और रालोद को मुंह की खानी पड़ी। निम्र में प्रस्तुत हैं इन चुनावों के बाद हुई चंद घटनाएं : 

उत्तराखंड में भाजपा ने 70 में से 57 सीटें अपने नाम कर लीं। यह उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक की सबसे बड़ी विजय है जबकि कांग्रेस की उत्तराखंड में उतनी ही शर्मनाक हार हुई और यह 11 सीटों पर ही सिमट गई। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 2 सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों सीटों पर ही हार गए।

पंजाब में 3 सीटों पर ही सिमट कर भाजपा ने 20 वर्षों में सबसे खराब प्रदर्शन किया। पारिवारिक कलह के बीच चुनाव लडऩे वाली सपा की पराजय का कारण ‘घमंड’ बताते हुए अखिलेश यादव विरोधी खेमे ने यह दावा किया है कि अखिलेश ने मुलायम सिंह का अपमान किया और उन्हें तथा शिवपाल आदि वरिष्ठï नेताओं को दरकिनार करने का खमियाजा भुगतना पड़ा। मायावती ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में मतदाताओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से कैद काट रहे गैंगस्टर मुख्तार अंसारी को मऊ से टिकट देने के अलावा उसके भाई और बेटे को भी टिकट दिए परंतु वे दोनों मतदाताओं को तो प्रभावित क्या करते, स्वयं भी चुनाव हार गए। सिर्फ मुख्तार ही जीत पाया। 

पंजाब के 117 विधायकों में से 25 विधायक 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं। इनमें लम्बी से छठी बार जीतने वाले प्रकाश सिंह बादल सर्वाधिक 89 वर्ष के तथा कै. अमरेन्द्र सिंह 75 वर्ष के हैं। सबसे कम आयु (25 वर्ष) के विधायक फाजिल्का से देवेन्द्र सिंह घुबाया (कांग्रेस) हैं। उन्होंने मात्र 265 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।अनेक चुनावों की भांति इन चुनावों में भी मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए उन्हीं  के नामों वाले उम्मीदवार खड़े हुए। जीरा में कुलबीर सिंह (कांग्रेस) के नाम वाले तीन और लोग चुनाव लड़ रहे थे जिन्हें क्रमश: 121, 147 और 195 वोट पड़े। उनके प्रतिद्वंद्वी गुरप्रीत सिंह (आप) के नाम वाले भी 2 उम्मीदवार मैदान में थे जिन्हें क्रमश: 198 और 331 वोट मिले। 

पंजाब में कांग्रेस की बम्पर जीत हुई पर मतदाताओं से ‘दूरी’ के चलते इसकी अनेक बड़ी तोपें लुढ़क गईं। पंजाब में 1146 उम्मीदवारों में से 800 की जमानत जब्त हुई है। यह पहला मौका है जब एक भी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया। लगभग 1.08 लाख मतदाताओं ने पंजाब में ‘नोटा’, (उक्त में से कोई भी पसंद नहीं) का बटन दबाया। इसका सर्वाधिक इस्तेमाल सुनाम में हुआ। 

पंजाब से विजेताओं में एक पूर्व टैक्सी ड्राइवर अमरजीत सिंह संदोआ (आप) भी शामिल हैं। वह दिल्ली में टैक्सी चलाते थे और अब उनकी एक छोटी-सी ट्रांसपोर्ट कम्पनी है। उन्होंने रूपनगर में वीरेन्द्र सिंह ढिल्लों (कांग्रेस) और शिअद सरकार में शिक्षा मंत्री रहे श्री दलजीत सिंह चीमा को हराया। पंजाब और गोवा में बड़े धूम-धड़ाके के साथ चुनावी दंगल में उतरने वाली ‘आप’ को निराशा का सामना करना पड़ा। पंजाब में तो इसे 117 में से 22 सीटें मिल गईं परन्तु गोवा में यह एक भी सीट नहीं जीत पाई। 

चुनावी राज्यों में 100 उम्मीदवारों को 100 से भी कम वोट मिले। मणिपुर में लागू ‘सेना का विशेषाधिकार कानून’ (अफस्पा) हटाने के लिए 16 वर्ष तक भूख हड़ताल करने वाली इरोम शर्मिला ने अपनी पार्टी बनाकर 3 उम्मीदवार खड़े किए थे जो हार गए। इरोम सिर्फ 90 वोट ही प्राप्त कर पाईं और अब उन्होंने कभी भी चुनाव न लडऩे का निर्णय लिया है। राहुल गांधी ने जहां कहीं भी कांग्रेस का प्रचार किया लगभग हर जगह इसकी हार हुई। इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी द्वारा संबोधित चुनाव सभाओं में पार्टी की सफलता का प्रतिशत 86 रहा और जहां-जहां केंद्रीय मंत्रियों ने प्रचार किया वहां शत-प्रतिशत उम्मीदवार सफल हुए। 

अब तक भाजपा को उच्च सदन में संख्या बल की कमी के कारण अनेक विधेयक पारित कराने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था परन्तु अब अगले एक वर्ष में राज्यसभा में इसके सांसदों की संख्या बढ़ जाने से इसे रुके हुए महत्वपूर्ण विधेयक पारित करवाने में आसानी होने के अलावा यह इसी वर्ष जुलाई में होने वाले राष्टपति चुनाव में अपनी पसंद का उम्मीदवार जिताने की स्थिति में आ जाएगी। —विजय कुमार


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News