‘चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही’‘बंगाल के राजनीतिक तापमान में उबाल’

punjabkesari.in Saturday, Dec 12, 2020 - 03:42 AM (IST)

पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष अप्रैल-मई में संभावित विधानसभा चुनावों से पूर्व भाजपा तथा राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ ‘तृणमूल कांग्रेस’ के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार और कुशासन का आरोप लगाती आ रही भाजपा  2011 के विधानसभा चुनावों में राज्य में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। गत वर्ष लोकसभा चुनावों में राज्य की 42 में से 18 सीटें जीत कर उत्साहित भाजपा ने अब 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को सत्ताच्युत करके राज्य की 294 में से 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है जबकि ममता बनर्जी तीसरी बार विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। 

अभी पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रक्रिया आरम्भ भी नहीं हुई है और दोनों दलों में टकराव शुरू हो गया है। वहां दोनों ही दलों से जुड़े लोगों पर हमले हो रहे हैं। इस वर्ष जून से सितम्बर के बीच ही राज्य में 12 राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की हत्या हो चुकी है जिनमें से 6 भाजपा और 5 तृणमूल कांग्रेस के थे। दोनों दलों के बीच तनाव तब शिखर पर जा पहुंचा जब 10 दिसम्बर को भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की पश्चिम बंगाल की यात्रा के दौरान ममता के भतीजे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले सांसद अभिषेक बनर्जी के क्षेत्र डायमंड हार्बर जाते समय नड्डा तथा उनके साथ यात्रा कर रहे भाजपा के राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, पार्टी उपाध्यक्ष मुकुल राय तथा राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा के काफिले पर हमला कर दिया गया। 

श्री नड्डा को तो कोई चोट नहीं आई परंतु कैलाश विजयवर्गीय, मुकुल राय तथा अनुपम हाजरा को पत्थर लगे और उनकी कारों के शीशे टूट गए। इस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ से इस घटना की रिपोर्ट तलब की और कहा है कि ममता को इस प्रायोजित हिंसा के लिए प्रदेश की शांतिप्रिय जनता को जवाब देना होगा। भाजपा नेतृत्व ने आरोप लगाया है कि यह हमला नड्डा के कार्यक्रम को नाकाम बनाने के लिए किया गया और कोलकाता से डायमंड हार्बर को जोडऩे वाले 52 किलोमीटर लम्बे रास्ते पर कोई पुलिस नहीं थी वहीं ममता बनर्जी ने इस पर पलटवार करते हुए इस हमले को नौटंकी बताया है। 

भाजपा नेतृत्व की तुलना तानाशाहों, हिटलर और मुसोलिनी से करते हुए ममता बनर्जी ने कहा, ‘‘वे (भाजपा कार्यकत्र्ता) हर दिन हथियारों के साथ रैलियों के लिए आते हैं। वे खुद को थप्पड़ मार रहे हैं और इसका आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगा रहे हैं।’’‘‘उन्होंने ऐसा लोगों का ध्यान खींचने के लिए किया है। उनके काफिले में 50 कारें क्यों थीं? मैं सिर्फ तीन कारों में चलती हूं। इतनी जल्दी वीडियो बनाकर कैसे जारी कर दिए गए? उस समय भाजपा नेताओं के साथ तैनात केंद्रीय पुलिस बल के सदस्य क्या कर रहे थे? मैं इसे चुनौती दे सकती हूं और मैंने प्रशासन से इसकी जांच करने के लिए कहा है।’’ 

अभिषेक बनर्जी ने इस पर कहा है कि ‘‘यदि आम आदमी अपने गुस्से की अभिव्यक्ति कर रहा है तो मैं क्या कर सकता हूं। भाजपा देश में भय और हिंसा फैलाती है परंतु बंगाल में तो उसने संतुलन ही खो दिया है।’’ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में जारी तनातनी के बीच राज्यपाल जगदीप धनखड़ की रिपोर्ट के आधार पर गृह मंत्रालय ने राज्य के डी.जी.पी. और मुख्य सचिव को 14 दिसम्बर को दिल्ली तलब कर लिया है वहीं 11 दिसम्बर को धनखड़ ने संवाददाता सम्मेलन में ममता बनर्जी पर हमला बोला और चेतावनी दी कि ‘‘ उन्हें कानून व्यवस्था के मुद्दे पर आग से नहीं खेलना चाहिए और यदि राज्य में संविधान का पालन नहीं हुआ तो मेरा रोल शुरू हो जाएगा।’’ 

वैसे तो बंगाल का इतिहास रहा है कि जब भी चुनाव आते हैं, चाहे यह मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और वामदलों के बीच हो या किसी अन्य के बीच, वहां हमेशा ङ्क्षहसा होती रही है परंतु इस बार यह रुझान कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है जिसे किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। लगता है कि यह सब कुछ कहीं न कहीं निजी स्वार्थों से प्रेरित है। यह भी उल्लेखनीय है कि मई, 2019 में गृह मंत्री अमित शाह के बंगाल दौरे के समय भी इसी तरह का बवाल मचा था। 

नड्डा के काफिले पर हमले के सिलसिले में 7 लोगों की गिरफ्तारी तथा 3 पर एफ.आई.आर. दर्ज की गई लेकिन राज्य के ‘24 परगना’ जिले में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस से सम्बन्धित छात्रों में मारपीट का समाचार भी आ गया है और इसी बीच एक बार फिर भाजपा ने 19 और 20 दिसम्बर को श्री अमित शाह के बंगाल दौरे की घोषणा कर दी है। ऐसे में राज्य का राजनीतिक तापमान शांत होने की तो कोई संभावना दिखाई नहीं देती, अलबत्ता इसके गर्माने से राज्य का माहौल बिगडऩे का खतरा अवश्य पैदा होता दिखाई दे रहा है। 

हालांकि एक वर्ग राज्य में राष्ट्रपति शासन का इच्छुक है परंतु दूसरों का मानना है कि इससे ममता जनता की हमदर्दी पाकर चुनाव जीत सकती हैं, ऐसे में राज्यपाल श्री धनखड़ ने अपने तेवर कड़े कर दिए हैं। ऐसे में क्या मान लिया जाए कि राज्य के राज्यपाल शांति का वातावरण तैयार करेंगे या फिर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के रास्ते का मार्ग प्रशस्त करेंगेे। 


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