विधानसभा चुनावों में हो रहे ‘धमाके’, ‘बगावतें’ और ‘सत्ता विरोधी लहर’

Wednesday, Jan 18, 2017 - 12:18 AM (IST)

पांच राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद इन राज्यों में चुनावी गतिविधियां तेज हो गई हैं तथा लगातार ‘राजनीतिक धमाके’ हो रहे हैं।

भाजपा से बागी नवजोत सिंह सिद्धू ने पहले ‘आप’ और फिर कांग्रेस में जाने की अटकलों के बीच अंतत: 16 जनवरी को कांग्रेस का हाथ थाम कर धमाका कर दिया और अब टिकट आबंटन में मतभेदों को लेकर पंजाब भाजपा अध्यक्ष पद से विजय सांपला के त्यागपत्र की अफवाह सुनाई दे रही है।

विभिन्न पाॢटयों के टिकट अभिलाषियों द्वारा विद्रोह के डर से पंजाब में शिअद, कांग्रेस और भाजपा के अलावा अन्य राज्यों में भी टिकटों की अदला-बदली का सिलसिला जारी है।

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को इन चुनावों में सर्वाधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि हाल ही में उन पर उनके एक विरोधी द्वारा जूता फैंका गया और लम्बी में उनकी सभाओं के दौरान उन्हें 4 जगह विरोध का सामना करना पड़ा। ‘आप’ में भी लगातार फूट जारी है।

इस चुनावी मौसम का एक अन्य धमाका उत्तर प्रदेश के समाजवादी यादव परिवार में हुआ जब पार्टी व चुनाव चिन्ह पर दावे संबंधी चल रहे विवाद में चुनाव आयोग ने 16 जनवरी को सपा का चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ अखिलेश यादव वाली सपा को आबंटित कर दिया।

इसी बीच बेशक मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुसलमानों के प्रति ‘नकारात्मक रवैया रखने वाला नेता’ करार दिया परन्तु मंत्री आजम खां जैसे प्रभावशाली नेता तो अखिलेश के साथ ही खड़े दिखाई देते हैं।

चुनाव आयोग में जीत के बावजूद अखिलेश ने एक बार फिर प्रदेश के चुनाव अपने पिता मुलायम सिंह के नेतृत्व में ही लडऩे की बात कही और उनके घर जाकर उनसे आशीर्वाद भी लिया वहीं राजद अध्यक्ष लालू, जिनकी मुलायम सिंह से नजदीकी रिश्तेदारी भी है, उन्होंने सलाह दी है कि वह अखिलेश को आशीर्वाद देकर साम्प्रदायिक ताकतों को कमजोर करें।

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले समाजवादी पार्टी के गुट द्वारा कांग्रेस से गठबंधन की प्राथमिक घोषणा के बाद भाजपा के लिए सत्ता प्राप्ति का मुकाबला कड़ा हो गया है, जिससे निपटने के लिए वह कांग्रेस और सपा छोड़ कर आने वालों को टिकट दे रही है। इसके अलावा इसने ओ.बी.सी. कार्ड खेला है और अभी तक जारी उम्मीदवारों की सूची में सर्वाधिक 56 टिकट पिछड़े उम्मीदवारों को दिए हैं।

पाला बदल का खेल उत्तराखंड में भी जारी है। गत 8 महीनों में 11 कांग्रेसी विधायक पार्टी छोड़ कर भाजपा में जा चुके हैं और वहां कांग्रेस को सत्ता दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले मंत्री यशपाल आर्य, उनके पुत्र संजीव आर्य व पूर्व विधायक केदार सिंह भी अब भाजपा में शामिल हो गए हैं।

जीत की खातिर भाजपा ने कांग्रेस से बगावत करके आए लगभग सभी विधायकों को  टिकट दे दिए हैं। इसकी पहली सूची में जिन 64 प्रत्याशियों को टिकट दिए गए, उनमें से 16 कांग्रेस से आए हैं।

गोवा में बेशक इस समय भाजपा की सरकार है परन्तु वहां गोवा के संघ प्रदेश प्रमुख पद से हटाए गए सुभाष वेङ्क्षलगकर भाजपा को हराने के लिए ‘गोवा सुरक्षा मंच’ (जी.एस.एम.) का गठन तथा गोवा में भाजपा से अलग हुई महाराष्टï्र गोमांतक पार्टी (एम.जी.पी.) तथा शिवसेना के साथ मिल कर चुनाव लडऩे का गठबंधन करके मैदान में उतर आए हैं। यहां अब भाजपा, आप और कांग्रेस के बीच तिकोनी टक्कर बन गई है।

मणिपुर में मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी के नेतृत्व में 15 वर्षों से कांग्रेस सरकार चल रही है। सत्ता विरोधी लहर चलने के कारण इस बार इसे प्रतिकूल हालात का सामना करना पड़ रहा है।पंजाब में जहां शिअद-भाजपा सरकार सत्ता विरोधी लहर की शिकार है वहीं यू.पी. में अखिलेश के पक्ष में हवा के बावजूद पारिवारिक कलह ने पार्टी की छवि को ठेस लगाई है। प्रेेक्षकों के अनुसार सपा व भाजपा में सीधी टक्कर होती लग रही है जिसमें भाजपा का पलड़ा भारी भी रह सकता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमान मतदाता सपा के साथ होंगे और भाजपा हिन्दू वोटों पर ध्यान केंद्रित करेगी। बसपा को मुश्किलें हो सकती हैं, खास तौर पर जब उसके दलित वोटों में भाजपा सेंध लगाने की कोशिश में है। जहां तक कांग्रेस का सम्बन्ध है, ‘सपा’ से गठबंधन करके भी  इसे उत्तर प्रदेश में कोई विशेष लाभ होने वाला नहीं है।

उत्तराखंड में जहां कांग्रेस को भारी भीतरी असंतोष का सामना है वहीं गोवा में यही हाल भाजपा का है और मणिपुर में चल रही सत्ता विरोधी लहर इस बार क्या रंग दिखाती है, यह समय के गर्भ में है।   —विजय कुमार

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