नोटबंदी पर अब भाजपा के सहयोगी दलों में बढ़ रही बेचैनी

Wednesday, Dec 21, 2016 - 11:50 PM (IST)

काला धन व नकली करंसी समाप्त करने के लिए 8 नवम्बर को सरकार द्वारा 500 व 1000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा के साथ ही जहां सत्तारूढ़ पक्ष इसे क्रांतिकारी कदम बताते हुए इसका स्तुतिगान करने में लगा है वहीं विपक्षी दलों ने इसे विनाशकारी बताते हुए आलोचना शुरू कर दी है।

सरकार के तमाम दावों के बावजूद आज 44वें दिन भी लोगों को कोई राहत नहीं मिल पाई। नोट निकलवाने के लिए कतारों में खड़े 100 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है इसलिए अब तो सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी दलों के साथ-साथ इसके अनेक सदस्यों ने भी आलोचना शुरू कर दी है।

14 नवम्बर को भाजपा की सहयोगी शिव सेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा, ‘‘काला धन समाप्त करने के लिए अपनाया गया रास्ता गलत और बेढंगा है। इससे देश में अराजकता फैल रही है और 125 करोड़ लोग बिना कुछ खाए-पिए बैंकों की कतारों में खड़े हैं।’’

15 नवम्बर को पूर्व भाजपा सांसद दिलीप सघानी ने कहा, ‘‘सरकार के फैसले से किसान तबाह हो जाएंगे।’’22 नवम्बर को ‘सेबी’ से जुड़े वरिष्ठï भाजपा नेता अरुण साठे ने कहा, ‘‘सरकार व इसे लागू करने वाली एजैंसियां इसके असर का आकलन करने में असफल रहीं जिससे संकट की स्थिति पैदा हो गई है।

‘‘नए 2000 रुपए के नोट लाने से काले धन से मुक्ति कैसे मिलेगी जो भारत के लोगों के खून में है? हम बेईमान लोग हैं। यह बेईमान लोगों का देश है।’’ 8 दिसम्बर को नोटबंदी का एक महीना पूरा होने पर शिव सेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘पैसे के लिए जो लोग घंटों लाइन में लग रहे हैं उन्हें क्या स्वतंत्रता सेनानी पैंशन दी जाएगी?’’

18 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के एक सांसद के अनुसार 2 दिन पूर्व भाजपा नेताओं ने रात्रि भोज पर अमित शाह को बताया था कि ‘‘अंतहीन नकदी की कमी राजनीतिक रूप से विनाशकारी सिद्ध हो सकती है।’’इसी बैठक में एक नेता ने कहा, ‘‘हां अब भी लोग खुलेआम नोटबंदी का विरोध नहीं कर रहे हैं परंतु हम नहीं जानते कि कब यह खिन्न माहौल एक विस्फोटक स्थिति में बदल जाएगा।’

यहीं पर बस नहीं, नोटबंदी की घोषणा के 4 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर इसका प्रबल समर्थन करने वाले भाजपा की मुख्य सहयोगी पार्टी टी.डी.पी., जिसके संसद में 16 सदस्य हैं, के नेता व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू के सब्र का बांध भी अब टूट गया है।

श्री नायडू केंद्र सरकार द्वारा गठित उस 13 सदस्यीय समिति के अध्यक्ष भी हैं जिसके पास नोटबंदी से पैदा हुई समस्याओं को देखने की जिम्मेदारी है। लोगों को हो रही असुविधा के दृष्टिïगत उन्होंने 20 दिसम्बर को कहा :
 

‘‘हमने 30 दिनों में अगस्त संकट (1984 में पार्टी के भीतर हुए तख्ता पलट) का हल निकाल लिया था लेकिन नोटबंदी अब भी परेशान कर रही हैं। नोटबंदी और डिजीटल ट्रांजैक्शन के लिए बैंक तैयार नहीं।’’ ‘‘जैसी मुझे खुशफहमी थी नोटबंदी का निर्णय वैसा नहीं रहा। इससे पैदा भारी परेशानी को कम करने के उपाय सोचने के लिए मैं रोज 2 घंटे माथापच्ची  करता हूं परंतु 40 से अधिक दिनों के बाद भी इसका कोई हल दिखाई नहीं दे रहा।’’

‘‘नोटबंदी से जैसी उम्मीद थी वह पूरी नहीं हुई। यह समस्या सुलझाए जाने के काबिल नहीं है और अगर फौरी तौर पर सुधार के कदम नहीं उठाए गए तो लोगों की परेशानी लम्बे समय तक बनी रह सकती है।’’ नोटबंदी से उत्पन्न आम लोगों को परेशानी के बीच विभिन्न सरकारी और निजी बैंकों के कर्मचारियों द्वारा हेराफेरी से काले धन को बड़े पैमाने पर सफेद करने तथा बैंकों द्वारा नई करंसी ए.टी.एम्स में डाल कर सही ढंग से वितरण करने और आम लोगों को देने की बजाय पक्षपातपूर्ण तरीके से अमीरों को देने के आरोप भी लग रहे हैं।

लिहाजा इससे पहले कि स्थिति और खराब हो केंद्र सरकार को नोटबंदी के विरोध में उभर रही आवाजों को सुनकर सभी पक्षों से विचार-विमर्श द्वारा इसका त्वरित समाधान निकालने की दिशा में पग उठाने चाहिएं ताकि अच्छे उद्देश्य से शुरू की गई योजना वरदान की बजाय अभिशाप बन कर न रह जाए।    —विजय कुमार 

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