बिहार के चुनाव नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति की हार

punjabkesari.in Monday, Nov 09, 2015 - 01:17 AM (IST)

चुनाव आयोग द्वारा 9 सितम्बर को बिहार विधानसभा के चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करने से पहले ही बिहार में चुनावों संबंधी गतिविधियां तेज हो गई थीं और 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद इस वर्ष 12 अक्तूबर से 5 नवम्बर तक 5 चरणों में हुए ये चुनाव भाजपा नीत राजग गठबंधन और नीतीश कुमार तथा लालू यादव नीत महागठबंधन के बीच अब तक का सर्वाधिक कठिन मुकाबला सिद्ध हुए जिनमें सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए एक-दूसरे के विरुद्ध निजी आक्षेप और अभद्र बयानों का खुला इस्तेमाल किया गया। 

तमाम एग्जिट पोल के अनुमानों को झुठलाते हुए नीतीश कुमार और लालू के महागठबंधन ने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल कर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की है। बिहार की राजनीति में दलित नेताओं के बड़े चेहरे जीतन राम मांझी और राम विलास पासवान बेशक मोदी गठबंधन का हिस्सा बने परंतु दलित बहुल क्षेत्रों की 83 सीटों में से 51 सीटें नीतीश कुमार के खाते में गईं जबकि मोदी का गठबंधन मात्र 25 सीटों पर ही बढ़त बनाने में सफल रहा। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में भी नीतीश कुमार का दबदबा बना रहा जिससे स्पष्टï है कि ग्रामीण मतदाताओं को मोदी सरकार लुभा नहीं पाई। 
 
बिहार की जीत भारतीय लोकतंत्र व नीतीश कुमार की जीत है जो एक बार फिर बहुमत प्राप्त करके तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। नीतीश कुमार अब बिहार ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी राजनीति का प्रमुख चेहरा बन कर उभरेंगे।
 
नीतीश की जीत में सर्वाधिक योगदान महिलाओं और युवाओं का रहा। लगता है कि अब महिला मतदाता भी परिपक्व हो रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति भी 27 सीटें मिलने से बेहतर हुई है जिसका श्रेय राहुल गांधी को जाता है।
 
इन चुनावों में बूथ कैप्चरिंग की एक भी घटना का न होना और किसी प्रकार की ङ्क्षहसा के बगैर ड्रोनों व सी.आर.पी. की सहायता से सुचारू रूप से सम्पन्न होना चुनाव आयोग के प्रभावशाली प्रबंधन का परिणाम है।
 
स्पष्टत: इन चुनावों में बिहार के मतदाताओं ने विकास के पक्ष में मतदान किया है। हालांकि नरेंद्र मोदी ने भी अपने प्रचार में विकास को ही एक मुद्दा बनाया था परंतु लोकसभा में प्रचंड बहुमत मिलने के बावजूद उनकी सरकार विकास के मुद्दे से भटक कर अंतर्कलह तथा अन्य विवादों में उलझी रही। अब केंद्र में अपनी साख बनाए रखने के लिए नरेंद्र मोदी को विकास के मुद्दे पर अधिक ध्यान देना होगा। 
 
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 2014 में प्रचंड बहुमत से चुनाव जीता था और उसके बाद हरियाणा और महाराष्टï्र में भी भाजपा ने अपनी सरकारें बनाईं परंतु इन्हीं 15 महीनों के दौरान पहले दिल्ली और अब बिहार में कमर तोड़ पराजय ने नरेंद्र मोदी की चमक कुछ कम अवश्य कर दी है।
 
चुनावी रणनीति के लिए मशहूर भाजपाध्यक्ष अमित शाह की सारी मैनेजमैंट फेल हो गई। अब उन्हें अवश्य ङ्क्षचतन करना चाहिए क्योंकि उन्होंने यह चुनाव जीतने के लिए हर तरह का दांवपेच आजमाया परंतु कोई भी काम नहीं आया। 
 
इसके अलावा भाजपा की आंतरिक फूट भी इस पराजय के लिए जिम्मेदार है और भाजपा नेताओं व कार्यकत्र्ताओं का बड़ा वर्ग भी नरेंद्र मोदी से खुश नहीं है। लिहाजा जहां भाजपा को अपनी आंतरिक नीतियां सुधारने की आवश्यकता है वहीं अपने गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर चलने की जरूरत है। बिहार के बाद अब असम, उत्तर प्रदेश और पंजाब की बारी है। यदि भाजपा ने अपने गठबंधन सहयोगियों को नाराज कर दिया तो इन चुनावों में भी इसे क्षति उठानी पड़ सकती है। 
 
बिहार में इस महागठबंधन की सफलता ने लालू यादव और उनकी पार्टी को नवजीवन दिया है। अत: यह देखना भी दिलचस्प होगा कि लालू यादव के साथ नीतीश कुमार कैसे निपटते हैं। लालू यादव ने इस महागठबंधन का दायरा बढ़ाकर उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के चुनावों में भी उतरने की बात कही है इसलिए भाजपा में एकता का होना और भी जरूरी हो गया है। 
 
जल्दी ही संसद का शीतकालीन अधिवेशन आरंभ होने वाला है जिसमें भाजपा को काफी आक्रामक और सकारात्मक रुख अपनाना होगा। कांग्रेस को भी वर्तमान घटनाक्रम से सीखने की आवश्यकता है। उसे भी संसद में सकारात्मक रुख अपनाना होगा। वास्तव में यह दौर हमारे लोकतंत्र के लिए परीक्षा की एक घड़ी है जिसमें सभी को निजी स्वार्थों को परे रख कर वैचारिक परिपक्वता दिखाने की आवश्यकता है। 
 

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