बिहार रेलवे भर्ती आंदोलन ने देश में बेरोजगारी की समस्या को किया उजागर

Saturday, Jan 29, 2022 - 06:50 AM (IST)

रेलवे में भर्ती के लिए रेलवे रिक्रूटमैंट बोर्ड (आर.आर.बी.) परीक्षाओं का आयोजन करता है। इसी के अंतर्गत आर.आर.बी. ने 2019 में ‘नॉन टैक्निकल पॉपुलर कैटेगरी’ (एन.टी.पी.सी.) के जरिए 35,281 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था जबकि ग्रुप-डी (क्लास-4) की भर्ती के लिए भी 1,03,769 पदों के लिए वैकेंसी निकाली गई थी। 

इन पदों के लिए परीक्षा का प्रथम चरण उसी वर्ष होना था परंतु विभिन्न कारणों से यह दिस बर, 2020 और जुलाई 2021 के बीच स पन्न हुआ जिसके 14 जनवरी, 2022 को घोषित नतीजों में बिहार और यू.पी. के छात्रों ने गड़बड़ी का आरोप लगाया है। इनका कहना है कि कई पदों के लिए एक ही परीक्षार्थी का चयन हो गया जबकि एक पद के लिए एक ही उम्मीमदवार को चुना जाना चाहिए। दूसरी ओर रेलवे का कहना है कि एक ही छात्र को अलग-अलग नौकरियों के लिए परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा सकता। 

इसके विरुद्ध 24 जनवरी को बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्र सड़कों पर उतर आए। उग्र छात्रों ने पहले पटना के राजेंद्र नगर रेलवे स्टेशन पर बवाल मचाया और उसके बाद यह प्रदर्शन उग्र होता चला गया। इस दौरान राज्य में विभिन्न स्थानों पर हजारों छात्रों की पुलिस से झड़पें हुईं। छात्रों ने रेलवे ट्रैकों पर धरना दिया, आरा स्टेशन पर आरा-सासाराम पैसेंजर गाड़ी को आग लगा दी जिसके चलते यात्रियों को भाग कर जान बचानी पड़ी। 

यही नहीं 25 जनवरी को छात्रों ने कई घंटों तक आरा रेलवे स्टेशन पर कब्जा किए रखा और 26 जनवरी को गया में एक रेलगाड़ी की 3 बोगियां आग के हवाले कर दी गर्ईं और 27 जनवरी को भी जगह-जगह आगजनी और तोडफ़ोड़ की घटनाएं हुईं। इसी बीच भारतीय रेलवे ने एक बयान जारी करके प्रदर्शनकारी उ मीदवारों को जीवन भर के लिए रेलवे की परीक्षा से बैन करने की चेतावनी देते हुए ऐसे तत्वों के हाथों गुमराह न होने की सलाह भी दी जो अपना स्वार्थ साधने के लिए उनका इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। 

रेलवे रिक्रूटमैंट बोर्ड ने नतीजों में अनियमितता की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी बना दी है। इसे 4 मार्च तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है जिसके बाद दोबारा परीक्षा करवाने पर फैसला लिया जाएगा। आर.आर.बी.-एन.टी.पी.सी. रेलवे भर्ती परीक्षा को लेकर मचे बवाल के बाद केंद्र सरकार द्वारा छात्रों की मांगें मान लेने के बावजूद 28 जनवरी को छात्रों के इस आंदोलन को विपक्षी दलों ने लपक कर बिहार बंद का आयोजन कर डाला। 

इसके अंतर्गत सड़कों से छात्र तो नदारद थे जबकि राजद, जनअधिकार पार्टी, कांग्रेस और वाम दलों के कार्यकत्र्ता नीतीश सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करते दिखाई दिए। बिहार के सभी बड़े शहरों में सुबह से ही रास्ते जाम कर दिए गए और रेलें रोकी गईं। 

कहीं सड़कों पर टायर जलाए गए तो कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरुद्ध नारेबाजी की गई। प्रदर्शन के परिणामस्वरूप पटना के गांधी सेतु पर कई किलोमीटर ल बा जाम लग गया। इन घटनाओं में करोड़ों रुपए की स पत्ति नष्ट हुई तथा अनेक जगह पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष पश्चिम बंगाल के चुनावों में हुई हिंसा के चलते राज्य में कानून व्यवस्था ठप्प होकर रह गई थी और अब पांच राज्यों में चुनावों से ठीक पहले बिहार सरकार के विरुद्ध इस आंदोलन ने केंद्र की मोदी सरकार का सिरदर्द बढ़ा दिया है। 

परीक्षा परिणामों को घोषित करने में भले ही तकनीकी गलती हुई हो या फिर ये मानवीय भूल के कारण हुआ हो लेकिन इस एक छोटी सी गलती  के कारण न सिर्फ रेलवे का भारी नुक्सान हुआ है बल्कि कई राज्यों की कानून व्यवस्था भी बिगड़ गई है। 

लिहाजा इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच किए जाने की जरूरत है और इसकी जांच रिपोर्ट जल्द से जल्द सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि युवाओं में विश्वास की बहाली हो सके। इसके साथ ही इस समस्या ने एक बार फिर देश में बेरोजगारी की समस्या की ओर भी ध्यान दिलाया है कि नौकरी न मिलने की हताशा में लोगों में किस कदर असंतोष बढ़ रहा है। इसे देखते हुए देश में रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने के साथ-साथ विभिन्न नौकरियों के लिए परीक्षाएं लेने और भर्ती की प्रक्रिया में तेजी लाने और इसे पारदर्शी बनाने की भी आवश्यकता है।—विजय कुमार 
 

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